क्या है अनुवांशिक रोग, जानें इससे बचने के क्या है उपाए
माता-पिता से विरासत में मिलने वाले जीन्स में से कुछ हमारी सेहत पर भी असर डालते हैं। कुछ रोग हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। अगर आप सोचते हैं कि इन रोगों से जूझना...

माता-पिता से विरासत में मिलने वाले जीन्स में से कुछ हमारी सेहत पर भी असर डालते हैं। कुछ रोग हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। अगर आप सोचते हैं कि इन रोगों से जूझना आपकी नियति है तो एक बार सही तथ्य जरूर जान लें। बता रही हैं शमीम खान
रासत में केवल नैन-नक्श ही नहीं मिलते, कई रोग भी हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं। यह सही है कि हम विरासत में मिले जीन्स के गुणों व अवगुणों के साथ जन्म लेते हैं, लेकिन यह सही नहीं है कि हमारी सेहत पूरी तरह इस आनुवंशिकता की दी हुई नियति पर ही निर्भर करती है। पोषण, व्यायाम और बेहतर जीवनशैली से जीन्स की सेहत सुधारी जा सकती है और उनके बुरे प्रभावों को हम रोक सकते हैं।
क्या होते हैं आनुवंशिक रोग
जो रोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होते हैं, उन्हें आनुवंशिक रोग कहते हैं। यह रोग डीएनए में गड़बड़ी के कारण होते हैं। यह गड़बड़ी उत्परिवर्तन यानी म्यूटेशन के कारण होती है। उत्परिवर्तन केवल एक जीन या पूरे क्रोमोजोम में होता है। एक क्रोमोजोम में 20 हजार से अधिक जीन्स होते हैं। जीन्स की संरचना में बदलाव आना आनुवंशिक रोगों का मुख्य कारण है। जीन्स, डीएनए का भाग होते हैं। डीएनए, आरएनए और प्रोटीन मिलकर क्रोमोजोम या गुणसूत्र का निर्माण करते हैं। जीन्स का रूप बदलने के कारण गुणसूत्रों में बदलाव आ जाता है।
हमारे शरीर में लाखों कोशिकाएं हैं। हर कोशिका में 23 जोड़ों के रूप में कुल 46 गुणसूत्र होते हैं। यही गुणसूत्र एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक गुण व दोषों को पहुंचाते हैं। कोशिकाओं को नियंत्रित करने का कार्य गुणसूत्र में मौजूद डीएनए का होता है। हमें डीएनए का एक हिस्सा मां से और दूसरा हिस्सा पिता से मिलता है। डीएनए में हमारा जेनेटिक कोड होता है, जिससे माता-पिता की आदतें व रोग संतान तक पहुंचती हैं। इसी में खराबी से जेनेटिक डिसॉर्डर होने की आशंका बढ़ती है।
थैलेसीमिया
यह रक्त संबंधी एक आनुवंशिक बीमारी है,जो दो प्रकार की होती है-मेजर और माइनर। थैलेसीमिया माइनर तब होता है, जब बच्चे को क्षतिग्रस्त जीन माता-पिता में से किसी एक से मिलता है। जब माता और पिता दोनों से ही उसे क्षतिग्रस्त जीन मिलते हैं तो मेजर थैलेसीमिया की आशंका होती है। इसके आनुवंशिक कारकों के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं है, इसलिए इसके पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
कैसे बचें
गर्भवती महिला को गर्भावस्था के पहले 3 महीने में थैलेसीमिया की जांच करा लेनी चाहिए। अगर वह थैलेसीमिक है, तब पति की भी जांच करानी चाहिए। अगर दोनों को है, तब एंटी नेटल डायग्नोसिस कराना चाहिए, ताकि यह पता लग सके कि बच्चे को थैलेसीमिया होने का खतरा तो नहीं है। इसके साथ ही, शादी से पहले भी यह टेस्ट करा लें। अगर दोनों थैलेसीमिक हैं तो शादी नहीं करनी चाहिए।
कैंसर
कैंसर कई तरह का होता है। कैंसर होने के कई कारण हैं, जिनमें आनुवंशिक कारण भी महत्वपूर्ण है। खासकर स्तन, गर्भाशय और अंडाशय के कैंसर में आनुवंशिक कारण बड़ी वजह हैं। 50 वर्ष से कम की उम्र में पारिवारिक कारणों से कैंसर होने का खतरा अधिक रहता है।
कैसे बचें
- धूम्रपान से बचें। विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें।
- फलों और सब्जियों का सेवन अधिक करें।
- नियमित एक्सरसाइज करें, फिट रहें।
- तनाव से बचें।
- मैमोग्राम और पैप स्मियर टेस्ट कराना बेहतर। अगर मां या मौसी को स्तन या गर्भाशय का कैंसर हुआ है, तो 30 के बाद जांच करा लेना बेहतर होता है।
डायबिटीज
डायबिटीज यानी मधुमेह को वैश्विक महामारी माना जा रहा है। डायबिटीज से पीड़ित माता-पिता की संतान में इसके होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। यह जरूरी नहीं है कि जिन्हें डायबिटीज है, उनके बच्चों को भी यह रोग हो, पर यदि माता-पिता दोनों को डायबिटीज हो तो संतान में इस रोग के होने का खतरा 90 % तक बढ़ जाता है।
कैसे बचें
- अनुशासित जीवनशैली जिएं। नियमित व्यायाम करें। अपना वजन नियंत्रित रखें।
- संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें।
- अधिक देर तक भूखे न रहें, इससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर गड़बड़ा जाता है।
- ब्लड शुगर टेस्ट और डायबिटीज की स्क्र्रींनग कराएं। वैसे 45 के बाद जांच की सलाह दी जाती है, पर परिवार में किसी को यह रोग है तो कम उम्र से जांच करवाएं।
डिप्रेशन
डिप्रेशन के 40-50 % मामलों की वजह जेनेटिक होती है, जिनके माता-पिता या भाई-बहन इसके शिकार होते हैं, उनके चपेट में आने की आशंका 3 गुना तक बढ़ जाती है। अवसाद ही नहीं बायपोलर डिसॉर्डर, एल्जाइमर्स और डिमेंशिया जैसे मानसिक रोगों तथा आत्महत्या की प्रवृत्ति के पीछे भी आनुवंशिक कारक देखने को मिलते हैं।
कैसे बचें
- संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें।
- पानी और तरल पदार्थों का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें।
- तनाव न रखें। ध्यान करें। सकारात्मक लोगों के साथ रहें। अपनी नींद पूरी करें। नियमित एक्सरसाइज करें।
- अगर लंबे समय से तनाव है या नींद नहीं आ रही है तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से मिलें।
हृदय रोग
दिल को बीमार बनाने में आनुवंशिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आनुवंशिक कारणों से हुई हृदय संबंधी समस्याएं गंभीर हो सकती हैं और किसी भी उम्र के लोगों को सता सकती हैं। जिन लोगों के माता-पिता को 55 साल की उम्र से पहले दिल की बीमारियां हुई हैं, उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है। पुरुषों में इसका जल्दी असर दिखता है।
कैसे बचें
- अपना वजन कम करें। शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।
- संतुलित और पोषक भोजन करें। नमक कम खाएं।
- धूम्रपान और शराब का सेवन बंद करें ।
- पूरी नींद लें ।
- अगर हृदय रोगों का पारिवारिक इतिहास रहा है तो हर 6-12 महीने में कोलेस्ट्रॉल स्क्र्रींनग टेस्ट करा लें।
- विशेषज्ञ: डॉ. बी के अग्रवाल, सीनियर कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, सरोज सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल।
- डॉ. अनुराग महाजन, सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन, पीएसआरआई, दिल्ली।
अनुवांशिक रोगों के चार प्रकार
माता-पिता से विरासत में मिलने वाले जीन्स में से कुछ हमारी सेहत पर भी असर डालते हैं। कुछ रोग हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। अगर आप सोचते हैं कि इन रोगों से जूझना आपकी नियति है तो एक बार सही तथ्य जरूर जान लें। बता रही हैं शमीम खान
एक जीन का रूप बदलना
इसमें केवल एक जीन्स में उत्परिवर्तन होता है, जिससे उसकी संरचना में परिवर्तन आ जाता है। इसके उदाहरण है सिस्टिक फाइब्रोसिस, सिकल सेल एनीमिया आदि।
कई जीन्स का रूप बदल जाना
इसमें कई जीन्स में उत्परिवर्तन हो जाता है। इसके कारण हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, अल्जाइमर, कैंसर, मोटापा, गठिया जैसे रोग माता-पिता से बच्चों को मिलते हैं।
क्रोमोजोम्स में गड़बड़ी
गुणसूत्रों यानी क्रोमोजोम में खराबी आने से डाउर्न सिंड्रोम की आशंका बढ़ जाती है।
माइटोकॉन्ड्रियल इनहेरिटेंस
एक तरह का नेत्र रोग (लेबर्स हेरीडिटरी ऑप्टिक एट्रोफी), मिर्गी , भूलने की बीमारी (डिमेंशिया) जैसे रोग इसमें आते हैं।
अच्छे पोषण से होता है जीन्स में सुधार
मेथिओनाइन नामक प्रोटीन युक्त चीजें खाएं। इनमें तिल, बादाम, मछली, काली मिर्च, पालक व बींस शामिल हैं।
फोलिक एसिड कोशिकाओं को दोबारा बनाने और जीन्स की प्रतिक्रिया में सुधार करता है। हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं। विटामिन बी-12 जीन की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। इसके लिए चिकन, शेलफिश, दूध आदि लें।
विटामिन-6 जीन की प्रतिक्रिया में सुधार करता है। प्रोटीन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है। साबुत अनाज, ब्राउन राइस व रंग-बिरंगी सब्जियां खाएं।