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लोक विरासत

भारत सांस्कृतिक विविधताओं का देश है। यही वजह है कि यहां अनेक संस्कृतियां अपनी निजी विशेषताओं के साथ मौजूद हैं। वस्तुत: इनकी विशिष्टताओं के योग से ही भारतीय संस्कृति बनती है। लेकिन बड़े दुख की बात है...

लोक विरासत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 27 Feb 2016 09:40 PM
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भारत सांस्कृतिक विविधताओं का देश है। यही वजह है कि यहां अनेक संस्कृतियां अपनी निजी विशेषताओं के साथ मौजूद हैं। वस्तुत: इनकी विशिष्टताओं के योग से ही भारतीय संस्कृति बनती है। लेकिन बड़े दुख की बात है कि अभी तक इस संबंध में बहुत सारा काम करने को पड़ा हुआ है। लोकभाषाओं और लोक संस्कृतियों से जुड़ी विरासत के संरक्षण की दिशा में अब भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। प्रस्तुत पुस्तक इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इसमें बुंदेलखंड के साहित्य और संस्कृति के बारे में उल्लेखनीय जानकारी दी गई, जिनसे बुंदेलखंड की लोकोक्तियों, मनोरंजन की विधाओं आदि पर खासी रोशनी पड़ती है।
बुंदेलखंड: संस्कृति और साहित्य, डॉ. रामेश्वर प्रसाद पांडेय, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 490 रुपए।

मार्मिक गाथा
अब भी ऐसे लोग हमारे बीच हैं, जिन्होंने बचपन में भालू का नाच देखा होगा। एक समय था, जब बंदर और भालू नचाने वाले मदारी भारतीय जनजीवन का आम दृश्य हुआ करते थे। लेकिन पर्यावरण और वन्यजीवन के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही वन्यजीवों के संरक्षण पर जोर बढ़ा और उन्हें पकड़ कर रखने को अवैध करार दे दिया गया। ऐसे में उन लोगों के सामने संकट खड़ा हो गया, जो बंदर-भालू को नचा कर पेट पालते थे। प्रस्तुत पुस्तक ऐसे ही संकट में पड़े एक मदारी और उसके भालू की कहानी कहती है। नए नियम-कानून आने से मदारी इमाम के लिए भालू नचाना मुश्किल हो गया है। उसके परिवार में इस लालच का भी असर है कि अगर वह अपने भालू को जंगल में छोड़ देगा तो उसे सरकार से मदद और मुआवजा मिल सकता है। इस कथा की बेहद दुखद परिणति इमाम और भालू दोनों के लापता हो जाने में होती है।
जिगरी, पी. अशोक कुमार, अनुवाद: जे.एल. रेड्डी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 95 रुपये।

उर्दू मसनवियों की परंपरा
उर्दू साहित्य में मसनवियों की समृद्ध परंपरा रही है। उर्दू साहित्य का एक सिरा फारसी से जुड़ा हुआ है, जिससे इसमें ईरानी और इस्लामी परंपरा का रंग शामिल हुआ। दूसरी ओर उसमें हिंदुस्तान की सभ्यता-संस्कृति से भी काफी कुछ शामिल किया गया, जिससे उसका विशिष्ट स्वरूप तय हुआ। वास्तव में यह गहरे मेलजोल और साझेदारी की प्रक्रिया थी, जिससे सामासिक संस्कृति की बुनियाद पुख्ता हुई। मसनवियां इस संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण रहीं, क्योंकि इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों परंपराओं से जुड़ी लोक कथाओं को आधार बनाया गया। मशहूर साहित्यकार गोपीचंद नारंग की इस किताब में उर्दू मसनवियों के ऐतिहासिक विकास का जिक्र किया गया है। इससे भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रसंगों, पौराणिक कथाओं आदि विषय पर रोशनी पड़ती है।
भारतीय लोक कथाओं पर आधारित मसनवियां, गोपीचंद नारंग, अनुवाद- डॉ. खुर्शीद आलम, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, मूल्य- 400 रुपये।

कलाम कथा
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व और कृतित्व अनेक लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। वह एक लोकप्रिय राष्ट्रपति थे, जिन्होंने आम लोगों को, खासकर बच्चों और युवाओं को सपने देखने और उसे पूरा करने के लिए परिश्रम करने की सीख दी। उन्होंने खुद अपने जीवन में संघर्ष का सामना किया था और परिश्रम से कामयाबी हासिल की थी। उनके विचारों में जहां व्यक्तिगत सफलता के लिए प्रेरणा उपस्थित रहती थी, वहीं उनमें हमेशा एक राष्ट्रीय भावना भी झलकती थी। सुपरिचित पत्रकार नवोदित ने कलाम के जीवन और कर्म की इन्हीं विशेषताओं को इस पुस्तक में रेखांकित किया है। इसमें भारत के अन्य राष्ट्रपतियों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है।
अलविदा कलाम, नवोदित, इंडियन पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली,
मूल्य- 395 रुपये।    
धर्मेंद्र सुशांत

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