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नक्सलियों के निशाने पर है शांति सेना

उग्रवादग्रस्त झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ कई फ्रंट पर लड़ाई चल रही है। पुलिस और सीआरपीएफ के जवान जहां मुठभेड़ में हर वक्त दो-दो हाथ करते हैं। इसका असर यह हुआ कि करीब 500 जवानों को शहादत देनी पड़ी।...

नक्सलियों के निशाने पर है शांति सेना
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 31 Aug 2016 10:40 PM
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उग्रवादग्रस्त झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ कई फ्रंट पर लड़ाई चल रही है। पुलिस और सीआरपीएफ के जवान जहां मुठभेड़ में हर वक्त दो-दो हाथ करते हैं। इसका असर यह हुआ कि करीब 500 जवानों को शहादत देनी पड़ी।

चाईबासा, खूंटी, गुमला, लोहरदगा, लातेहार, पलामू, गढ़वा और चतरा के लोग माओवाद से सबसे अधिक ग्रस्त हैं। इसका असर यह हुआ कि ग्रामीणों के बच्चे न तो स्कूल में पढ़ पाते हैं और न ही उन्हें बिजली, पानी या सड़क की सुविधा मिल पाती है। नक्सलियों से आजिज आकर खूंटी, चाईबासा और गुमला के कुछ इलाके के लोगों ने नक्सलियों को खदेड़ने का बीड़ा खुद उठाया। ग्रामीणों की बैठक हुई और इसका नाम शांतिसभा दिया गया। अड़की, मुरहू, बिसुनपुर, सारंडा जहां भी बैठक हुई। हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। लेकिन इनके पास लाठी और भाला है। नक्सली आधुनिक हथियार से लैस हैं।

पुलिस प्रशासन को आगाह किया है विशेष शाखा ने

ग्रामीणों ने कसमें तो जरूर खायीं, लेकिन उन्हें यह भी डर सताता है कि यदि नक्सलियों का दस्ता उनके गांव में पहुंचे तो उनका मुकाबला कैसे करेंगे। गोली का जवाब लाठी नहीं हो सकता। सुरक्षा के नाम पर इन्हें पुलिस का सपोर्ट तो है, लेकिन पुलिस के जवान गांवों में तैनात नहीं हैं। विशेष शाखा ने इस पूरे मामले पर पुलिस प्रशासन को आगाह भी किया है। ग्रामीणों की एकजुटता से नक्सली भी बौखला गए हैं। जनाधार दरकता देख नक्सलियों ने इस शांतिसभा को बेधने का फैसला किया है। इन सभाओं में कभी भी हमला हो सकता है। बड़ी घटना को अंजाम दिया जा सकता है। नक्सलियों ने अपने इस इरादे का इजहार इलाके में पर्चा-पोस्टर लगाकर कर दिया है।

सफाया हो गया ग्राम रक्षा दल का

जिस समय सिर्फ माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी थी। पीडब्लूजी से विलय नहीं हुआ था। उस समय इन दोनों संगठनों ने छोटानागपुर का बंटवारा कर लिया था। उत्तरी छोटानागपुर के इलाके एमसीसी के पास और दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू का इलाका पीडब्लूजी के पास। उत्तरी छोटानागपुर के तीन जिलों में ग्राम रक्षा दल का गठन हुआ था। नक्सिलयों ने चुन-चुन कर उनके सारे सदस्यों को मार डाला। दो दर्जन से अधिक बड़े नरसंहार किये। और फिर क्या था गांव के लोगों ने नक्सलियों के सामने हथियार डाल दिये थे। उस समय प्रशासन ग्रामीणों की कोई मदद नहीं की थी। शांतिसभा को अगर सपोर्ट नहीं मिला तो वे इस लड़ाई को आगे बढ़ा पाने की स्थिति में नहीं होंगे। शांति सभा के खिलाफ खूंटी और तमाड़ इलाकों में पोस्टर साटे गए हैं।

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