हर किसी की है उपयोगिता
रेगिस्तान में मीलों फैली तपती रेत के बीच अकेला बढ़ता हुआ एक पेड़। गर्म हवाओं से उड़ती रेत पेड़ को अपनी परतों से ढकने को आमादा थी। सूरज पूरी कू्ररता के साथ पेड़ की शाखाओं को जला रहा था। पर तमाम...
रेगिस्तान में मीलों फैली तपती रेत के बीच अकेला बढ़ता हुआ एक पेड़। गर्म हवाओं से उड़ती रेत पेड़ को अपनी परतों से ढकने को आमादा थी। सूरज पूरी कू्ररता के साथ पेड़ की शाखाओं को जला रहा था। पर तमाम चुनौतियों के बावजूद पेड़ अपनी धुन में बढ़ रहा था।
एक दिन एक पक्षी वहां से गुजर रहा था। पक्षी ने पेड़ को देखा और उसकी शाखा पर बैठ गया। उसने रेगिस्तान में चारों ओर देखा। वह पेड़ से बोला, 'तुम बड़े अजीब पेड़ हो। क्यांे इस जलती मृत रेत के बीच खुद को जिंदा रखने का संघर्ष कर रहे हो? किसके लिए
तुम इतने कष्ट सह रहे हो? तुम्हारा कोई साथी पेड़ भी तो नहीं है यहां? किसे जरूरत है तुम्हारी यहां?'
'तुम्हें', पेड़ ने कहा।
'मुझे?', पक्षी ने हैरत से कहा। 'नहीं, मुझे तो तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है।'
पेड़ ने कहा, 'ठीक है। लेकिन सोचो, अगर मैं नहीं होता तो तुम्हें इस गर्म रेगिस्तान में विश्राम करने के लिए मेरी शाखाएं नहीं मिलतीं। तुम्हें इस तपती रेत पर बैठना पड़ता। अगर मैं नहीं होता तो कोई तुम्हें भी यहां अकेले बैठा देखकर कहता कि यहां किसी को तुम्हारी जरूरत नहीं है। तुम किसलिए जी रहे हो? इतना ही नहीं, मेरी ही शाखा पर बैठकर तुम मुझसे ही पूछ रहे हो कि किसे तुम्हारी जरूरत है?'
पक्षी ने इस बात पर विचार किया। उसे पेड़ से सहमत होना ही पड़ा। वह सोचने लगा कि यदि पेड़ नहीं होता तो इस मीलों दूर तक फैले रेगिस्तान में वह न सिर्फ अकेला होता, बल्कि अनुपयोगी भी।