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हमारे पास फूहड़ गाने कोई नहीं लाता

आज इंडस्ट्री में मेरी, एहसान और लॉय की तिकड़ी जम चुकी है। हम हर तरह का संगीत बना रहे हैं। हम तमाम प्रयोग करते हैं। मुझे लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा होता है कि जब आप कोई नई चीज बनाते हैं, तो...

हमारे पास फूहड़ गाने कोई नहीं लाता
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 07 Nov 2015 09:29 PM
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आज इंडस्ट्री में मेरी, एहसान और लॉय की तिकड़ी जम चुकी है। हम हर तरह का संगीत बना रहे हैं। हम तमाम प्रयोग करते हैं। मुझे लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा होता है कि जब आप कोई नई चीज बनाते हैं, तो उसके कायमाब होने का जितना चांस होता है, उतना ही चांस उसके डूबने का भी होता है। लेकिन यह रिस्क तो लेना पड़ता है, क्योंकि आप कुछ  नया करने जा रहे होते हैं। बड़े से बड़ा डायरेक्टर भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी फिल्म हिट होगी ही होगी। यह सब कुछ फ्राइडे को फिल्म के परदे पर पहुंचने के बाद ही तय होता है। मैं अपनी ऐसी कई फिल्मों का उदाहरण दे सकता हूं, जिनमें हमने प्रयोग किया, जो शुरू में लोगों को पसंद नहीं आया, लेकिन धीरे-धीरे वे गाने सुपरहिट हुए। जैसे जब हमने फरहान अख्तर की फिल्म रॉक ऑन  का संगीत किया था, तब उसके लिए हमने रॉक म्यूजिक जैसी कंपोजीशन भी तैयार की, जो काफी कुछ कहानी की जरूरत से मेल भी खाती थी। वह एक तरह का बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट था, जो बाद में हिट हुआ। उसके बाद कई फिल्मों में रॉक म्यूजिक आया।

मुझे याद है कि जब हम दिल चाहता है  का गाना कोई कहे कहता रहे कितना भी हमको दीवाना  कर रहे थे, तब उसमें हमने जान-बूझकर एक तरह का एक्सपेरिमेंट किया था। इस गाने को हम ट्रांस म्यूजिक के करीब लेकर गए थे। शुरू-शुरू में लोगों को लगा कि यह गाना नहीं कोई जिंगल है, लेकिन बाद में वही गाना बहुत हिट हो गया।

कई बार ऐसा भी होता है कि गाना तो बहुत अच्छा होता है, लेकिन वह फिल्म नहीं चलती है। ऐसे में, इस बात का अफसोस होता है कि अगर यही गाना किसी दूसरी फिल्म में होता, तो शायद ज्यादा बड़ा हिट हुआ होता। जैसे झूम बराबर झूम एक ऐसी ही फिल्म थी, जिसे लोगों ने ज्यादा पसंद नहीं की, लेकिन उस फिल्म का संगीत लोगों को बहुत पसंद आया। संगीत बनाने की प्रक्रिया के दौरान एक कलाकार के तौर पर मेरे, एहसान और लॉय में बहुत झगड़ा होता है।

किसी गाने को लेकर हम तीनों को अलग-अलग आइडिया आया, तो बहस भी खूब चलती है। कई बार गाना हिट होने के बाद भी 'डिसएग्रीमेंट' चलता रहता है। हम लोग डायरेक्टर से भी झगड़ा कर लेते हैं। मुझे याद है कि तारे जमीं पर   के 'क्लाइमैक्स' गाने को लेकर भी ऐसा हुआ था। आमिर को वह गाना पसंद नहीं आ रहा था। हमने कई बार बात की, आखिर में जब आमिर ने उस गाने को क्लाइमैक्स पर रखा, तब वह भी हमारी बात से सहमत हो गए। इस तरह का तनाव एक 'प्रॉसेस' है।
हमारी कामयाबी का राज भी यही है। चूंकि हम संगीत बनाने के साथ-साथ पब्लिक के बीच लगातार परफॉर्म भी करते हैं, इसलिए हमारे लिए पब्लिक के टेस्ट को समझना थोड़ा आसान रहता है। इस तिकड़ी के एक सदस्य के तौर पर मेरी पहली कोशिश यही होती है कि मैं एक कंपोजर के तौर पर काम करूं। मैं ज्यादा गाना नहीं चाहता। मैं नहीं चाहता कि मेरी टीम के गानों में हर जगह मेरी ही आवाज सुनाई दे। मेरी कोशिश होती है कि एल्बम में कई अलग-अलग तरह की आवाजें रहें। लेकिन कई बार मेरी नहीं चलती।

तारे जमीं पर  के एक गाने के मामले में यही हुआ था। मैं कभी बतलाता नहीं मां  वाला गाना सिर्फ 'रेफरेन्स' के लिए हमने रिकॉर्ड किया था। लेकिन आमिर खान को वह गाना इतना पसंद आ गया कि वह उस 'रफ' गाने को भी हटाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। वह चाहते थे कि 'रफ' गाना ही फिल्म में जाए। हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें तैयार किया कि अगर वह गाना चाहते ही हैं, तो उसे कम से कम प्रोफेशनली रिकॉर्ड तो करने दें। यह गाना हमने बाद में बाकायदा उसी तरह रिकॉर्ड भी किया, लेकिन ऐसा अक्सर नहीं होता कि परदे पर एक बच्चा हो और उस पर जो गाना चल रहा हो, उसमें एक वयस्क पुरुष की प्लेबैक आवाज हो। लेकिन यह प्रयोग बहुत कामयाब रहा।

ऐसे ही तमाम गानों के साथ म्यूजिक कंपोजर के तौर पर हमने इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाई है। हमारी इसी साख का नतीजा है कि हल्के और फूहड़ गाने लेकर कोई हमारे पास नहीं आता। जैसे कोई पंडित बिरजू महाराज के पास जाकर यह नहीं कहेगा कि आप फिल्म के लिए एक 'आइटम डांस' कर दीजिए, वैसे ही हमारे पास कोई हल्का काम नहीं लेकर आता है। हो सकता है कि उन फिल्मों का बजट 300 करोड़ रुपये का हो, लेकिन उन्हें पता है कि शंकर, एहसान, लॉय कैसा संगीत नहीं बनाते हैं। ऐसा नहीं है कि हम आइटम सांग नहीं बनाते हैं, लेकिन उन गानों में भी एक अलग ताप होता है। कजरारे-कजरारे तेरे कारे-कारे नैना  इसका सबसे बड़ा सुबूत है।                                               (जारी)

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