हरियाली तीज 2018
हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। यह महिलाओं के सोलह श्रृंगार का उत्सव है। सुहागिन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक मान्यता यह भी है कि देवी पार्वती के कहने पर शिव जी ने कुंवारी कन्याओं को आशीर्वाद दिया कि इस व्रत को रखने से उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी और योग्य वर की प्राप्ति होगी।
कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात भगवान शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। 108वें जन्म में माता पार्वती को श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान शिव पति रूप में प्राप्त हुए। इस अवसर पर सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और अखंड सुहाग की कामना करती हैं।
हरियाली तीज को श्रावणी तीज, और कजली तीज भी कहते हैं। बुन्देलखंड के जालौन, झांसी, दनिया, महोबा, ओरछा आदि क्षेत्रों में इसे हरियाली तीज के रूप में मनाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, मिर्जापुर, देवलि, गोरखपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है। लोकगायन की एक प्रसिद्ध शैली भी इसी नाम से प्रसिद्ध है, जिसे 'कजली' कहते हैं।