अमर घोषित हो गए मलेरिया और डेंगू वाले मच्छर
अगर कोई दवाई ज्यादा खाई जाए तो वह शरीर पर बेअसर होने लगती है। ठीक यही बात मच्छरों के मामले में सामने आई है। सालों से जिन दवाओं का इस्तेमाल करके मच्छरों को मारने का जतन किया जा रहा था वह अब नाकाम...
अगर कोई दवाई ज्यादा खाई जाए तो वह शरीर पर बेअसर होने लगती है। ठीक यही बात मच्छरों के मामले में सामने आई है। सालों से जिन दवाओं का इस्तेमाल करके मच्छरों को मारने का जतन किया जा रहा था वह अब नाकाम साबित हो गई हैं। मलेरिया विभाग ने इन्हें नाकाम घोषित कर दिया है। लिहाजा, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों को रोकने की रणनीति खतरे में पड़ गई है।
मलेरिया विभाग का पूरा ताना बाना मच्छरों को नहीं पैदा होने देने के मकसद के साथ बुना गया था। उस मकसद में अब विभाग नाकाम साबित हो गया है। इसकी वजह एंटी लार्वा दवा फेल घोषित हो जाना है। अर्बन मलेरिया अधिकारी डॉक्टर रंजन गौतम ने बताया कि मच्छरों में इस दवा के लिए प्रतिरोधी तंत्र विकसित हो जाने से अब यह काम नहीं कर रही है। इसके चलते जमा हुए पानी में दवा का छिड़काव करने पर भी मच्छर पैदा हो रहे हैं। यही नहीं, फॉगिंग में इस्तेमाल होने वाली दवा और घरों में रात को सोते समय इस्तेमाल होने वाले लिक्विड रिपेलेंट आदि के लिए भी मच्छर आदी हो गए हैं। इनका मच्छरों की सेहत पर पड़ने वाला असर कम होता जा रहा है।
सूक्ष्म जीव भी होते हैं शिकार ::: एंटी लार्वा दवा का संघटक एबेट यानि ऑर्गो फॉस्फोरस कंपाउंड है। मलेरिया विभाग इसे कई साल से पानी में छिड़क रहा है। अब इस दवा के असर से मच्छर तो नहीं मर रहे, मगर पारिस्थितिकी तंत्र को मनुष्य के लिए सुरक्षित बनाने वाले सूक्ष्म जीवों का मरना जारी है।
इतनी आसानी से नहीं बढ़ सकते दवा में केमिकल
एंटी लार्वा दवा अब तभी कारगर हो सकती है जब उसके संघटक रसायनों की मात्रा बढ़ाई जाए। विशेषज्ञों के मुताबिक केमिकल बढ़ाने से पर्यावरण को काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसीलिए कुछ भी फैसला विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि के मानकों को ध्यान में रखते हुए बहुत सोच विचार के बाद ही हो सकता है।
‘ऐसे में यही तरीका सबसे कारगर होगा कि किसी जगह पर पानी इकट्ठा ही नहीं होने दिया जाए। क्योंकि, मच्छर इकट्ठा हुए पानी में ही पैदा होते हैं।’’
डॉ.रंजन गौतम, अर्बन मलेरिया अधिकारी
मच्छरदानी वाली चादर है सबसे सुरक्षित और कारगर
सीनियर फिजीशियन डॉ.राकेश कुमार ने बताया कि मच्छरों को भगाने के लिए मच्छर अगरबत्ती, क्रीम, ऑयल, लिक्विड रिपेलेंट आदि का इस्तेमाल इंसानों की सेहत को भी खतरे में डाल सकता है। खासकर जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है। मच्छरों से बचाव का मच्छरदानी ही सबसे सुरक्षित तरीका है।
मलेरिया के इलाज की दवा भी हो रही बेअसर
सालों से मलेरिया का इलाज जिस क्विनीन दवा से हो रहा था वह अब तमाम मरीजों पर असर ही नहीं कर रही है। फिजीशियन डॉ.सीपी सिंह के मुताबिक मलेरिया के पचास फीसदी से ज्यादा मरीजों को इससे ज्यादा तेज दवा देनी पड़ रही है। मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए रोग प्रतिरोधी तंत्र बेहद मजबूत होना जरूरी है।
महकमे पर छाए खतरे के बादल
मलेरिया विभाग अब खतरे में है। इसके इतिहास बन जाने का खतरा पैदा हो गया है। इंसेक्ट इंस्पेक्टर के पद कर्मियों से खाली हो गए हैं। एक जमाने से इंसेक्ट इंस्पेक्टर मच्छरों की पहचान करके उन्हें खत्म करने के तरीके सुझाते थे।