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निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा को प्रणाम

17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती है। शिल्प और वास्तुविद्या के अधिदेवता भगवान विश्वकर्मा निर्माण और सृजन के देवता...

निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा को प्रणाम
Mon, 12 Sep 2011 11:31 PM
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17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती है। शिल्प और वास्तुविद्या के अधिदेवता भगवान विश्वकर्मा निर्माण और सृजन के देवता हैं। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में जितने भी प्रसिद्घ शहर, नगर और राजधानियां थीं, मुख्यतया विश्वकर्मा जी की ही बनाई हुई थीं। यह भी पूरी तरह सच है कि सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर युग की द्वारिका तथा कलयुग के प्राचीन चर्चित शहर हस्तिनापुर को बनाने का श्रेय भी विश्वकर्मा जी को ही जाता है। पुराणों में इसका व्यापक विवरण मिलता है। स्पष्ट है कि जब इतने बड़े-बड़े नगर और राज्यों की राजधानियां विश्वकर्मा जी ने बनाईं और अपनी उत्कृष्ट निर्माण कला का प्रदर्शन किया तो वह हमारे सबसे महत्त्वपूर्ण देवता हैं। उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर की निर्माण कथा तो विश्वकर्मा जी का ही गुणगान करती है। इसलिए विश्वकर्मा जी का नित्य स्मरण और पूजा करना हर मनुष्य के लिए आवश्यक है, जिससे उसे धन-धान्य और सुख-समृद्वि निरंतर प्राप्त होती रहे। साथ ही विश्वकर्मा जी द्वारा निर्मित वास्तुशास्त्र के उपयोग से अपने मकान,दुकान का वास्तु करवा कर, विश्वकर्मा जी की पूजा करके आ रही परेशानियों से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए।

विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के परिवार के सदस्य हैं। ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे। धर्म की वस्तु नामक स्त्री, जो दक्ष की कन्याओं में से एक थी, से वास्तु के रूप में, सातवें पुत्र के रूप में उन्होंने जन्म लिया। इन्हें शिल्पशास्त्र का आदि पुरुष माना जाता है। इन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ। अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए विश्वकर्मा भी वास्तुकला के महान आचार्य बने। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ इनके पुत्र हैं। इन पांचों पुत्रों को वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में विशेषज्ञ माना जाता है। मनु को लोहे, मय को लकड़ी, त्वश्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और देवज्ञ को चांदी और सोने के कार्यों में महारत हासिल है। अपने भक्तों की पूजा से विश्वकर्मा जी जब संतुष्ट होते हैं तो उनकी मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण करते हैं। एक कथा के अनुसार काशी में एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था।
धार्मिक कार्यों में बराबर रुचि रहने के बावजूद उनको पुत्र और धन का अभाव बराबर खलता था। बहुत-सी पूजा-पाठ और संतों के दर्शन  के बावजूद उनके कष्ट दूर नहीं हुए। देवयोग से उनके एक ब्राहमण पड़ौसी से उनका यह दुख देखा नहीं गया। उसने रथकार दंपति को सुझाव दिया कि तुम अमावस्या तिथि को व्रत करो और भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा करो। वे ही तुम्हारे कष्टों को दूर करेंगे। दंपति ने ऐसा ही किया और भगवान विश्वकर्मा जी की कृपा से उनके कष्ट दूर हुए। वे संतानवान और धनवान हुए।

बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, कनार्टक व दिल्ली आदि में इनकी पूजा धूमधाम से की जाती है।

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