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जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने दी थी महराजगंज में पहली फांसी की सजा

‘मैं जहां रहता हूं, कार्यसंस्कृति विकसित करता हूं। त्वरित न्याय मेरी प्राथमिकता रहती है।’ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त बने वीरेन्द्र सिंह की पहली बात यही रही।...

जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने दी थी महराजगंज में पहली फांसी की सजा
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 17 Dec 2015 08:34 PM
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‘मैं जहां रहता हूं, कार्यसंस्कृति विकसित करता हूं। त्वरित न्याय मेरी प्राथमिकता रहती है।’ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त बने वीरेन्द्र सिंह की पहली बात यही रही। इस एक लाइन में उनके काम करने के तरीके और त्वरित न्याय की पहल झलकती है।
2005-2006 में महराजगंज में जिला जज रहते हुए उन्होंने सरकार बनाम साहब मामले में त्वरित न्याय की अवधारणा को मूर्त रूप भी दिया।16 मई 2006 को आरोपितों पर दोष सिद्ध होते ही उन्हें फांसी और उम्रकैद की सजा सुना दी। जिला बनने के बाद यह पहली फांसी की सजा थी, जो महराजगंज के न्यायिक इतिहास में दर्ज हो गई। हालांकि बाद में मामला हाईकोर्ट में पहुंचा। आज भी साहब बनाम सरकार मामले की नजीर पेश की जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लोकायुक्त नियुक्त होकर चर्चा में आए जस्टिस वीरेन्द्र सिंह का अतीत भी कड़े फैसलों से भरा और ऐतिहासिक रहा है। त्वरित न्याय की झलक उन्होंने महराजगंज में जिला जज रहते हुए दिखा दी थी। दो अक्तूबर 1989 को जिला बनने के बाद दो नवंबर 1990 में यहां दिवानी न्यायालय में काम शुरू हुआ।

इसी बीच कोतवाली थाना क्षेत्र के पिपरा कल्याण गांव में मछली मारने को लेकर सात जनवरी 2004 को विवाद हो गया। मामला किसी तरह शांत हुआ। इसी क्रम में आठ जनवरी 2004 को पंचायत बुलाई गई। बातचीत चल ही रही थी कि शाम छह बजे के करीब तत्कालीन प्रधान पति बाबूलाल, भतीजे शैलेष और बेटे अमित को गोली मार दी गई। कोतवाली पुलिस ने साहब पटेल के साथ ही तीन अन्य को हत्या, हत्या के प्रयास, हत्या करने की धमकी और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया।

मामले की सुनवाई शुरू हुई। इसी दौरान 10 अगस्त 2005 को जस्टिस वीरेन्द्र सिंह ने 15 जिला जज के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने हत्या जैसे जघन्य मामले की सुनवाई तेजी से की और 16 मई 2006 को फैसला सुना दिया। साहब पटेल को उन्होंने फांसी की सजा सुनाई। साथ में मौजूद संजय पटेल, हरिबंस और गोबरी को उम्रकैद से दंडि़त किया।

फांसी की यह सजा जिले के न्यायिक इतिहास में सदा के लिए दर्ज हो गई। क्योंकि इससे पहले महराजगंज के न्‍यायालय में किसी को फांसी की सजा नहीं सुनाई गई थी। इस फैसले के साथ आज जब भी सरकार बनाम साहब पटेल केस की चर्चा होती है तो अधिवक्ता, जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को याद करना नहीं भूलते।

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