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बहस क्यों करते हो जनाब

खुद को उलझाए रखने के हजारों बहाने हो सकते हैं। कारण, कोई न कोई कुछ न कुछ ऐसा कर ही देगा जो हमें पसंद नहीं आएगा। पर बात-बात में बहस करके भी सही समाधान हो जाए, क्या इस बात की गारंटी है? ...

बहस क्यों करते हो जनाब
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 31 Jan 2016 09:36 PM
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खुद को उलझाए रखने के हजारों बहाने हो सकते हैं। कारण, कोई न कोई कुछ न कुछ ऐसा कर ही देगा जो हमें पसंद नहीं आएगा। पर बात-बात में बहस करके भी सही समाधान हो जाए, क्या इस बात की गारंटी है?  विशेषज्ञों के अनुसार हमारी 99% बहसें न सिर्फ व्यर्थ होती हैं, उनका कोई नतीजा भी नहीं निकलता। ऐसे में छोटी-छोटी बातों पर रिश्तों और मन की शांति को भंग करना कितना सही है!

कहावत है कि मूर्ख से बहस करना यही साबित करता है कि मूर्ख एक नहीं दो हैं। घर हो या बाहर, बहस शुरू होने के कई कारण हो सकते हैं। आमतौर पर ऐसा तब होता है, जब दोनों ही पक्ष खुद को पीडि़त और सही मान रहे होते हैं। बहस करना एक नकारात्मक भाव  है। ऐसे में उसी नकारात्मकता में डूबे रहना, मन को अशांत करता है, काम में देरी होती है और रिश्तों में दूरी बढ़ने लगती है।    

प्रभावी बातचीत के क्षेत्र में 25 वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाले रॉब केंडल कहते हैं,'छोटी-छोटी बातों पर बहस करने लगना समझदारी की कमी है। उनकी पुस्तक 'ब्लेमस्टॉर्मिंग: वाई कन्वर्सेशंस गो रॉन्ग एंड हाउ टु फिक्स देम?' इसी मसले पर बात करती है। उनके अनुसार, 'बहस बढ़ने पर दोनों पक्ष समाधान तलाशने की जगह एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं। दोनों ही सही साबित होना चाहते हैं। कोई भी अपने किन्तु-परंतु छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता।'

बचें, पर डरें नहीं
बहस से बचने का आशय यह नहीं कि आप गलत बात भी मानें या अपने सम्मान से समझौता करें। बस बहस करते समय फोकस समाधान पर रखें। अधिकतर मामलों में समाधान दोनों पक्षों के समझौते से निकलता है। कई बार विवाद को सुलझाने का रास्ता जीत में नहीं हार में छिपा होता है।     

रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ. जॉन गोटमैन कहते हैं, '96 % मामलों में बहस के शुुरुआती तीन मिनट बता देते हैं कि बहस करना कितना सार्थक रहेगा। शुरुआत में की गयी विवेकपूर्ण बातचीत बहस को बढ़ने नहीं देती।
'द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन: राइटिंग ऑन इंडियन हिस्ट्री, कल्चर एंड आइडेंटिटी' में अमर्त्य सेन लिखते हैं, 'यदि दूसरे असहमति व्यक्त करें तो नाराज न हों। सबके पास दिल है और हरेक का अपना झुकाव। उनका सही हमारा गलत है और हमारा सही उनका गलत।'

ब्लॉगर सेन सर्जियो कहते हैं, 'बहस से बचने के लिए चार बातें सोचें, पहला क्या जरूरी है कि हमेशा आप सही हों,  क्या उस मुद्दे या व्यक्ति को पकड़े रखना जरूरी है, कहीं जल्दबाजी में राय तो नहीं बना रहे और बहस का असर कहां और कितना लंबा पड़ेगा?
 
 बनें बहस के 'बाजीगर'
' कई बार बहस की बुनियाद ही गलत तथ्यों पर खड़ी होती है।  चूंकि आप नहीं चाहते कि आप गलत साबित हों, इसलिए उसी दिशा में तर्क गढ़ते चले जाते हैं। बेहतर है कि पहले अपने पक्ष को बेहतर तरीके से परख लें।
' दूसरे पक्ष को सुनने का अर्थ यह नहीं है कि उनकी सभी बातों से सहमत हो जाएं। पर यह समझना भी जरूरी है कि दूसरा पक्ष किस तस्वीर को दिखाना चाह रहा है। उनके डर, बेचैनी, हित-अहित और गुस्से को समझें।
'  गुस्से में न बोलें। बोलते समय खुद को व दूसरे को एक-दो मिनट का ब्रेक दें।
' सम्मान से बात करें। अधिकतर बहस में समाधान दोनों पक्षों की ओर से किए गए समझौते से निकलता है। सम्मान से बात करेंगे तो रिश्ते आगे भी बेहतर रहेंगे।  
' व्यक्ति की जगह समस्या पर बात करें। अपनी भी गलती स्वीकारने से पीछे न हटें।
                              
पूनम जैन

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