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आरा: जातीय समीकरण से बनेगा-बिगड़ेगा खेल

देश के अनेक स्थानों में चुनावी परिदृश्य में जातिगत समीकरण बड़ी भूमिका निभाते हैं। बिहार की आरा लोकसभा सीट पर भी कुछ ऐसी ही रस्साकशी देखने को मिलती रही है। बेशक गत दशकों में कई नामी-गिरामी राजनीतिक...

आरा: जातीय समीकरण से बनेगा-बिगड़ेगा खेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Apr 2014 08:48 PM
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देश के अनेक स्थानों में चुनावी परिदृश्य में जातिगत समीकरण बड़ी भूमिका निभाते हैं। बिहार की आरा लोकसभा सीट पर भी कुछ ऐसी ही रस्साकशी देखने को मिलती रही है। बेशक गत दशकों में कई नामी-गिरामी राजनीतिक हस्तियां यहां के राजनीतिक फलक पर चमकी हों, लेकिन क्षेत्र की जरूरतें और यहां हमेशा से हावी रही जातीय खींचतान इस बार भी निर्णायक रहेगी।


आरा लोकसभा क्षेत्र
आर. के. सिंह बनाम मीना सिंह


1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बाबू कुंवर सिंह जैसे योद्धा और जगजीवन राम, रामसुभग सिंह, एपी शर्मा, बलिराम भगत, तपेश्वर सिंह जैसी हस्तियों को जन्म देने वाली आरा की धरती का राजनीतिक क्षेत्र में काफी हस्तक्षेप रहा है। नेहरू, इंदिरा, राजीव से लेकर अटल और मनमोहन के नेतृत्व में बनी सरकारों में यहां के नेताओं की भागीदारी रही है। यहां इस बार भी मुकाबला दिलचस्प है। ब्यूरोक्रेट्स की दुनिया में जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताने के बाद राजनीतिक क्षेत्र में भाग्य आजमाने वाले पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव राजकुमार सिंह भाजपा की ओर से उम्मीदवार हैं। गठबंधन की राजनीति की वजह से 23 साल बाद यहां से भाजपा के टिकट पर किसी को चुनाव लड़ने का मौका मिला है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रत्याशी और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री श्रीभगवान सिंह कुशवाहा से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। राजनीति और सहकारिता क्षेत्र की वजह से भोजपुर के लोगों में अमिट छाप छोड़ने वाले सहकारिता सम्राट स्व. तपेश्वर सिंह की बहू निवर्तमान सांसद मीना सिंह भी मैदान में हैं।

इधर, माले के प्रत्याशी राजू यादव के नजदीकी राजद उम्मीदवार के वोट में बिखराव का दावा कर रहे हैं। इन चारों दमदार प्रत्याशियों की वजह से आरा संसदीय सीट का चुनाव दिलचस्प हो गया है। इस चुनाव में दो फैक्टर ही ज्यादा हावी हैं। ऊपरी तौर पर मोदी लहर और भीतरी तौर पर जातीय समीकरण। लोगों के बीच चर्चा है कि मोदी लहर अगर वोट में तब्दील हुई तो भाजपा को फायदा हो सकता है, लेकिन अंतत: जातीय समीकरण के आधार पर ही खेल होगा। स्थानीय मुद्दे तो यहां कई हैं, जिसमें सड़क, बिजली, सिंचाई, रेलवे और शिक्षा आधारित समस्याएं शामिल हैं, पर मुद्दों की बात चुनाव में गौण है। जातीय समीकरण सब पर भारी है।

सभी प्रत्याशियों और उनके समर्थक मतदाताओं के बीच अपने-अपने तरीके से तर्क दे रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह को अपनी छवि, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के संग मोदी लहर के साथ का भरोसा है तो श्रीभगवान सिंह कुशवाहा सामाजिक न्याय के प्रति प्रेम और लालू के रेलवे में किए गए कार्यों को भुनाने में लगे हैं। इधर, जदयू की उम्मीदवार निवर्तमान सांसद मीना सिंह नीतीश के किए गए विकास का झंडा बुलंद कर रही हैं। स्व. तपेश्वर सिंह के व्यक्तित्व और किए गए कार्यों के साथ-साथ अपनी छवि और संसदीय क्षेत्र के कामकाज पर उन्हें पूरा भरोसा है। भाजपा, राजद और जदयू के प्रत्याशियों के अलावा माले भी लड़ाई को मजबूत करने की जद्दोजहद में है। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में रामेश्वर प्रसाद के निर्वाचन के बाद से माले इस संसदीय क्षेत्र से काफी उत्साहित रहती है। इस बार पार्टी ने एक नौजवान पर दांव खेला है।

सामाजिक जीवन और स्थानीय मुद्दों को लेकर संघर्ष में सक्रिय रहने वाले प्रत्याशी राजू यादव को भी वोटरों से काफी उम्मीद है। प्रत्याशियों के अपने-अपने दावे और व्यक्तित्व के बीच मतदाताओं के भी अलग रुझान हैं। युवाओं में वोट और मोदी दोनों के प्रति उत्साह दिख रहा है, लेकिन जातीय समीकरण को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। जनगणना के अनुसार भोजपुर की जनसंख्या 29,24,743 है। 17,94,364 वोटर्स 12 प्रत्याशियों के भाग्य विधाता बनेंगे। क्षत्रिय, यादव, मुस्लिम और अतिपिछड़ा चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं। हालांकि सभी की उम्मीद क्षत्रिय और यादव वोटों पर ही केन्द्रित है। वर्ष 1972 से पहले आरा शाहाबाद के नाम से जाना जाता था, इसके अंतर्गत सासाराम, बिक्रमगंज और बक्सर चार संसदीय क्षेत्र थे।

1972 में आरा से सासाराम अलग हुआ और 1991 में बक्सर। 1991 से पहले आरा के अंतर्गत बक्सर और आरा संसदीय क्षेत्र हुआ करता था। आरा से अलग होने वाले रोहताश में सासाराम और बिक्रमगंज संसदीय क्षेत्र (परिसीमन के बाद काराकाट) आता है। इन क्षेत्रों से राजनीति के कई धुरंधर चुनाव में न सिर्फ भाग्य आजमा चुके हैं, बल्कि क्षेत्र की राजनीति में अपनी अमिट छाप भी छोड़ चुके हैं।

1977 में आया अस्तित्व में आरा
1971 में पांचवीं लोकसभा के चुनाव तक आरा को शाहाबाद संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। उस वक्त कांग्रेस के बलिराम भगत शाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से सांसद थे। 15 मार्च 1971 से 18 जनवरी 1977 तक बलिराम भगत इस सीट पर काबिज रहे। 1977 की लहर में भगत चुनाव हारे और जनता पार्टी से चंद्रदेव प्रसाद वर्मा पहली बार गठित आरा संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए, तब से आरा संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में अलग पहचान पाने वाले आरा क्षेत्र के लोग उपप्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष से लेकर कई बार केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं। समता आंदोलन के प्रखर नेता बाबू जगजीवन राम उपप्रधानमंत्री से लेकर कई बार केन्द्रीय मंत्री बने।

ईमानदार व सादा छवि वाले रामसुभग सिंह लोकसभा में देश के पहले प्रतिपक्ष के नेता थे, जबकि पंडित अनंत प्रसाद शर्मा रेलवे, नागरिक उड्डयन समेत कई राज्यों के राज्यपाल बने। आरा संसदीय क्षेत्र से जीतने के बाद बलिराम भगत ने विदेश मंत्री से लेकर लोकसभा अध्यक्ष तक का सफर तय किया। निवर्तमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भले ही सासाराम संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हों, लेकिन भोजपुर की माटी में ही जन्मी और पली-बढ़ी हैं। इनके अलावा, इस ससंदीय क्षेत्र से चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, रामलखन सिंह यादव और कांति सिंह भी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में विभिन्न पदों पर रह चुकी हैं। 16वीं लोकसभा के चुनाव के बाद मतदाताओं को इस बार भी उम्मीद है कि उनके क्षेत्र का निर्वाचित प्रतिनिधि केन्द्रीय राजनीति में अहम रोल अदा करेगा।     

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