गैर-न्यायिक हत्याएं
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में पुलिस अफसरों, फौजी जवानों, रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) के सदस्यों द्वारा की जाने वाली गैर-न्यायिक हत्याओं पर गहरी चिंता...
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में पुलिस अफसरों, फौजी जवानों, रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) के सदस्यों द्वारा की जाने वाली गैर-न्यायिक हत्याओं पर गहरी चिंता जताई है। समिति ने जो मुद्दे उठाए हैैं, उनमें बाल विवाह और अभिव्यक्ति की आजादी के अलावा यह मसला भी शामिल है कि सरकारों को अपने उन राष्ट्रीय कानूनों की समीक्षा करनी चाहिए, जो सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार देते हैं, ताकि उनके दुरुपयोग को रोका जा सके।
हाल के दिनों में आतंकी कार्रवाइयों में जो उभार दिखा है, वह इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि आतंकवाद के विरोध और मानवाधिकार के बीच संतुलन बिठाने की दरकार है। हम आतंकवाद विरोधी कवायदों पर आपत्ति नहीं जता रहे, क्योंकि वे देश और उसके बाशिंदों की हिफाजत के लिए बेहद जरूरी हैं। लेकिन दहशतगर्दी से जंग का मतलब यह नहीं है कि बुनियादी इंसानी हकूक को नजरअंदाज कर दिया जाए। जैसे हनीफ मरीधा का ही उदाहरण लीजिए। हनीफ की मौत आरएबी की हिरासत में हुई। उसे अशकोना में आत्मघाती विस्फोट के बाद आरएबी ने कथित तौर पर अपनी गिरफ्त में लिया था। मगर हनीफ के खानदान के लोगों का कहना है कि उसे फरवरी में ही गिरफ्तार किया गया था। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।
सरकारी अफसानों और परिजनों के दावों के बीच का अंतर जैसे सामान्य ढर्रा बन गया है। इसलिए सच्चाई का पता लगाने के लिए ऐसे मामलों की ईमानदार जांच कराई जानी चाहिए। हम संयुक्त राष्ट्र की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि ऐसे कानूनी व नीतिगत सुधार किए जाने चाहिए, जिनसे ऐसे मामलों की जांच हो सके और जरूरत पड़ने पर सुरक्षा बलों के जवानों की जिम्मेदारी तय की जाए। इस वक्त की जरूरत है कि हर देश अपने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अधिकारों का दायरा बढ़ाएं। चूंकि बांग्लादेश ने भी ‘इंटरनेशनल कॉन्वेंट ऑन सिविल ऐंड पॉलिटिकल राइट्स’ पर दस्तखत कर रखे हैैं, इसलिए उसे गैर-न्यायिक हत्याओं और अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने ही चाहिए।
द डेली स्टार, बांग्लादेश