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प्याज की मारी राजनीति

प्याज के दाम फिर आसमान पर हैं। यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह से दाम बेलगाम हुए हों। इससे पहले भी कई बार प्याज के दामों ने राजनीतिक तूफान खड़े किए हैं। जब-जब इसके दाम आसमान पर पहुंचे हैं,  तब-तब...

Admin Wed, 26 Aug 2015 10:42 PM
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प्याज के दाम फिर आसमान पर हैं। यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह से दाम बेलगाम हुए हों। इससे पहले भी कई बार प्याज के दामों ने राजनीतिक तूफान खड़े किए हैं। जब-जब इसके दाम आसमान पर पहुंचे हैं,  तब-तब किसी न किसी की कुर्सी हिली है। यही वजह है कि केंद्र सरकार इस बार समय रहते सक्रिय हो गई है। इसकी कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। पंकज कुमार पांडेय की रिपोर्ट

आमतौर पर हम प्याज को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं देते। तमाम दूसरी सब्जियों की तरह प्याज के साथ कोई ग्लैमर नहीं जुड़ा। एक तरफ  जहां तमाम तरह के शोरबेदार व्यंजनों की कल्पना आप प्याज के बिना नहीं कर सकते, वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं, जो सब्जी में प्याज डाला हो तो उसे खा न पाएं। कुछ लोग उससे पारंपरिक लगाव रखते हैं तो कुछ लोग पीढ़ी दर पीढ़ी उससे नफरत ही करते रहे हैं।

कुछ लोगों को उसकी गंध नहीं भाती और कुछ लोग उन आंसुओं की वजह से उससे दूर रहना पसंद करते हैं, जिनका कारण प्याज होता है। लेकिन प्याज की एक और भी फितरत है। कुछ साल बाद सब्जी बाजार में उपेक्षित-सा रहने वाला प्याज अचानक उठता है और सरकारों की नींव हिला देता है। भले ही इसके पीछे मौसम या फसल-चक्र की मेहरबानी रही हो, लेकिन इसने बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों को रुलाया है और सरकारें भी गिराई हैं।

आपातकाल के बुरे दौर के बाद जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो यह सरकार अपने ही अंतर्विरोधों से लड़खड़ा जरूर रही थी, लेकिन फिर भी सत्ता से बेदखल हो चुकी इंदिरा गांधी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। अचानक ही प्याज की कीमतें बढ़ने लगीं तो उन्हें एक मुद्दा मिल गया। उनकी पार्टी ने इसका इस्तेमाल भी नाटकीय ढंग से किया।

प्याज की बढ़ती कीमतों की तरफ ध्यान खींचने के लिए कांग्रेस के नेता सीएम स्टीफन संसद में प्याज की माला पहन कर गए, जिस पर जनता पार्टी के नेता पीलू मोदी ने टिप्पणी की थी, ‘सरकार को बताना चाहिए कि टायरों के दाम कब बढ़ रहे हैं’। पर जल्द ही इस मुद्दे का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा। कहा जाता है कि जनता पार्टी की सरकार भले ही अपनी वजहों से गिरी हो, लेकिन कांग्रेस ने उसके बाद का चुनाव प्याज की वजह से जीत लिया।

यह बात अलग है कि प्याज की वजह से सत्ता में आई कांग्रेस भी इसकी कीमतों का बढ़ना नहीं रोक पाई और एक साल बाद फिर प्याज ने रुलाना शुरू कर दिया। इस बार उसके विरोधियों ने प्याज का नाटकीय इस्तेमाल किया, लेकिन बात बनी नहीं। लोकदल नेता रामेश्वरम सिंह प्याज का हार पहन कर राज्यसभा में गए तो सभापति एम हिदायतुल्ला ने उन्हें खरी-खोटी सुना दी।

केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो 1998 में प्याज की कीमतों ने फिर रुलाना शुरू कर दिया। अटल जी ने कहा भी कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है। शायद उनका इशारा था कि कीमतों का बढ़ना राजनैतिक षड्यंत्र है। उस समय दिल्ली प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव सिर पर थे। तब प्याज के असर से बचने के लिए सरकार ने कई तरह की कोशिशें की, लेकिन दिल्ली में जगह-जगह प्याज को सरकारी प्रयासों से सस्ते दर पर बिकवाने की कोशिशें ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुईं।

और जब चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 15 साल बाद प्याज ने उन्हें भी रुला दिया। अक्तूबर 2013 को प्याज की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज की टिप्पणी थी कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा। वही हुआ। भ्रष्टाचार के साथ महंगाई का मुद्दा चुनाव में एक और बदलाव का साक्षी बना।

अब फिर प्याज की कीमतों में उछाल का सीजन है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस समय सामने कोई चुनाव नहीं है। बिहार का विधानसभा चुनाव अभी दूर है और उम्मीद है कि अगले दो महीने में नई फसल आने के साथ कीमतें नीचे आने लगेंगी।                   
इस साल प्याज का हाल
देश में हर ओर प्याज के बढ़े दामों की चर्चा है। महाराष्ट्र प्याज का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता है। प्याज की एशिया में सबसे बड़ी मंडी लासलगांव यहीं है। पिछले दिनों इस मंडी में थोक प्याज का भाव 50 से 60 रुपये किलो था। महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक में भी प्याज काफी मात्रा में होता है, लेकिन वहां भी इस बार उत्पादन कम रहा। अन्य जगहों पर भी यही हाल है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का कहना है कि हर साल अगस्त से लेकर अक्तूबर तक यही होता है। इस साल उत्पादन कम हुआ है। इससे मूल्यों में वृद्धि है।

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