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अपनों के बारे में अच्छा ही सोचें

मर्सी शिमॉफ, अमेरिका की नामचीन मोटिवेशनल स्पीकर। ‘चिकन सूप फॉर द सोल’ श्रृंखला की छह पुस्तकों की लेखिका हैं। मुसीबत के क्षणों में यदि आसपास के लोग अच्छी मंशा रखने वाले हों तो जिंदगी...

अपनों के बारे में अच्छा ही सोचें
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Apr 2015 09:39 PM
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मर्सी शिमॉफ, अमेरिका की नामचीन मोटिवेशनल स्पीकर। ‘चिकन सूप फॉर द सोल’ श्रृंखला की छह पुस्तकों की लेखिका हैं।

मुसीबत के क्षणों में यदि आसपास के लोग अच्छी मंशा रखने वाले हों तो जिंदगी जादू सी दिखायी देती है। बाधाएं पहाड़ नहीं लगतीं और दुख अपना रास्ता बदल देते हैं। आपके आसपास कैसे लोग हैं, बाधाओं को दूर करने वाले या फिर आपकी सफलता को बाधित करने वाले?

हर कोई चाहता है कि आने वाला हर पल पहले से अधिक खुशी, सफलता और प्यार देने वाला हो। यह मानवीय स्वभाव है। यहां तक कि कई बार हम किसी चमत्कार के होने की उम्मीद कर रहे होते हैं। आकर्षण का नियम भी यही कहता है। सकारात्मक चीजों पर विचार करें और जीवन में जो मिला है, उसके प्रति आभार व्यक्त करें। बावजूद कुछ ऐसा है कि आप खुद को फंसा हुआ महसूस करते हैं।

क्यों होता है ऐसा?
ऐसा होने के कई कारण हो सकते हैं,  पर एक बड़ा कारण यह है कि आपके आसपास ऐसे लोग अधिक हैं, जिनके विचार आपकी  सफलता और खुशी के पक्ष में नहीं हैं। जो लक्ष्य प्राप्ति में आपकी मदद नहीं करते। हालांकि मेरा मानना है कि हर व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के बीच सर्वश्रेष्ठ कार्य करता है, पर मैं यह भी मानती हूं कि आपके आसपास के लोग कई बार अनजाने ही आपको पीछे कर देते हैं। आपकी तरक्की की रफ्तार को रोक लेते हैं। इसलिए खुद से पूछें: ‘क्या मेरी जिंदगी में ऐसे लोग हैं, जो अवरोध बनकर मेरी सफलता को रोक रहे हैं? क्या ऐसे लोग हैं, जो किसी कारणवश नहीं चाहते है कि मैं खुश रहूं, तरक्की करूं?  मेरी प्रिय सहेली और साझेदार डेबरा पोनेमन ने हाल में मुझे अपना अनुभव बताया। यह उन्हें तब हुआ जब वे अस्पताल में थीं। उनके ही शब्दों में पढ़ें यह कहानी..

‘मैं सोच रही थी कि मुझे फ्लू हुआ है। पर चार दिन बाद भी सुधार नहीं होने पर मैंने डॉक्टर को बुलाया। उन्होंने मुझे तुरंत अस्पताल जाने को कहा। मेरे द्वारा बताए गए अस्पताल के बारे में उन्होंने कहा कि वह 9 मिनट की दूरी पर है, जिसमें जान को खतरा होगा। वे मुझे ऐसे अस्पताल ले जा रहे थे, जो कि तीन मिनट की दूरी पर था। उस समय मेरा ब्लडप्रेशर 67/28 था। जांच में यह भी सामने आया कि मेरे खून में दो जानलेवा बैक्टीरिया हैं। जब मैं इमरजेंसी रूम में पहुंची, तो मेरी चेतना कमजोर होने लगी थी।

ऐसा लग रहा था कि मृत्यु पास आ रही है। मेरी आंखें खुली थीं और मैं देख रही थी कि कमरे में क्या-क्या हो रहा है। आंखें बंद होने पर भी मैं कमरे में हो रही चीजों को चलती हुई रोशनी की तरह देख रही थी। तब तक मेरे जेहन में सब ठीक था। तभी मुझे आसपास के लोगों के शब्दों और  विचारों का एहसास हुआ। कुछ को लग रहा था कि मैं नहीं बचूंगी तो कुछ को मेरे बचने की उम्मीद थी। तभी एक नर्स मेरे पति के पास गयी। अपना हाथ उनके कंधे पर रखकर बोली, ‘आप चिंता न करें। वह जल्द ठीक हो जाएंगी।’  जैसे ही ये शब्द सुने, मुझे लगा कि उसके मुंह से निकल रही ऊर्जा मेरे भीतर पहुंचकर साहस दे रही है। कुछ समय बाद डॉक्टर आए। उन्होंने कहा, जल्दी ब्लडप्रेशर बढ़ाओ, वरना हम इन्हें खो देंगे। मैंने इस नकारात्मक ऊर्जा को भी अनुभव किया। ये ऊर्जा मुझे कमजोर कर रही थी। मेरा जीवन एक डोर के सहारे अटका था। मुझे स्पष्ट दिख रहा था कि यदि कमरे में मौजूद सब यही सोच रहे हों कि मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगी तो निश्चित ही मैं तुरंत सही होकर बैठ जाऊंगी।’

वैज्ञानिक आधार
कुछ साल पहले लोकप्रिय लेखक लेन मेकटेगर्ट ने एक विश्व स्तरीय आंदोलन ‘द इन्टेंशन एक्सपेरिमेंट’ की शुरुआत की। यह वैज्ञानिक मानकों पर किए गए प्रयोगों की श्रृंखला है, जिसमें विचारों की ताकत व ऊर्जा से भौतिक जगत में आने वाले बदलावों का अध्ययन किया गया है। अपने इस व्यापक शोध में लेन ने लंदन में रहने वाले लोगों के कुछ समूहों को चार अलग टारगेट पर अपने विचार प्रेषित करने को कहा। इन टारगेट में दो तरह के शैवाल, एक पौधा और एक मनुष्य था। जर्मन प्रयोगशाला में चिकित्सकों ने सभी टारगेट में जैविक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव देखे।

इसके बाद लेन ने आठ लोगों के समूह बनाए और प्रत्येक समूह के लोगों को किसी सदस्य की सफलता पर अपनी सोच को केंद्रित करने के लिए कहा। परिणाम चौंकाने वाले रहे। किसी एक के संबंध में किए गए भाव उन भावों से भी विस्तृत थे, जो वह व्यक्ति अपने बारे में सोचते थे। ये भाव बीमारी ठीक होने, रिश्तों में सुधार, आर्थिक उतार-चढ़ाव, प्रॉपर्टी की बिक्री, खोई हुई वस्तु दोबारा मिलने से जुड़े थे। अब मैं आपसे पूछती हूं, यदि ये सब सच है तो क्या यह अच्छा नहीं रहेगा कि हमारे आसपास ऐसे शुभचिंतक लोग रहें, जो हमारी सफलता, खुशी और बेहतरी की इच्छा रखते हों। क्यों नहीं कुछ ऐसे दोस्तों का एक समूह बनाएं, जो एक-दूसरे के लक्ष्यों और इच्छाओं की पूर्ति के लिए सकारात्मक विचार व इच्छाएं रखे। आप भी आठ, छह या चार लोगों का ऐसा समूह बनाएं और देखें कि आपके जीवन में कितने चमत्कार होते हैं। मैं आप सबके प्रति अपनी सद्इच्छा व्यक्त करती हूं।

तीन नियम
1-  मन:
किसी की कही कड़वी बातें या फिर पुरानी दुखद यादें आसानी से नहीं भूलतीं। मन कड़वाहट से भर जाता है या फिर आंसू रुकने का नाम नहीं लेते। लेकिन लेखक डॉ. स्टीव मेराबोली कहते हैं, ‘आंसुओं को रोकें नहीं। रोएं, माफ करें, सीखें और आगे बढ़ जाएं। अपने आंसुओं से भविष्य की खुशियों के बीजों को सिंचित होने दें।’

2-  वचन: कुछ बातें हम खुद से करते हैं, तो कुछ दूसरों से। दोनों तरह की बातें जीवन को प्रभावित करती हैं। पर अमेरिकी निवेशक व मोटिवेशनल स्पीकर रोबर्ट टी कियोसाकी कहते हैं, ‘मुख से कही जाने वाली बातें जीवन का निर्धारण नहीं करतीं। ये हमारी खुद से की जाने वाली काना-फूसी है, जो हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है।’

3-  काया: सांस और विश्वास जीवन के दो बड़े सहारे हैं। सांसें आती जाती हैं और जीवन अपनी गति से बढ़ता जाता है। पर जीवन को किस जीवंतता के साथ जीया, यह बड़ा प्रश्न है। प्राचीन चीन के चिंतक जियांग शेंग कहते हैं कि अंत में यह महत्वपूर्ण नहीं होगा कि कितनी सांसें लीं, गौर करने लायक बात यह होगी कि कितने ऐसे पल सामने आए, जब सांसें रुक सी गयीं।
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