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गुलजार हुई केरल की पहाड़ियां, 12 साल बाद दिखा खूबसूरत नजारा

नीलकुरिंजी फूल दुनिया के दुर्लभ फूलों में शुमार है। ये 12 साल में एक बार खिलता है और इस साल केरल में इस फूल की बहार है। इस फूल की करीब 350 प्रजातियां भारत में...

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केरल के इडुक्की जिले में खिलने वाले नीलकुरिंजी फूल को देखने के लिए लोग लाखों रुपये खर्च कर के पहुंचते हैं। इन दिनों इडुक्की जिला नीलकुरिंजी फूल से गुलजार है।

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नीलकुरिंजी फूल 12 साल बाद सिर्फ एक बार खिलते हैं। ये एक मोनोकार्पिक पौधा होता है, जो खिलने के बाद जल्द ही मुरझा जाता है और फिर दोबारा 12 साल बाद खिलता है।

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स्ट्रोबिलेथेंस कुथियाना, जिसे मलयालम और तमिल में नीलकुरिंजी के नाम से जाता है। ये एक तरह की झाड़ी है, जो केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में पाई जाती है।

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नीलगिरी हिल्स का अर्थ है 'नीले पहाड़', जिसका नाम नीलकुरिंजी फूलों से मिला है।

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नीलकुरिंजी फूल के लिए कुरिंजीमाला नाम का संरक्षित क्षेत्र यानी सैंक्चुअरी भी है, जो मुन्नार से 45 किलोमीटर की दूरी पर है।

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इस फुल को खुशहाली का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसके खिलने से राज्य के टूरिज्म को फायदा होता है। हर साल ये इसे देखने के लिए लाखों लोग पहुंचते थे, लेकिन इस साल कोरोना महामारी के चलते ये जगह पर्यटकों के लिए नहीं खुली है।

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नीलकुरिंजी फूल का भारत में एक सांस्कृतिक महत्तव है। हिंदु अखबार के पूर्व संपादक रॉय मैथ्यू ने अपनी किताब में लिखा है कि केरल के मुथुवन जनजाति के लोग इस फूल को रामांस और प्रेम का प्रतीक मानते हैं। वैली ऑफ फ्लॉवर के बाद ये भारत की दूसरी फ्लॉवर सैंक्चुरी है।

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