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कविता में लिपटी व्यथा के बीच फूटे हंसी के फव्वारे

अस्सी घाट की शाम शुक्रवार को अगढ़म-बगड़म व उटपाटंग गतिविधियों से गुलजार रहा। गर्दभ राज को मुख्य अतिथि बनाकर उनकी आरती उतारी गयी तो गो हत्या रोकने व संरक्षण के लिए कृति संकल्पित प्रदेश सरकार की भावना...

कविता में लिपटी व्यथा के बीच फूटे हंसी के फव्वारे
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 01 Apr 2017 02:10 AM
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अस्सी घाट की शाम शुक्रवार को अगढ़म-बगड़म व उटपाटंग गतिविधियों से गुलजार रहा। गर्दभ राज को मुख्य अतिथि बनाकर उनकी आरती उतारी गयी तो गो हत्या रोकने व संरक्षण के लिए कृति संकल्पित प्रदेश सरकार की भावना को ध्यान में रखते हुए गौ माता की अध्यक्षता में आयोजन हुआ।

सामाजिक संस्था वसुधैव कुटुम्बकम की ओर से सजी संध्या में कवियों ने शब्दबाण निकाले तो हास्य नृत्य के साथ प्रहसन और मिमिक्री का जलवा भी बिखरा। हि-हि, खी-खी के बीच हा हा हा..... अट्टहास फिर हंसी-ठिठोली में ढ़ला संदेश लोगों तक पहुंचा। गोइंठा सुलगा के दीप प्रज्ज्वलित किया गया। पं. धर्मशील चतुर्वेदी को समर्पित उत्सव की शुरुआत उनके ठहाकों के अनुरूप हुआ। सामूहिक पिपिहरी वादन के साथ लोगों का अभिनंदन किया गया। कमलेश राजहंस व कृष्णावतार राही को पं. धर्मशील चतुर्वेदी 'धुरंधर सम्मान' प्रदान किया गया। पत्रिका धुरन्धर हास्य हंगामा का विमोचन भी हुआ। अतिथियों व कलाकारों के गले में रूद्र नाथ त्रिपाठी ने विचित्र सम्मान माला डाला।

पं. हरिराम द्विवेदी की अध्यक्षता और हास्य कवि नागेश शांडिल्य के संचालन में हास्य रसवर्षा हुयी। डॉ. कमलेश राजहंस ने पढ़ा दुश्मन से लोहा लेने को जो सरहद पर खड़ा हुआ है। वो किसान का बेटा है, आंसु पीकर बड़ा हुआ है। बंधु पाल बंधु ने मड़ई रहल दुआरे पर जो भवन ऊ आलीशान हो गईल, का बतलाई ए भईया घरवा वाली परधान हो गईल। इन्दू सुलतानपुरी ने पढ़ा तू सदा गम के झूले में झूला रहे, शान बहता रहे, पपेट फूला रहे। मुंह तो खोले कभी, जम्मू कश्मीर पर, तेरा थुथुन रहे,मेरा हूरा रहे।

कृष्णावतार राही ने पढ़ा - घाटी से निकल आए तो खादी में पिल गए, कुछ ऐसे खेल खेले की कांटे भी खिल गए। चंबल की घाटियों में जिन्हें ढूढते थे हम, देखा जो एक रोज तो संसद में मिल गए। काव्य पाठ करने वालों में मुख्य रूप से शंकर कैमूरी, हरिनारायण हरीश, सूर्य कुमार सूरज, नीरज पाण्डेय, रमेश विश्वहार, मिथिलेश गहमरी आदि ने काव्य पाठ किया।

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