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Hindi Newsकभी यहां था नक्सलियों का बोलबाला, आज कला के क्षेत्र में बना रहा है पहचान

कभी यहां था नक्सलियों का बोलबाला, आज कला के क्षेत्र में बना रहा है पहचान

कुछ अलग करने का जुनून हो तो लोग विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच के साथ रचनात्मक कार्य कर समाज में अपनी अलग पहचान बना लेते हैं। कभी नक्सली गढ़ के रूप में अपनी पहचान बना चुका बेगुसराय के...

कभी यहां था नक्सलियों का बोलबाला, आज कला के क्षेत्र में बना रहा है पहचान
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 03 Oct 2016 09:20 PM
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कुछ अलग करने का जुनून हो तो लोग विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच के साथ रचनात्मक कार्य कर समाज में अपनी अलग पहचान बना लेते हैं। कभी नक्सली गढ़ के रूप में अपनी पहचान बना चुका बेगुसराय के तेघड़ा प्रखंड का नोनपुर गांव आज रचनात्मक कार्यों की वजह से पहचान बना रहा है। यहां के लड़के-लड़कियां आज नाटक, फिल्म आदि के माध्यम से गांव की छवि बदलने में लगे हुए हैं।

नोनपुर गांव के मजदूर श्यामाकांत ठाकुर के पुत्र मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय से पासआउट शशिकांत कुमार रचनात्मक कार्य कर गांव की अलग छवि गढ़ने में लगे हुए हैं। फिलहाल ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में संगीत एवं नाट्य विभाग से एमए कर रहे शशिकांत रंगदर्शन आर्ट ग्रुप के बैनर तले गांव के बच्चों के साथ लगातार नाट्य गतिविधि के माध्यम से जागरूकता अभियान चला रहे हैं।

शिक्षा की अलग जगाने के लिए बनाई फिल्म

इसी गांव के मजदूर रामउदगार महतो के पुत्र सिकंदर कुमार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से स्नातक होकर फिलहाल राष्ट्रीय नाट्य विद्यलाय के रेपेट्री में काम कर रहे हैं। शशिकांत ने गांव के लोगों में शिक्षा का अलख जगाने के लिए डाक्यूमेंट्री फिल्म अक्षर का निर्माण किया है। ग्रामीणों के सहयोग से बनी इस फिल्म में गांव में शिक्षा के प्रति लगाव को केंद्रित किया गया है। गांधी जयंती के अवसर पर सादे समारोह में सैकड़ों ग्रामीणों के बीच इस डायक्यूमेंट्री फिल्म का प्रमोशन किया गया।

शिक्षा के कारण दिखा सकारात्मक बदलाव

शशिकांत ने बताया कि नोनपुर, पकठौल, किरतौल, जगदर आदि गांव को लोग नक्सल प्रभावित गांव के रूप में जाने जाते थे। लेकिन, यहां के लोग शिक्षा और कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं। शिक्षा के कारण ही यहां सकारात्मक बदलाव दिख रहा है। लोग पुरानी छवि से बाहर निकलने की कोशिश में लगे हुए हैं। रंगदर्शन आर्ट ग्रुप के बैनर तले बनी डाक्यूमेंट्री फिल्म अक्षर पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति बढ़ते लगाव पर आधारित है। शशिकांत ने बताया कि इस फिल्म की लागत लगभग 40 हजार रुपए आई है। इस फिल्म के निर्माण में ग्रामीणों का सहयोग रहा है। इससे पहले शशिकांत ने जल समस्या पर आधारित लघु फिल्म एच 2 ओ का निर्देशन किया था जिसका चयन यस फाउंडेशन मुंबई के लिए भी हुआ।

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