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न्यायपालिका, विधायिका में समन्वय की जरूरत: सीजेआई

न्यायपालिका और विधायिका में सहोदर संबंध होने का जिक्र करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू ने इन दोनों के बीच समन्वय की जरूरत पर जोर दिया और इनमें से किसी के संविधान सम्मत मार्ग से भटकने की...

न्यायपालिका, विधायिका में समन्वय की जरूरत: सीजेआई
एजेंसीSun, 05 Apr 2015 06:41 PM
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न्यायपालिका और विधायिका में सहोदर संबंध होने का जिक्र करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू ने इन दोनों के बीच समन्वय की जरूरत पर जोर दिया और इनमें से किसी के संविधान सम्मत मार्ग से भटकने की स्थिति में एक दूसरे को सही राह दिखाने पर जोर दिया।  

भारत के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालत में लंबित मामलों और न्याय निष्पादन से जुड़े विषयों को अकेले न्यायपालिका नहीं सुलझा सकती है और कार्यपालिका को भी मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए। उन्होंने आवंटिक कोष खर्च करने के लिए अधिक वित्तीय स्वायत्ता प्रदान करने और प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित करने के लिए न्यायिक अधिकारियों को बेहत पैकेज देने की बात कही।
 
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका और संसद में सहोदर संबंध है। दोनों लोकतंत्र की संतान हैं। उन्होंने जोर दिया कि न्यायिक प्रशासन में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को समान सहयोगी के रूप में काम करने की जरूरत है और इन्हें एक दूसरे को साथ लेकर और एक दूसरे को सही दिशा देते हुए काम करना चाहिए।

देश के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों एवं मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन को संस्थागत परिचर्चा का श्रेष्ठ उदाहरण करार देते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायिक प्रशासन से संबंधित मुद्दे काफी जटिल हैं। इन्हें न्यायपालिका अकेले नहीं सुलझा सकती है। कार्यपालिका की भी हिस्सेदारी है। न्यापालिका को इस महत्वपूर्ण मिशन में कार्यपालिका के साथ बेहतर समन्वित प्रयासों एवं समान सहयोगी के रूप से काम करना चाहिए।

भारत के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बेहतर ढंग से समन्वित प्रयासों से इसे सुनिश्चित किया जा सकता है और हम न्यायपूर्ण एवं सक्षम कानूनी प्रणाली हासिल कर सकते हैं।

न्यायमूर्ति दत्तू ने न्यायपालिका में आवंटित कोष को खर्च करने और अच्छे वेतनमान पर प्रतिभावान न्यायिक अधिकारियों को आकर्षित करने के लिए न्यापालिका को वित्तीय स्वायत्तता देने की वकालत की।  

उन्होंने कहा कि इस बारे में संदेह नहीं रहे कि न्यायपालिका को उन जरूरतों और समस्याओं को समक्षना चाहिए जो न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं। इसलिए बजटीय प्रश्नों पर निर्णय करते हुए इस बारे में एक प्रभावी तंत्र होना चाहिए।
   
न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा कि आवंटन करने के बारे में फैसला करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, लेकिन आवंटन होने के बाद हम सभी मानते हैं कि समय आ गया है कि न्यायपालिका को वित्तीय स्वायत्ता देने के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को संबंधित राज्य सरकारों की ओर से प्रभावी ढंग से कोष का आवंटन होना चाहिए। हमें उस स्थिति से आगे की ओर देखना चाहिए जहां उच्च न्यायालयों को खर्च के लिए लगातार सरकारों के पास जाना पड़ता हो, वह भी उस राशि के लिए जो बजट के तौर पर आवंटित किया जा चुका है। आवंटित कोष के संदर्भ में न्यायपालिका को पर्याप्त स्वायत्ता मिलनी चाहिए।

विधिक सहायता के क्षेत्र में आमतौर पर सक्षम वकीलों के आगे नहीं आने के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा कि उन्हें भय है कि युवा भविष्य में इस पेशे से दूर जा सकते हैं, अगर वे इसे वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं पाएंगे।

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