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लेखक का आस-पड़ोस

‘ताकि देश में नमक रहे’ वरिष्ठ कथाकार असगर वजाहत के लेखों और संस्मरणों का संकलन है। पुस्तक दो खंडों में है - पहला खंड ऐसे साहित्यिक लेखों का है, जो प्राय: किसी न किसी लेखक पर केंद्रित है।...

लेखक का आस-पड़ोस
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Apr 2015 08:09 PM
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‘ताकि देश में नमक रहे’ वरिष्ठ कथाकार असगर वजाहत के लेखों और संस्मरणों का संकलन है। पुस्तक दो खंडों में है - पहला खंड ऐसे साहित्यिक लेखों का है, जो प्राय: किसी न किसी लेखक पर केंद्रित है। इनमें फैज़ अहमद ‘फैज़’, मजाज़, इंतिजार हुसैन, शैलेंद्र, कुर्रतुल एन हैदर, नेमिचंद्र जैन, अरुण प्रकाश, ब्रजेश्वर मदान, शहरयार, राजेंद्र यादव शामिल हैं। वजाहत ने बेगम अख्तर पर भी लिखा है। इंतिजार हुसैन की जन्मभूमि की यात्रा का संस्मरण दिलचस्प है। किताब के दूसरे हिस्से में समकालीन सांस्कृतिक परिदृश्य: हिंदी भाषा, लिपि और उर्दू से उसके रिश्ते का सवाल; सिनेमा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि पर लेख हैं। लेखक न सिर्फ वस्तुस्थिति का विश्लेषण करता है, बल्कि गहरा रहे सांस्कृतिक संकट से उबरने के लिए व्यावहारिक पहल के लिए प्रेरित भी करता है।
ताकि देश में नमक रहे, असगर वजाहत, सं. विज्ञान भूषण, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली-2, मूल्य : 390 रु.


वर्तमान की लोककथा

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक सदी से भी अधिक समय पहले ‘अंधेर नगरी-चौपट राजा’ शीर्षक से एक नाटक लिखा था। शासक की निरंकुशता और शासन तंत्र की विद्रूपता पर उसमें करारा प्रहार किया गया था। इतने दिनों बाद बहुत सारी चीजें बदल गई हैं और आज का ‘राजा’ चौपट नहीं, बल्कि बेहद चतुर-चालाक हो गया है। इसलिए उसकी निरंकुशता और शासन तंत्र की विद्रूपता और भी ज्यादा बढ़ गई है। वरिष्ठ लेखिका मन्नू भंडारी का यह नाटक इसी बदले हुए दौर में जनसामान्य के भीतर गहराती निराशा और आक्रोश को व्यक्त करता है। यह बद से बदतर होती गई परिस्थितियों के खिलाफ जनता के विद्रोह को भी व्यक्त करता है। वास्तव में यह लोककथा के बाने में वर्तमान की कहानी है, जो दिखलाती है कि उत्पीड़ित जनता को अपनी दुर्दशा से उबरने के लिए संगठित होकर सामने आना ही एकमात्र रास्ता है।
उजली नगरी चतुर राजा, मन्नू भंडारी, राधाकृष्ण प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली-2,  मूल्य: 195 रु.

जीवन की उष्मा

अनिल जनविजय की कविताएं बौद्धिकता के भार से मुक्त एक संवेदनशील दिल की सहज अभिव्यक्ति हैं। वह दूर की कोई कौड़ी लाने की बजाय रोजमर्रा के जीवन की सरल-सहज छवियों और अनुभवों को कविता में ले आते हैं। उनकी कविताएं अपने आसपास व्याप्त जीवन के स्वाभाविक सौंदर्य का उद्घाटन करती हैं, लेकिन वह अपने परिवेश में मौजूद विषमताओं और पीड़ाओं से विमुख नहीं हैं। उनकी कविता यदि प्यार-अनुराग की बात करती हैं तो उन दुखों और चिंताओं को भी पाठक के सामने लाती हैं, जिनसे हमारे जीवन का उल्लास बाधित होता है। इस सिलसिले में वह व्यवस्था के खिलाफ प्रश्न भी खड़े करते हैं। स्त्रियों के प्रति जो दृष्टिकोण वह इन कविताओं में व्यक्त करते हैं, वह अलग से ध्यान खींचता है। जनविजय स्त्रियों को दुनिया का सजर्क और रचना की प्रेरणा बतलाते हैं।
दिन है भीषण गर्मी का, अनिल जनविजय, एपीएन पब्लिकेशंस, नई दिल्ली-59,  मूल्य: 160 रु.

जो गुजरी है

कहते हैं हरेक इनसान के भीतर एक कवि होता है,  लेकिन सभी लोग कविता नहीं लिखते। बहुत सारे लोग अपने मन की बातों को अभिव्यक्त करने के लिए एक वक्त में कविताएं लिखते हैं, लेकिन वे इसे जारी नहीं रख पाते। नतीजतन कविता से दूर चले जाते हैं या कविता उनसे। नवोदित का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है। करीब चार दशक पहले उन्होंने कविता की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में लेखन छूट-सा गया। अब इतने दिनों बाद उनकी कविताओं, गजलों और दोहों का संकलन आया है। समय की धुंध में छिप गई उनकी संभावनाएं प्रत्यक्ष हो गई हैं।

आवाजों के रंग, नवोदित, उत्तरा बुक्स, दिल्ली-35, मूल्य: 100 रु.

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