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सास-ससुर के लिए पुत्रवधुएं बनीं ‘श्रवण कुमार’

बुजुर्ग माता-पिता की सेवा से जुडे़ बेटों के कई उदाहरण हमारे देश में मौजूद हैं। धर्मनगरी में कांवड़ मेले के पहले ही एक नई मिशाल देखने को मिली। वृद्ध सास-ससुर की इच्छा पूरी करने को पुत्रवधुएं...

सास-ससुर के लिए पुत्रवधुएं बनीं ‘श्रवण कुमार’
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 01 Aug 2015 09:57 PM
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बुजुर्ग माता-पिता की सेवा से जुडे़ बेटों के कई उदाहरण हमारे देश में मौजूद हैं। धर्मनगरी में कांवड़ मेले के पहले ही एक नई मिशाल देखने को मिली। वृद्ध सास-ससुर की इच्छा पूरी करने को पुत्रवधुएं ‘श्रवण कुमार’ बनकर सामने आई हैं। पुत्रवधुएं स्वयं उनका बोझ अपने कंधों पर उठाकर उनकी कांवड़ यात्रा पूरी करा रही हैं।

कांवड़ यात्रा के पहले दिन हरकी पैड़ी क्षेत्र में बागपत का एक परिवार सभी के बीच चर्चा का विषय बना रहा। परिवार की दो महिलाएं अपने सास-ससुर को पालकी में बैठाकर कांवड़ यात्रा पूरी कराने निकली हैं। बागपत निवासी झोतर ने बताया कि उनके 75 वर्षीय पिता महावीर और 70 वर्षीय मां शकुंतला हमेशा से धर्मनगरी की यात्रा करना चाहते थे। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते, यह इच्छा मन में रही। हाल में उन्होंने अपने बेटे और पुत्रवधुओं के सामने कांवड़ यात्रा करने की इच्छा जताई थी। इस पर उन्होंने अपने बड़े भाई पप्पू के साथ माता-पिता को अपने कंधों पर कांवड़ यात्रा कराने का फैसला किया। बदकिस्मती से कुछ दिन पहले ही में एक दुर्घटना में पप्पू का हाथ फ्रैक्चर हो गया। यात्रा को लेकर दोनों भाई असमंजस में पड़ गए। ऐसे में उनकी पत्नी गीता और भाभी मिथलेश आगे आईं। उन्होंने सास-ससुर को कांवड़ यात्रा पूरी कराने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने का फैसला किया। छोटा बेटा झोतर पालकी के पिछले हिस्से पर जिम्मेदारी संभाले हुए था। हाथ में फ्रैक्चर होने के बाद भी पप्पू बीच-बीच में परिवारजनों की मदद में लगा रहा। इतना ही साथी और तनु भी अपने दादा-दादी की कांवड़ यात्रा में शामिल होने साथ आए थे।

आस्था के आगे कोई चुनौती बड़ी नहीं
दिल्ली के 16 वर्षीय प्रदीप कुमार को बचपन में ही पोलियो हो गया था। इसमें उनके दोनों पैर खराब हो गए। लेकिन भगवान शिव की भक्ति ने प्रदीप कुमार को गजब की शक्ति प्रदान की है। प्रदीप चार साल से लगातार सावन में हरिद्वार आते हैं और जल भरकर दिल्ली तक की यात्रा पूरी करते हैं। धर्मनगरी की पथरीली राहें भी उनका हौसला नहीं डिगा पा रही हैं। हर साल कांवड़ में आने के सवाल पर प्रदीप कहते हैं कि भोले बाबा बुलाते हैं और मैं चला आता हूं।

 

 

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