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देवों के समान ही पूजनीय हैं चंद्रमा, जानें चंद्रमा के बारे में

मत्स्य एवं अग्नि पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार किया तो सबसे पहले अपने मानसिक संकल्प से मानस पुत्रों की रचना की। उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या...

Anuradha
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मत्स्य एवं अग्नि पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार किया तो सबसे पहले अपने मानसिक संकल्प से मानस पुत्रों की रचना की। उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ, जिससे दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम तीन पुत्र हुए। सोम चंद्र का ही एक नाम है। पद्म पुराण में चन्द्र के जन्म का अन्य वृतान्त दिया गया है। ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी। महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप आरम्भ किया। तप काल में एक दिन महर्षि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें टपक पड़ी जो बहुत प्रकाशमय थीं। दिशाओं ने स्त्री रूप में आकर पुत्र प्राप्ति की कामना से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया जो उनके उदर में गर्भ रूप में स्थित हो गया। परन्तु उस प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं धारण न रख सकीं और त्याग दिया। उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने पुरुष रूप दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रख्यात हुए। देवताओं,ऋषियों व गन्धर्वों आदि ने उनकी स्तुति की। उनके ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुईं। ब्रह्मा जी ने चन्द्र को नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया।

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स्कन्द पुराण के अनुसार जब देवों तथा दैत्यों ने क्षीर सागर का मंथन किया था तो उस में से चौदह रत्न निकले थे। चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक है जिसे लोक कल्याण हेतु, उसी मंथन से प्राप्त कालकूट विष को पी जाने वाले भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया पर ग्रह के रूप में चन्द्र की उपस्थिति मंथन से पूर्व भी सिद्ध होती है। स्कन्द पुराण के ही माहेश्वर खंड में गर्गाचार्य ने समुद्र मंथन का मुहूर्त निकालते हुए देवों को कहा कि इस समय सभी ग्रह अनुकूल हैं। चंद्रमा से गुरु का शुभ योग है। तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिए चन्द्र बल उत्तम है। यह गोमन्त मुहूर्त तुम्हें विजय देने वाला है। अत: यह संभव है कि चंद्रमा के विभिन्न अंशों का जन्म विभिन्न कालों में हुआ हो।

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चन्द्र का विवाह दक्ष प्रजापति की नक्षत्र रूपी 27 कन्याओं से हुआ जिनसे अनेक प्रतिभाशाली पुत्र हुए। इन्हीं 27 नक्षत्रों के भोग से एक चन्द्र मास पूर्ण होता है। आजाद रहकर काम करना पसंद करते हैं चंद्र ग्रह से प्रभावित लोग कुंडली में चंद्र ग्रह इंसान के सबसे करीब का ग्रह माना गया है। यह ग्रह जातक के हाथ में शुक्र ग्रह के उल्टी तरफ होता है। चंद्र ग्रह सुंदरता एवं भावना का ग्रह माना जाता है। चंद्र पर्वत विकसित होने से व्यक्ति भावुक, कल्पनाशील होता है। ये लोग प्रकृति प्रेमी, सौंदर्यप्रिय और इंसानी दुनिया से हटकर सपनों की दुनिया में विचरण करने वाले हाते हैं। ये हमेशा सपनों में खोए रहते हैं। ऐसे लोग जीवन में ज्यादा कठिनाइयां नहीं झेल पाते और थोड़े समय में ही विचलित हो जाते हैं।

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इन जातकों को एकांत माहौल पसन्द होता है। ऐसे व्यक्ति महान कलाकार, संगीतज्ञ, साहित्यकार और वाचक होते है। ऐसे व्यक्ति किसी के गुलाम होकर कार्य नही करते और हमेशा स्वतंत्र रहकर कार्य करना चाहते हैं। यदि चंद्र पर्वत सामान्य विकसित हो तो जातक हद से ज्यादा भावुक होते हैं। छोटी सी बात उन्हें झकझोर देती है।

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इनके अंदर साहस न के बराबर होता है और ये लोग निराश होकर जल्दी पलायन कर जाते हैं। यदि चंद्र पर्वत का झुकाव शुक्र पर्वत की और हो तो जातक कामुक होने के साथ साथ इतना गिर जाता है कि उसको अपने पराये में फर्क नहीं समझ आता। यदि चंद्र पर्वत पर आड़ी-टेड़ी रेखाएं हों तो जातक अपने जीवन में जल यात्रा करता है।

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