1/7चुनाव आयोग के फ्लाइंग स्क्वाड, स्थिर निगरानी दल और पुलिस द्वारा संदिग्ध कैश की जांच की जाती है। बिना दस्तावेज के 50,000 रुपये से अधिक कैश पाए जाने पर तत्काल जब्त किया जाता है। जब्त कैश को सील कर रिटर्निंग अधिकारी को सौंपा जाता है। यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत होती है।

जब्त कैश को सबसे पहले स्थानीय ट्रेजरी में जमा किया जाता है। 10 लाख से अधिक राशि पर आयकर विभाग को सूचित किया जाता है। अगर मालिक दावा करता है, तो कोर्ट में साबित करने पर लौटाया जा सकता है। अन्यथा, यह सरकारी खजाने में चला जाता है।

जब्त कैश का दावा करने के लिए व्यक्ति को 30 दिनों के अंदर आवेदन देना होता है। बैंक स्टेटमेंट, निकासी स्लिप या उपयोग का प्रमाण दिखाना जरूरी है। अगर स्रोत वैध साबित होता है, तो कैश लौटाया जाता है। अन्यथा, जब्ती स्थायी हो जाती है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आचार संहिता लागू होते ही 50,000 रुपये से अधिक कैश ले जाना अपराध है। इस दौरान तय सीमा से अधिक कैश पाए जाने पर उसे जब्त कर ट्रेजरी में जमा किया जाएगा। इसके ऊपर निगरानी के लिए सीमाओं पर चौकियां लगाई गई हैं। चुनाव आयोग द्वारा उम्मीदवारों के लिए खर्च सीमा 40 लाख रुपये है। काले धन पर नजर रखने के लिए वीडियोग्राफी भी कराई जा रही है।

उम्मीदवारों को अलग बैंक खाता खोलना अनिवार्य है। 10,000 से अधिक लेन-देन की रिपोर्टिंग जरूरी होगी। बिहार में प्रत्येक उम्मीदवार पर 40 लाख खर्च सीमा है। जब्त कैश अगर चुनाव प्रभावित करने वाला पाया जाता है, तो आयकर विभाग जांच करता है। बता दें कि 2019 लोकसभा में 844 करोड़ का कैश जब्त हुआ था, जो ट्रेजरी में जमा किया गया।

जब्त कैश पर अगर धोखाधड़ी साबित होती है, तो आईपीसी की धारा 171B-171C के तहत 1-2 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। अगर दावा वैध साबित नहीं होता है, तो कैश सरकारी खजाने में जाता है। चुनाव आयोग का मकसद धनबल रोकना है, जो लोकतंत्र की रक्षा करता है।

चुनाव के दौरान जब्त कैश ट्रेजरी या सरकारी खजाने में जमा होता है, जो भ्रष्टाचार रोकता है। बिहार 2025 चुनाव में 50,000 की सीमा और सख्त जांच से पारदर्शिता बढ़ेगी। दस्तावेज रखें, नियम पालन करें। ये नियम लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं।
