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तेंदुए के बदले व्यवहार को लेकर डब्लूटीआई करेगी शोध

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तेंदुए जंगल छोड़ आबादी के आसपास नया ठिकाना बना रहे हैं। दोनों राज्यों में पिछले करीब एक साल में ऐसे 32 मामले सामने आ चुके हैं। तेंदुए के इस बदले व्यवहार को लेकर वाइल्ड...

तेंदुए के बदले व्यवहार को लेकर डब्लूटीआई करेगी शोध
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 18 Apr 2016 11:24 PM
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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तेंदुए जंगल छोड़ आबादी के आसपास नया ठिकाना बना रहे हैं। दोनों राज्यों में पिछले करीब एक साल में ऐसे 32 मामले सामने आ चुके हैं। तेंदुए के इस बदले व्यवहार को लेकर वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया शोध करने जा रही है। इसके साथ ही प्रदेश सरकार से वार्ता की जाएगी कि जंगली जानवरों के लिए बेहतर कार्ययोजना बनाएं, जिससे जानवरों को वन्य क्षेत्र में ही अपना खाना मिल सके और वे शिकार की तलाश में आबादी तक न आएं।

मेरठ, हापुड़, बिजनौर, बुलंदशहर के साथ पिछले एक साल में उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में 32 स्थानों पर तेंदुए आबादी के बीच पहुंच चुके हैं। इसको लेकर वन विभाग के अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है। वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्लूटीआई) के प्रोजेक्ट लीडर प्रेमचंद पांडे ने बताया कि पिछले कुछ समय से तेंदुआ जंगल छोड़ आबादी के बीच आ रहे हैं। फसलों के कटान के समय इनके दिखाई देने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। कुछ समय में तेंदुए के बच्चे भी कई बार खेतों में मिल चुके हैं। यह इसका प्रमाण है कि तेंदुए अपना ठिकाना आबादी के पास खेतों में बना रहे हैं और वहीं प्रजनन कर रहे हैं।
इसका प्रमुख कारण वनों में उनके लिए खाने की कमी और तेंदुओं की लगातार बढ़ रही आबादी भी है। पिछले पांच साल में तेंदुओं की संख्या खासी बढ़ी है। तेंदुए के बदले व्यवहार को लेकर डब्लूटीआई इन दोनों राज्यों में अब शोध करने जा रही है। शोध में तेंदुए के बदले व्यवहार को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
 
 
 
तेंदुए के लिए अब बनेगा आपदा प्रबंधन प्लान
तीसरी बार शहर में तेंदुए के आने के बाद अब प्रशासन ने इसके लिए वन्य जीव आपदा प्रबंधन प्लान तैयार करने पर जोर दिया है। आपदा प्रबंधन प्लान बनाने की जिम्मेदारी वन विभाग को दी गई है। आपदा प्रबंधन में वन विभाग को यह बताना होगा कि तेंदुआ या अन्य वन्य जीव के आबादी में आने के बाद किस-किस विभाग की जिम्मेदारी रहेगी।
डीएम के निर्देश पर सोमवार को आपदा प्रबंधन के प्रभारी एडीएम (एफआर) गौरव वर्मा ने इसके लिए वन विभाग को पत्र जारी किया है। उनका मानना है कि तेंदुए हस्तिनापुर सैंचुरी और बिजनौर जिले की ओर से मेरठ में आबादी की ओर आ रहे हैं। उन्होंने वन विभाग के प्रभागीय अधिकारी को कहा है कि ऐसा देखने में आ रहा है कि वन्य जीव को लेकर विभाग में कोई आपदा प्रबंधन योजना तैयार नहीं की गई है। वन्य जीवों को सुरक्षित पकड़ने के उपकरणों का भी अभाव है। एडीएम ने वन अधिकारी से कहा है कि यदि भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो इसके लिए वन्य जीव आपदा प्रबंधन योजना तैयार कर ली जाए। यह स्पष्ट करने को कहा है कि किस विभाग से क्या-क्या किया जाएगा। जल्द ही वन्य जीव आपदा प्रबंधन योजना तैयार कर उपलब्ध कराने को कहा गया है।
 
 
खुले जंगल में अब नहीं होगी मेरठ के तेंदुए की वापसी
कैंट क्षेत्र में आया तेंदुआ अब जिंदगीभर के लिए कैद हो गया है। जंगल में आजादी से विचरण करने वाला यह जीव अब कभी खुले जंगलों में वापसी नहीं कर सकेगा और न ही अपना शिकार खुद कर पाएगा। अब यह पूरे जीवन दूसरों द्वारा दिए जाने वाले भोजन पर ही निर्भर रहेगा।
कैंट क्षेत्र से 14 अप्रैल को पकड़ा गया तेंदुआ सैकड़ों किलोमीटर के जंगल में आजादी से विचरण कर शिकार करता था। लेकिन अब यह अपना पूरा जीवन पिंजरे में गुजारने को मजबूर है। कानपुर चिड़ियाघर में इसका इलाज कर रहे डा. आरके सिंह ने बताया कि उसकी हालत को देख लगता है कि वह अब खुले जंगल में शिकार करने के लायक नहीं बचा है। उसके आगे के सीधे पैर की दो अंगुली कट चुकी हैं। जंगल में शिकार नहीं कर पाने की वजह से ही वह आबादी के बीच आसान शिकार की तलाश में आया था। अब इसे चिड़ियाघर में ही अपना आगे का जीवन गुजारना होगा। यदि उसे फिर से जंगल में छोड़ भी दिया जाए तो यह वहां शिकार नहीं कर पाएगा। आसान शिकार की तलाश में फिर से आबादी के बीच आकर लोगों में दहशत का कारण बनेगा।
 
मेरठ में उपलब्ध हो गई ट्रैंकुलाइजर गन
वन मुख्यालय मेरठ को ट्रैंकुलाइजर गन उपलब्ध हो गई है। इसके लिए वन अफसरों ने विशेषज्ञ से करार कर लिया है। सटीक निशाने में माहिर मुख्य वन संरक्षक, वनकर्मियों की ट्रेनिंग तो कराएंगे। आगे से तेंदुए के आने पर ऑपरेशन की जरूरत पड़ेगी तो वह खुद कमान संभालेंगे।
सोमवार को हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में मुख्य वन संरक्षक मुकेश कुमार ने बताया कि अब वन विभाग के मंडल मुख्यालय पर स्थायी रूप से ट्रैंकुलाइजर गन, डॉट और अन्य उपकरण उपलब्ध रहेंगे। उनका कहना था कि पहले से ही ट्रैंकुलाइजर गन यहां उपलब्ध थी, लेकिन इसे चलाने में माहिर का अभाव था। वन विभाग ने भारतीय वन्य जीव ट्रस्ट से करार किया हुआ है। जरूरत पड़ने पर टीम दिल्ली से बुला ली जाती है, लेकिन अब वन विभाग के मंडल मुख्यालय पर उपलब्ध ट्रैंकुलाइजर गन का प्रयोग करते हुए वन्य जीव को पकड़ा जाएगा।
वन जीव संरक्षक एसके अवस्थी ने कहा कि वन्य जीवों के आबादी में पहुंचने के बाद पकड़ना और फिर छोड़ आना समस्या का समाधान नहीं है। प्रत्येक श्रेणी का वन्य जीव अपना रिजर्व एरिया बनाकर रहना पसंद करता है। यदि किसी जानवर को एक स्थान से पकड़कर दूसरे जंगल में छोड़ आते हैं तो वहां वन्य जीव आपस में लड़ जाते हैं। ऐसी घटनाओं में एक-दूसरे के हमले में वन्य जीव मर भी सकते हैं।
 

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