अध्यात्म की ज्योति से लोगों का अज्ञान मिटाया
रामनवमी स्वामीनारायण संप्रदाय के लिए सबसे बड़ा दिन है। एक तो रामनवमी और दूसरे उनके संस्थापक भगवान स्वामीनारायण की जयंती। उनका जन्म 2 अप्रैल 1781 को चैत्र शुक्ल नवमी के दिन अयोध्या के पास छापिया गांव...
रामनवमी स्वामीनारायण संप्रदाय के लिए सबसे बड़ा दिन है। एक तो रामनवमी और दूसरे उनके संस्थापक भगवान स्वामीनारायण की जयंती। उनका जन्म 2 अप्रैल 1781 को चैत्र शुक्ल नवमी के दिन अयोध्या के पास छापिया गांव में हुआ। जन्मनाम घनश्याम पांडे था और सहजानंद स्वामी के नाम से भी जाने गए।
भगवान स्वामीनारायण के अनुयायी उन्हें नारायण का अवतार मानते हैं। सात वर्ष की उम्र में ही उन्होंने धर्मग्रंथों का अच्छी तरह अध्ययन कर लिया और धर्मशास्त्र में पारंगत हो गए। इसके बाद 11 साल की उम्र में उन्होंने घर त्याग दिया और नंगे पैर सात साल तक पूरे भारतवर्ष की आध्यात्मिक यात्रा की। अंतत: गुजरात उनकी कर्मभूमि बना और अगले 30 सालों तक उन्होंने एक सामाजिक-आध्यात्मिक क्रांति का नेतृत्व किया।
500 परमहंसों का पूरी निष्ठा के साथ अनुसरण करने के बाद उन्होंने स्वामीनारायण संप्रदाय की स्थापना की। उनका मकसद सामाजिक सुधारों की शुरुआत, दुखियों और जरूरतमंदों की सेवा के साथ-साथ अंधविश्वासों, व्यसनों और अंधभक्ति के प्रति लोगों को जागरूक करना रहा।
व्यक्तिगत सदाचार और आध्यात्मिक चरित्र निर्माण को उन्होंने सबसे ऊपर रखा। 49 वर्ष की शरीर यात्रा में उन्होंने मानव जाति को छह भव्य मंदिरों से समृद्ध किया, वैदिक दर्शन के अक्षर पुरुषोत्तम आराधना का मार्ग दिखाया और पवित्र धर्मग्रंथ ‘वचनामृत’ के माध्यम से गूढ़ आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया। जीवनकाल में ही लाखों भक्त उन्हें ईश्वर के रूप में पूजने लगे थे। स्वामीनारायण संप्रदाय आज हिंदुत्व के सबसे प्रगतिशील और विशुद्ध स्वरूप के रूप में सामने है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के रूप में जाना जाता है।
उनकी स्मृति में स्वामीनारायण संप्रदाय के वर्तमान प्रमुख पूज्य स्वामी महाराज ने दिल्ली और गुजरात के गांधीनगर में स्वामीनारायण अक्षरधाम का निर्माण कराया है।