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गर्भाशय में गांठ या फाइब्राएड से ऐसे बचें, पढ़ें कारण और इलाज

गर्भाशय में गांठ या फाइब्राएड विकसित होना महिलाओं की बड़ी समस्या है। इसे गर्भाशय की रसौली या बच्चेदानी की गांठ भी कहते हैं। यह मटर के दाने से लेकर सेब जितनी भी बड़ी हो सकती है। यह बांझपन का बड़ा कारण...

Anuradha
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गर्भाशय में गांठ या फाइब्राएड विकसित होना महिलाओं की बड़ी समस्या है। इसे गर्भाशय की रसौली या बच्चेदानी की गांठ भी कहते हैं। यह मटर के दाने से लेकर सेब जितनी भी बड़ी हो सकती है। यह बांझपन का बड़ा कारण है।

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लक्षण ’ यौन संबंध बनाते समय दर्द होना। ’ मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्राव। ’ यौन संबंध के दौरान रक्तस्राव। ’ मासिक धर्म के बाद रक्तस्राव। ’ कमर के निचले हिस्से में तेज दर्द।

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कारण ’ मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन का स्राव बढ़ जाता है, जिससे फाइब्राएड की आशंका रहती है। कई बार गर्भधारण के बाद भी फाइब्राएड बन जाता है। ’ धूम्रपान और शराब का सेवन। ’ मांसाहार से भी महिलाओं में फाइब्राएड की समस्या पैदा हो सकती है। ’ गर्भनिरोधक दवाओं का इस्तेमाल। ’ आनुवंशिक कारणों से भी बच्चेदानी की रसौली हो सकती है।

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संभव है इलाज गर्भाशय की रसौली का इलाज आसान है। आजकल ओपन सर्जरी के बजाय लेप्रोस्कोपी की तकनीक से इसका आसानी से इलाज किया जा रहा है। इस तकनीक से महिला एक दिन बाद ही हॉस्पिटल से छुट्टी ले सकती है। इस समस्या का होम्योपैथी में भी आसान समाधान है। लक्षणों के हिसाब से कल्केरिया कार्ब, सीपिया, सैबाइना, लिलियम टिग, कल्केरिया फ्लोर, आस्टिलेगो, म्यूरेक्स, साइलीशिया, सोरिनम, सल्फर आदि दवाएं बीमारी को जड़ से समाप्त कर सकती हैं। दवा डॉक्टर की सलाह से ही ली जानी चाहिए।

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बच्चों को ब्रेन ट्यूमर से बचाएं वर्तमान जीवनशैली में वयस्कों की तुलना में बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के मामले ज्यादा बढ़ रहे हैं। यह दिमाग में विकसित होता है, इसलिए समस्या बढ़ जाने पर इलाज करना मुश्किल हो जाता है। शुरुआती दौर में इलाज न कराया जाए, तो ज्यादातर मामलों में यह जानलेवा साबित होता है। 3 से 15 साल की उम्र में या 50 की उम्र के बाद ब्रेन ट्यूमर ज्यादा देखा गया है। लक्षण ’ सुबह के समय तेज सिरदर्द। ’ हाथों और पैरों में कमजोरी महसूस होना। ’ शरीर का संतुलन बनाने में परेशानी। इलाज वर्तमान में जांच और इलाज के अत्याधुनिक तरीकों के चलते ब्रेन ट्यूमर को हटाना और रोगी के जीवनकाल को बढ़ाना संभव बन गया है। ट्यूमर हटाने के लिए जीपीएस जैसी न्यूरोनेविगेशन तकनीक का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इनके अलावा और भी अनेक उपाय हैं।

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