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गौतम बुद्ध का गुमनाम कार्य स्थल रहा है इटखोरी

झारखंड के चतरा जिले का इटखोरी गौतमबुद्ध की आरंभिक कार्यस्थली रही है। इतिहासकारों एवं बौद्ध धर्म के मर्मज्ञों द्वारा इटखोरी पर ध्यान नहीं दिये जाने के कारण तथागत (गौतम बुद्ध) के अन्य कार्य स्थलों की...

गौतम बुद्ध का गुमनाम कार्य स्थल रहा है इटखोरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 01 Dec 2016 08:11 PM
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झारखंड के चतरा जिले का इटखोरी गौतमबुद्ध की आरंभिक कार्यस्थली रही है। इतिहासकारों एवं बौद्ध धर्म के मर्मज्ञों द्वारा इटखोरी पर ध्यान नहीं दिये जाने के कारण तथागत (गौतम बुद्ध) के अन्य कार्य स्थलों की तरह मशहूर नहीं हो पाया। इटखोरी में मां भद्रकाली का मंदिर श्रद्धालुओं के धार्मिक आस्था का केंद्र भी है। भद्रकाली को हिन्दू धर्मावलंबी शक्ति स्वरूपा मानते हैं। लेकिन वास्तव में भद्रकाली बौद्ध धर्म के तीसरे मत वज्रयान की देवी है। वज्रयान तंत्र विद्या से जुड़ा है। हीनयान एवं महायान बौद्ध धर्म के अन्य मत है।

शाक्यगण राज्य की राजधानी लुंबिनी में राजकुमार सिद्धार्थ (बुद्ध) का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम माया था। उनका विवाह यशोधरा के साथ हुआ था। माता माया के देहांत के बाद सिद्धार्थ का इस संसार से मोह भंग हो गया। मात्र 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने गृहस्थ जीवन का त्याग कर दिया। घर छोड़ने के बाद लुंबिनी और राजगाहा (राजगृह) तक के सफर का वृतांत तो इतिहास में मिलता है। लेकिन जहां से सिद्धार्थ ने आधिकारिक रूप से गृहस्थ आश्रम छोड़ने की घोषणा की उस स्थान का नाम गुमनाम ही रहा है। अब झारखंड सरकार और बौद्ध धर्म के लोग इटखोरी को बुद्ध सर्किट से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डाल रहे हैं।

वास्तव में इटखोरी पाली भाषा के इत् खोयी का हिन्दी में परिष्कृत रूप है। लुंबिनी से सिद्धार्थ सबसे पहले इटखोरी के गहन वन में ही आकर रूके थे। सूचना मिलने पर उनकी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल इटखोरी आये। पुत्र और पत्नी ने सिद्धार्थ को घर वापस चलने के लिए मनाने का अथक प्रयास किया। लेकिन राजकुमार सिद्धार्थ नहीं माने। पत्नी यशोधरा ने कहा- इत‌् खोयी यानी सिद्धार्थ यहीं खो गये। इत् खोयी को ही बाद में इटखोरी कहा जाने लगा। इटखोरी से चौपारण होते हुये सिद्धार्थ बोध गया चले गये थे। वहां ज्ञान प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध कहलाने लगे।

इटखोरी के बौद्ध धर्म का स्थान होने के कारण जब वज्रयान मत की स्थापना हुई, तब भद्रकाली की पूजा अर्चना शुरू हुई। मंदिर सिद्ध स्थल माना जाने लगा। बुद्ध धर्म का प्रभाव कम होने पर हिन्दू भद्रकाली को शक्ति के रूप में पूजने लगे। धीरे धीरे इटखोरी पर्यटक स्थल में तब्दील हो गया। इटखोरी में भद्रकाली मंदिर के निकट सहस्त्र शिव लिंग एवं सहस्त्र बुद्ध प्रतिमा वाले स्तूप आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं। इटखोरी के पुरातात्विक संग्रहालय में पाल कालीन हिन्दू एवं बुद्ध की मूर्तियां इटखोरी के महत्व को दर्शाती है। यहां के मनोरम दृश्य लोगों को बरबस खींचते हैं।

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