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पनामा लीक्स और पुराने पाप

'पनामा लीक्स' ने समूची दुनिया के पेट में मरोड़ें पैदा कर दी हैं। आम आदमी के हक पर छल-बल-कपट से कब्जा जमाकर शोहरत, दौलत अथवा सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे लोग 'बेपरदा' होने से डर रहे हैं।...

पनामा लीक्स और पुराने पाप
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 09 Apr 2016 09:46 PM
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'पनामा लीक्स' ने समूची दुनिया के पेट में मरोड़ें पैदा कर दी हैं। आम आदमी के हक पर छल-बल-कपट से कब्जा जमाकर शोहरत, दौलत अथवा सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे लोग 'बेपरदा' होने से डर रहे हैं। इस 'भंडाफोड़' के पहले शिकार आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिंगमंडर गुनलॉगसन हुए हैं।

एक अनाम देश के अपरिचित प्रधानमंत्री से सुर्खियों के शहंशाह तक का उनका यह सफर सत्ता प्रतिष्ठानों में पसरे भ्रष्टाचार की दलदल का प्रतीक है। उनके साथ कई 'नामवर' भी दागदार हुए हैं। क्या आने वाले दिनों में कुछ विकेट और गिरने जा रहे हैं?

मनाता हूं कि ऐसा हो। इससे भ्रष्ट राजनेताओं को सबक मिल सकेगा और आने वाली पीढि़यों को प्रेरणादायी नेतृत्व। प्रभु वर्ग में खलबली का आलम यह है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के परिजनों का नाम आने के बाद वहां सोशल मीडिया पर सेंसरशिप लागू कर दी गई है। शी और उनकी सत्ता मंडली नहीं चाहती कि अत्यधिक दबाव का शिकार चीनी युवा वर्ग इस पर मुखरित हो सके। वैसे भी नौजवान आकांक्षाओं का गला घोटने के मामले में चीन का जवाब नहीं। थ्येन आनमन चौक पर अपने ही 400 छात्रों की हत्या कर वहां के सरकारी तंत्र ने 1989 में नृशंसता का ऐसा इतिहास रचा, जिसे तोड़ने की कल्पना क्रूर से क्रूरतम तानाशाह भी नहीं कर सकता। वक्त इन जख्मों पर धूल डाल आगे बढ़ गया, लेकिन चीनी सत्ता तंत्र की निरंकुशता जस की तस कायम है।

इस सूची में नाम तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दोस्त का भी है। क्या कमाल है! रूस और चीन पूरी दुनिया को बराबरी का पाठ पढ़ाते रहे हैं। सोवियत संघ के पतन के बाद मालूम पड़ा था कि 'कम्युनिज्म' की असली हकीकत यह थी कि मुट्ठी भर लोग समूचे देश के संसाधनों पर काबिज थे। वहां का 'प्रभु वर्ग' इतना चतुर था कि उसने सोवियत संघ के विघटन तक का लाभ उठा लिया और अकूत काली संपत्ति को अपने व्यावसायिक साम्राज्य के विस्तार में लगाने में महारत हासिल कर ली।

इस लिस्ट में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के पिता, सऊदी अरब के बादशाह, सीरिया के राष्ट्रपति, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सगे-संबंधी और भुट्टो परिवार के लोग शामिल हैं। इनके अलावा अर्जेंटीना, यूक्रेन, इराक, मिस्र, लीबिया आदि देशों के तमाम हुक्मरानों के नाम यहां दर्ज हैं। जाहिर है, बात निकली है तो दूर तक जाएगी। कई कुरसियां हिलेंगी, कुछ चेहरे बदलेंगे, पर क्या ऐसी व्यवस्था स्थापित हो सकेगी, जो धन के प्रवाह को पारदर्शी और अधिकतम लोगों के लिए लाभकारी बना सके?
मुझे इस पर शक है।  इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस सूची में अमेरिका के सिर्फ एक शख्स का नाम है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि कहीं यह कुख्यात सीआईए के कुख्याततम 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' का कारनामा तो नहीं? इस आशंका को सिरे से नहीं नकारा जा सकता। दुश्मनों को निबटाने और विकासशील देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अस्थिर बनाने के लिए ऐसे  कारनामे पहले भी रचे जाते रहे हैं। कभी अमेरिका, कभी रूस, तो कभी देसी राजनीति भी इस पापकर्म में हाथ आजमाती रही है। भारत इससे अछूता नहीं है।

हमारे यहां तो गजब ही हो गया था। पहले राजीव गांधी इसके शिकार हुए और फिर उन पर कीचड़ उछालने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को इसी दलदल में घसीटने की कोशिश की गई। 1985 की जनवरी में अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता संभालने वाले राजीव पर बोफोर्स से कमीशन खाने के आरोप लगे। इस अभियान की अगुवाई उनकी सरकार में वित्त मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने की थी। देखते-देखते समूचा देश आरोपों-प्रत्यारोपों की दुर्गंध से बजबजाने लगा। 1989 के चुनावों में कांग्रेस को दर-बदर होना पड़ा। बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, एच डी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं। इन महानुभावों ने कुल मिलाकर लगभग एक दशक हुकूमत की। कमीशन बैठाए। जांच एजेंसियों को लगाया, पर नतीजा कुछ नहीं निकला। आज भी बोफोर्स के प्रेत को बिजूके की तरह खड़ा करने की कोशिश की जाती है, मगर अब देश इस झांसे में नहीं आता।

बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह के पुत्र अजेय सिंह इसी षड्यंत्र के शिकार हो गए। आरोप लगे कि सेंट किट्स में उन्होंने अवैध धनराशि जमा कर रखी है। तब तक भारत के अधिकांश लोगों ने इस कैरेबियाई द्वीप का नाम भी नहीं सुना था। जांच हुई, नतीजा वही ढाक के तीन पात। तब से लेकर अब तक गंगा और यमुना में अरबों गैलन जल बह गया, लेकिन भ्रष्टाचार के नाले की गंदगी में कमी नहीं आई।

काला धन एक ऐसा तिलिस्म है, जिसे सत्तानायकों, राजनेताओं, अभिनेताओं, खिलाडि़यों, आतंकवादियों, तस्करों और हर जरिए से धन कमाने वाले पेशेवरों का समूह चलाता है। इनके मजहब, मुल्क और चेहरे अलग हैं, पर फितरत एक-सी है। इसीलिए सेंट किट्स के बाद नए और अनजाने देशों के नाम उछलते रहे हैं। किसी सामान्य व्यक्ति के सामने यदि संसार का मानचित्र रख दिया जाए, तो वह इन्हें पहचान भी नहीं सकता कि वे किस कोने-कतरे में छिपे हुए हैं। हालांकि, यह अफसोसनाक असलियत है कि उसी आम इंसान के हिस्से के धन से यहां की समूची अर्थव्यवस्था चलती है। यहां यह भी जान लीजिए कि ऐसा नहीं है कि वहां के लोग दूसरों के धन के बल पर अमीर बन बैठे हों। वहां के कुछ बैंक तो ऐसे हैं, जिन्हें 'अटैची बैंक' कहा जाता है। उनका सिर्फ 'पोस्टल एड्रेस' होता है, बाकी आधारभूत संरचना का भगवान ही मालिक है।

अब आते हैं अपने देश पर। 'पनामा लीक्स' में हमारे यहां के 500 से अधिक लोगों के नाम अभी तक जारी हुए हैं। इनमें 'सदी के महानायक' अमिताभ बच्चन भी हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इनमें से अधिकांश ने इन खुलासों को फरेब करार दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को समूचे मामले की गंभीरता से जांच कराने को कहा है। जेटली ने जितना संभव हो, उतनी एजेंसियों को इसमें झोंक दिया है। उम्मीद है, 'बैंक डिफॉल्टर्स' पर पहले से सख्ती कर रही सरकार इस मामले में समूची गंभीरता बरतेगी। 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी ने काले धन को पूरे जोर-शोर से चुनावी मुद्दा बनाया था। बदले में देश के मतदाताओं ने पूरी ताकत से उनका साथ दिया था।

इसीलिए मोदी ने शपथ लेते ही काले धन पर विशेष जांच टीम गठित की और सरकारी धन हड़प जाने वालों पर कार्रवाई शुरू की। पांच साल पहले क्या कोई सोच सकता था कि शीर्ष पर जगमगाते विजय माल्या को देश छोड़कर भागना पड़ेगा? उम्मीद है कि अभी कुछ और बड़ी मछलियों के गले में ऐसी ही फांस फंसेगी। यहां यह बताने की जरूरत नहीं कि 'पनामा लीक्स' ने नरेंद्र मोदी को एक अवसर प्रदान किया है। अगर नई दिल्ली की मौजूदा सरकार काले धन के कैंसर पर अंकुश लगाने में कामयाब हुई, तो न केवल भारत तरक्की करेगा, बल्कि मौजूदा हुक्मरानों की कीर्ति में भी चार चांद लग जाएंगे।
हमारे पुराने पश्चातापों के जख्म बहुत गहरे हैं। क्या हम उम्मीद करें कि आम भारतीय इस बार निराश नहीं होगा?

 @shekharkahin
shashi.shekhar@livehindustan.com

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