हिंसा की मारी औरतें
ब्राक (बिल्डिंग रिसोर्सेज अक्रॉस कम्युनिटीज) ने अपने एक ताजा अध्ययन में पाया है कि साल 2016 में बांग्लादेश में कम से कम 7,489 औरतें व लड़कियां हिंसा का शिकार बनीं। इस अध्ययन का सबसे चिंताजनक पहलू यह...
ब्राक (बिल्डिंग रिसोर्सेज अक्रॉस कम्युनिटीज) ने अपने एक ताजा अध्ययन में पाया है कि साल 2016 में बांग्लादेश में कम से कम 7,489 औरतें व लड़कियां हिंसा का शिकार बनीं। इस अध्ययन का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि हिंसा की शिकार औरतों व लड़कियों में 20 फीसदी मासूम बच्चियां थीं। बीते साल औसतन हर रोज दो बच्चियों के ऊपर बलात्कार जैसा जुल्म हुआ। ये आंकड़े निहायत शर्मनाक और परेशान करने वाले हैं। ये औरतों के साथ बर्बरता की दारुण तस्वीर उकेरते हैं। हम तकरीबन रोज ही बलात्कार और यौन उत्पीड़न की वारदात की खबरें छापते हैं। यह सूरतेहाल तब है, जब कि कई सारी घटनाएं दर्ज नहीं कराई जातीं, इसलिए 7,489 का आंकड़ा इस समस्या की मुकम्मल तस्वीर सामने नहीं लाता। ये आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि औरतों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं मुल्क में काफी तेजी से बढ़ रही हैं। साल 2014 में 2,873 औरतें हिंसक घटनाओं का शिकार हुई थीं। इससे यह भी जाहिर होता है कि घरेलू हिंसा को रोकने की हमने जितनी भी तज्वीजें कीं, वे सब नाकाम रहीं। ब्राक की रिपोर्ट इस बात की खुली तस्दीक है, क्योंकि औरतों के साथ मार-पीट और जुल्म की अस्सी फीसदी घटनाएं घर की चारदीवारी के भीतर हुईं। आखिर तमाम सरकारी, गैर-सरकारी कवायदों के बावजूद यह स्थिति क्यों है? जाहिर है, कानून का ईमानदारी से पालन नहीं हो रहा। हमें ऐसे इदारे चाहिए, जो खवातीन के मसलों को लेकर संजीदा हों और ऐसे मुकदमों को तेजी से निपटाएं। गुनहगारों का सजा से बच जाना, न सिर्फ इंसाफ की राह में दुश्वारियां पैदा करता है, बल्कि इस वजह से पीड़ित औरत या बच्ची के खानदान वाले भी खौफ के साये में रहते हैं। ऐसी घटनाओं के खिलाफ बहस तो खूब होती है, मगर कानून लागू करने वाली एजेंसियां अपने फर्ज नहीं निभा पातीं। इस लिहाज से कानून के बारे में सही जानकारी के अलावा उनको ईमानदारी से लागू किए जाने की भी जरूरत है। हम प्रशासन से यही अपील कर सकते हैं कि वह ब्राक के अध्ययन को गंभीरता से ले और मुल्क में एक ऐसा माहौल बनाए, जिसमें कहीं कोई औरत खौफजदा न हो।