छठ पूजा का पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन से छठ पर्व की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन व्रतधारी सुबह पवित्र नदी में स्नान कर नए वस्त्र धारण करती है और सात्विक भोजन ग्रहण करती है। नहाय-खाय के दिन मुख्य तौर पर चने की दाल, कद्दू या लौकी और अरवा चावल का भात बनाया जाता है।

इन सभी भोजन को पवित्र अग्नि में घी और सेंघा नमक से तैयार किया जाता है। नहाय-खाय में बनने वाला कद्दू-भात का प्रसाद शरीर, मन और आत्मा के शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत की अवधि सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहती है। खरना के दिन व्रती केवल शाम के समय खीर और मीठी रोटी का प्रसाद ग्रहण करती है।

यह प्रसाद भी शुद्ध लकड़ी के चूल्हे में ही तैयार किया जाता है। खरना करने के बाद व्रती पूर्ण संकल्प के साथ 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत करती है। खरना के प्रसाद को बहुत पवित्र माना जाता है। दूर-दूर से लोग प्रसाद ग्रहण करने आते हैं।

छठ पूजा के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है, जोकि छठ पर्व का सबसे अहम दिन होता है। इस दिन अस्तचलागामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की पंरपरा है। आमतौर पर हम उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, लेकिन छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का उद्देश्य सूर्य देव के साथ उनकी पत्नी प्रत्यूषा को सम्मान देना है।

छठ पूजा के चौथे दिन उदयगामी यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे उषा अर्घ्य भी कहते हैं, क्योंकि ऊषा सूर्य देव की पत्नी का नाम है। छठ पर्व में डूबते और उगते सूर्य को इसलिए अर्घ्य दिया जाता है, क्योंकि भगवान सूर्य की पत्नियां यानी ऊषा और प्रत्यूषा की उनकी शक्तियों का मुख्य स्त्रोत है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाता है।

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