अमृत कृषि सीखेंगे बिरसा मुंडा केंद्रीय जेल के कैदी
होटवार (रांची) स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार के कैदी अब रसायनों से पूर्णत: मुक्त और गोबर-गोमूत्र आधारित अमृत कृषि (जैविक कृषि का एक प्रारूप) करेंगे। कारागार की जरूरत से अधिक उत्पादन होने पर...
होटवार (रांची) स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार के कैदी अब रसायनों से पूर्णत: मुक्त और गोबर-गोमूत्र आधारित अमृत कृषि (जैविक कृषि का एक प्रारूप) करेंगे। कारागार की जरूरत से अधिक उत्पादन होने पर जैविक शाक-सब्जी की बिक्री आमलोगों को भी की जायेगी। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अमृत कृषि होगी।
तकनीक के कई फायदे
कारा महानिरीक्षक सुमन गुप्ता ने 19 मई को कारागार परिसर में अमृत कृषि कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि जेल के अधिकांश बंदी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। अमृत कृषि तकनीक सीखकर यथासमय घर लौटने पर उनकी समाजिक-आर्थिक उपयोगिता अधिक होगी। अमृत कृषि पद्धति से फसल उपजाने से किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरक, रासायनिक कीटनाशक या तृणनाशक की जरूरत नहीं पड़ती है। यह तकनीक बहुत सस्ती और आसान है। कार्यक्रम के पहले चरण में कैदियों को देशी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़ और जल के मिश्रण से अमृत जल बनाने की तकनीक सिखायी गई।
तीन से चार दिन में अमृत जल बनेगा
बीएयू की बीपीडी सोसाइटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और अमृत कृषि विशेषज्ञ सिद्धार्थ जायसवाल ने कहा कि अमृत जल बनाने में 3 से 4 दिन और अमृत मिट्टी बनाने में 5 से 6 महीने का वक्त लगता है। केवल दो गोवंश के गोबर-गोमूत्र से लगभग 15 एकड भूमि में अमृत कृषि की जा सकती है। एक बार खेत में अमृत मिट्टी की छह इंच परत बिछा देने के बाद उस खेत में आजीवन उर्वरक-कीटनाशक डालने या हल-बैल-ट्रैक्टर चलाने की जरूरत नहीं पड़ती है। रसायनों के प्रदूषण और हानिकारक प्रभावों से भी मिट्टी, जल एवं उपज का बचाव होता है।
30 कैदियों की कोर टीम बनी
कारागार के अधीक्षक अशोक कुमार चौधरी ने कहा कि कारागार के 12 से 15 एकड़ क्षेत्र में कैदियों के लिए सब्जियों का उत्पादन किया जायेगा। इसके लिए 30 कैदियों की कोर टीम बनायी गई है। वे व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर इसे धरातल पर उतारेगे। अन्य कैदियों को भी अमृत कृषि तकनीक सिखाई जाएगी। शुक्रवार को प्रशिक्षण में 150 कैदियों ने हिस्सा लिया।
तीन सदस्यीय टीम बनाई
बीएयू के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने बताया कि कृषि तकनीक का प्रशिक्षण देने के लिए विवि के विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय टीम बनी है। इसमें सिद्धार्थ जायसवाल, डॉ सीएस सिंह और डॉ एमएस यादव शामिल हैं। टीम समय-समय पर कारागार आकर कैदियों का तकनीकी मार्गदर्शन करती रहेगी।