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समझें ना की ताकत

डेव उर्सिलो, रोड आइलैंड में योग टीचर, लेखक, क्रिएटिव एंटरप्रिन्योर और ब्लॉगर। मानते हैं कि दूसरों के प्रति प्रेम के रूप में स्व की अभिव्यक्ति है। 'एक व्यक्ति के कहे वचनों और उनके पीछे के वास्तविक...

समझें ना की ताकत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 16 Aug 2015 08:22 PM
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डेव उर्सिलो, रोड आइलैंड में योग टीचर, लेखक, क्रिएटिव एंटरप्रिन्योर और ब्लॉगर। मानते हैं कि दूसरों के प्रति प्रेम के रूप में स्व की अभिव्यक्ति है।

'एक व्यक्ति के कहे वचनों और उनके पीछे के वास्तविक विचारों में दो विपरीत ध्रुवों जैसा अंतर हो सकता है।'
- परमहंस योगानंद


जब आप 'ना' सुनते हैं, तो क्या लगता है? ऐसा जैसे किसी को निराश कर वापस भेजा जा रहा है? उपेक्षा या खारिज किए जाने का एहसास? स्वार्थी होना? कोई अपराधबोध? पहले बताए सभी विचार? या फिर ऐसा कुछ भी नहीं? अगर शब्दों के साथ हमारा कोई रिश्ता होता है तो 'ना' शब्द के साथ यह रिश्ता बड़ा पेचीदा है। 'ना' के सैकड़ों मतलब हो सकते हैं। जैसा कि योगानंद कहते हैं, 'शब्दों के पीछे छिपे विचारों के आधार पर उनके अनगिनत अर्थ हो सकते हैं। इसमें वह अर्थ भी शामिल है, जो हमने समझा है।' रोजमर्रा की बातचीत में हम 'ना' के कई नकारात्मक संकेत निकाल लेते हैं।

ना मतलब, करने में असमर्थ, जान कर भी नहीं करना, किसी को नीचा दिखाना, किसी विचार की उपेक्षा करना, किसी की नाराजगी मोल लेना, उलझन उत्पन्न करना, असहमति दिखाना, अधिकार जमाना, निंदा करना और चालाकी। यहां मैं बात करना चाहता हूं 'ना' शब्द के गलत और अनुचित इस्तेमाल की। सबसे पहले मैं यह स्वीकारना चाहता हूं कि मैं 'हां' शब्द का मुरीद हूं। लेकिन धीरे-धीरे मैंने सीखा कि हमारी 'हां' की तरह ही हमारी 'ना' के भी मायने हैं। एक ही जिंदगी है। हम एक ही समय में सब कुछ नहीं चुन सकते। पहले विकल्प छांटते हैं, उन्हें छानते हैं, उन्हें जांचते हैं, चुनाव करते हैं और उसके अनुसार काम करते हैं। हर 'हां', कहीं  'ना' होती है और हर  'ना', कहीं 'हां' हो जाती है।

कैसे मदद करता है 'ना'
'ना' यानी अपनी निजता और ऊर्जा को बचाना: कभी-कभी ऐसा लगता है कि आप सबके प्रति समर्पित हैं, सिवाय अपने? अपनी सभी योजनाओं, चाहतों और चुनावों को क्या दूसरों की अपेक्षा और इच्छा की भेंट चढ़ाना सही है?  'ना' कहना सीखना अपने समय, निजता और ऊर्जा को बचाने का आसान व सीधा तरीका है।

'ना' यानी किस बात पर कितना ध्यान: जैसे ही आप किसी चीज पर ध्यान देने का मन बनाते हैं तो कई चीजों को 'ना' कहने लगते हैं। उदाहरण के लिए यदि कुछ लिखना है, तो फेसबुक या वॉट्सएप से ध्यान हटाना, भोजन को मनोयोग से खाने के लिए फोन से दूर रहना, वजन कम करना है तो चीनी को ना कहना आदि।  'ना' को कैसे शब्द और आवाज दी जाए इस पर सोचना जरूरी है।  

'ना' यानी प्राथमिकताएं चुनने का माध्यम: आप के सिवा अन्य कोई और आपकी प्राथमिकताएं तय नहीं कर सकता। 

'ना' यानी खुद पर विश्वास: 'ना' यानी अपने लिए खड़े होना। भले ही स्वास्थ्य को सही रखने के लिए चॉकलेट केक न खाने की बात हो या फिर घर कार चलाकर सुरक्षित पहुंचने के लिए अधिक बीयर पीने से मना करना, आपको अपनी सुरक्षा और लाभ के लिए खुद कदम उठाना पड़ता है। अपने लिए कुछ चीजों को ना कहना दृढ़ इच्छाशक्ति विकसित करना है।

'ना' यानी दूसरों पर विश्वास करना: जब आप 'ना' कहने का अभ्यास करते हैं तो आपको अपने करीबियों को भी इस बात की स्वतंत्रता देनी होती है। दूसरे की 'ना'को सहजता से स्वीकारना सीखना होता है, जिसमें आप दूसरों के प्रति सहानुभूति, करुणा और समझ विकसित करते हैं। जब भी किसी से 'ना' सुनें तो उन पर विश्वास करें कि वे भी अपने रास्ते व हित की तलाश कर रहे हैं। 

'हां' मतलब भी कहीं 'ना' ही है: चूंकि हमारे पास समय सीमित होता है, इसलिए हमारा किसी चीज को 'हां' कहना, कहीं न कहीं 'ना' हो जाता है। इसमें किसी का अनादर करना या किसी को दुखी करने जैसा कुछ नहीं है। जब आपके पास समय सीमित होता है तो आपके चुनाव ही सब कुछ होते हैं।

'ना' यानी किसी दूसरी चीज को 'हां' बोल पाना: कितनी बार हर किसी को 'हां' बोलना लगता है कि मानो आफत मोल ले ली है या हम काम के बोझ में दब गए हैं। हमारा 'हां' बोलना, बेचैनी, ऊब और गुस्से का कारण बन जाता है। यही वजह है कि 'ना' मायने रखती है, हमें उस बेचैनी और अपराधबोध से मुक्त रखती है, जिसके हम अधिकारी नहीं हैं। हम दूसरी बेहतर चीजों के लिए समय निकाल पाते हैं।

'ना' बोलने का सही तरीका
अब प्रश्न है कि कैसे 'ना' कहा जाए, जिससे ये न लगे कि आप स्वार्थी हैं, नकारात्मक हैं या फिर किसी की उपेक्षा कर रहे हैं।
- यह विचार करें कि क्यों 'ना' कह रहे हैं। अपनी जरूरतों, दायित्वों व प्राथमिकताओं पर ध्यान दें। आपको फिलहाल 'क्यों' ढूंढ़ना है, 'क्या' नहीं।
- अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले यह सोच लें कि आपकी 'ना' की अपेक्षा कौन कर रहा है? अच्छा दोस्त, दोस्त, अभिभावक, पार्टनर, सहकर्मी या कोई और। 
- सबसे पहले अच्छी बात कहें। चूंकि आपको 'ना' कहना है। इसका अर्थ यह नहीं कि आप उदासी, अपराधबोध या नकारात्मक ऊर्जा के साथ बोलें। खुश होकर बात करें। दूसरे का आभार व्यक्त करें और उसके बाद अपनी असमर्थता जाहिर कर दें।
- ''ना' कहने पर अपराधबोध महसूस न करें। अगर ऐसा लगता है तो खेद प्रकट कर दें। आपकी 'ना' सहज प्रतीत होनी चाहिए।
- जरूरत महसूस होती है तो उसकी वजह भी पूरी ईमानदारी के साथ बता दें। अगर लगता है कि निजी समय की जरूरत है, आपको कुछ काम करना है या कुछ भी। वजह बताने का मतलब है कि आप दूसरों के साथ विश्वास का एक संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
- यदि जरूरत महसूस होती है तो सामने वाले व्यक्ति को एक विकल्प भी सुझाएं, खासतौर पर यदि आपकी 'ना' आपकी व्यस्तता व निजी कामों के कारण है और इससे काम पर फर्क पड़ सकता है, तो ऐसा जरूर करें। अन्यथा विकल्प का बोझ भी खुद पर रखने की आवश्यकता नहीं है।


तीन नियम
1- मन:
काम करते हैं, पर कुढ़ते भी रहते हैं। किस्मत को कोसेंगे, पर बदलाव के लिए कुछ नहीं करेंगे। नतीजा खुद पर गुस्सा और झुंझलाहट। प्रसिद्ध उपन्यास 'फाइट क्लब' के लेखक चक पॉलोनिक कहते हैं, 'आपने जो काम चुना है, उसमें खुशियां ढूंढ़ें। हरेक काम, संबंध और घर! यह आपकी जिम्मेदारी है कि इन्हें प्यार करें या फिर इन्हें बदलें।'

2- वचन: हमें दूसरों की कमियां गिनाने में बड़ा मजा आता है। यूं भी कहा ही जाता है कि सोचना मुश्किल है और आलोचना करना आसान। पर अमेरिकी उपन्यासकार एफ. स्कॉट फिटजेरल्ड कहते हैं, 'जब भी किसी की खामियां गिनाने का मन हो तो ये याद रखें कि दुनिया में हर किसी को वे सुविधाएं नहीं मिलीं, जो आपके पास हैं।'

3- काया: शरीर हमारा है,  काम भी हमें ही करना है, तो कभी भी करें! सही बात है। क्या करना है, क्या नहीं करना है, हंसना है या उदास रहना है, सोना है या व्यायाम करना है, यह हमारा फैसला है। पर किसी ने खूब कहा है कि आज आप जो भी करते हैं, वह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके लिए आप अपने जीवन का एक दिन बलिदान कर रहे हैं।
(www.daveursillo.com)

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