अध्यात्म पथ प्रदर्शक गुरु
क्या है शिक्षा और क्या है ज्ञान? साल में बारह-तेरह पूर्णिमाएं... हर पूर्णिमा का अपना वैशिष्ट्य। गुरु पूर्णिमा में क्या खास है? सृष्टि, पटना, बिहार अपने भौतिक स्वरूप और उससे जुड़ी हुई अन्य...
क्या है शिक्षा और क्या है ज्ञान? साल में बारह-तेरह पूर्णिमाएं... हर पूर्णिमा का अपना वैशिष्ट्य। गुरु पूर्णिमा में क्या खास है? सृष्टि, पटना, बिहार
अपने भौतिक स्वरूप और उससे जुड़ी हुई अन्य गतिविधियों को समझने की कोशिश है शिक्षा। इसमें हम अपना भौतिक इतिहास, वर्तमान, भविष्य तथा धर्म, अर्थ, काम (पुरुषार्थ चतुष्टय के तीन पद) समझने का प्रयत्न करते हैं। चेतना का स्तर वृहद होता है तो हम भौतिक विषयों के होने को जानना चाहते हैं। इस के लिए दिव्यता की आवश्यकता है। यहां बहुत कुछ होता है... होता हुआ दिखता नहीं है, सिर्फ परिणाम सामने आता है तो वह भी प्रमाण है। भौतिक प्रमाण देने वाला शिक्षक और आध्यात्मिक प्रमाण देने वाला गुरु है। इस तरह शिक्षा भौतिक विषयों को समझाती है, ज्ञान अलौकिक विषयों को। शिक्षा में जब अनुभव और साधना जुड़ते हैं तो वह ज्ञान बनता है।
पूर्णिमा का चंद्रमा पूर्ण कलाओं को लेकर आता है और शिष्य की गुरु से यह अपेक्षा होती है कि वे सारे गुणों के साथ अवतरित होकर उसे ज्ञान दे।
इसके ठीक अगले दिन से श्रावण का महीना प्रारंभ होता है, जिसमें 27 दिन श्रवण करना है। यह आजकल सावन कहलाने लग गया, जो श्रवण का अपभ्रंश है। अब खेती नहीं हो रही है, पानी भर गया है। लगातार बारिश के कारण अन्य कोई कार्य कर नहीं सकते। मंगल कार्य इस समय करते नहीं। घास, शाक-सब्जियां दूषित हो गई हैं, इसलिए उनको ग्रहण भी नहीं करेंगे तो अधिकतम उपवास रखेंगे। बहुत सारी वनस्पति विष बन गई है तो उसे शिवजी को अर्पित कर देते हैं कि 'लो भई, विष तुम्हारे हिस्से।' दूध का सेवन भी नहीं करते, क्योंकि गाय उसी खराब भोजन को खाकर विषैला दूध देती है। तो इस समय में मनुष्य जाति से अपेक्षा होती है कि वह गुरु दरबार में उपस्थित हों, उपवास रखें इन सत्ताइस दिन। प्रात: व सन्ध्या गुरु को श्रवण करें। वह ज्ञान लेकर फिर हम 11 महीने तक अपना कार्य करते हैं। हालांकि समय की बाध्यता व काल बदलने की वजह से बहुत सारी प्रथाएं अपने मूल स्वरूप में नहीं रह गई हैं। गुरु पूर्णिमा को तो लोग गुरु के समक्ष आ जाते हैं, लेकिन 27 दिन गुरु का सान्निध्य नहीं ले पाते।
प्रस्तुति: अजय विद्युत