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लोक संस्कृति को रखें जीवित: मृदुला सिंहा

गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने लोक संस्कृति को जीवित रखने का आह्वान करते हुए कहा है कि बेटियां आज जीवन के हर क्षेत्र में अवश्य आगे बढ़ रही हैं पर अभी उन्हें और आगे बढ़ाना है। वे लोक संस्कृति की...

लोक संस्कृति को रखें जीवित: मृदुला सिंहा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 29 Mar 2015 10:22 PM
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गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने लोक संस्कृति को जीवित रखने का आह्वान करते हुए कहा है कि बेटियां आज जीवन के हर क्षेत्र में अवश्य आगे बढ़ रही हैं पर अभी उन्हें और आगे बढ़ाना है। वे लोक संस्कृति की वाहक हैं। इसी के साथ उन्होंने सलाह दी कि बेशक पारंपरिक लोकगीत पाठ्यक्रम में नहीं है पर स्कूल के प्रबंधन की ओर से हफ्ते में दो दिन बच्चियों को लोकगीत जरूर सिखाया जाना चाहिए क्योंकि इसमें घर-परिवार और समाज के सारे आदर्श भरे पड़े हैं।

राज्यपाल रविवार को यहां धरहरा स्थित राजकीय कृष्ण कुमारी विद्या मंदिर परिसर में 1952 से 1980 तक सांसद रहे एवं विद्यालय के संस्थापक और संरक्षक स्व. दिग्विजय नारायण सिंह की प्रतिमा अनावरण समारोह का उद्घाटन करने के बाद लोगों को संबोधित कर रही थीं। प्रारंभ में उन्हें गार्ड आफ आनर दिया गया। इस अवसर पर दिग्विजय बाबू के परिवार के लोगों ने राज्यपाल और अन्य अतिथियों को अंगवस्त्र भेंटकर सम्मानित किया। उजियारपुर के सांसद नित्यानंद राय  ने प्रारंभ में दिग्विजय बाबू के राजनीतिक जीवन पर चर्चा की। दिग्विजय बाबू के पौत्र कुणाल सिन्हा ने स्वागत भाषण किया। स्वागत गान ऋचा चौबे और प्रिया कुमारी ने गाया।

दिग्विजय बाबू को लोक संस्कृति में रचा-बसा महामानव तथा समाज सेवक के साथ-साथ समाज को दिशा देने वाला व्यक्तित्व बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि वे जब भी बात करते थे तो बज्जिका में और जब किसी से मिलते थे तो मिलनेवाले को लगता था कि वह अपने किसी आत्मीय से मिल रहा है। उनसे जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जब पहली बार उनके यहां भोजन पर दिग्विजय बाबू को आमंत्रित किया गया था तो उन्होंने पूछा था- कथि-कथि बनवई छी। हम त केवल बैंगन के झमरुआ और भात खायब। तब घबरा गयी कि यह झमरुआ क्या है।  फिर पता चला कि पूरे बैंगन को चीर कर और उसमें मसाले लगाकर कड़ाही में जो उलट-पुलट की जाती है उसे ही झमरुआ कहते हैं। वे आए और जमकर बैंगन का झमरुआ और भात खाए। कभी खाने पर आते तो मिरचाई का अचार मांगते और खाते। एक असाधारण व्यक्तित्व हमेशा साधारण की तरह पेश आता रहा। सबके साथ उनका ऐसा ही व्यवहार हुआ करता था।

अपनी कविता- पेड़ों सी पुरखों की छाया, शीतल कर दे जलती काया- सुनाते हुए कहा कि पूर्वजों के स्मरण मात्र से न केवल मन शीतल होता है बल्कि जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलने लगती है। विद्यालय में कमरों और संसाधनों की कमी की बात सुनकर उन्होंने कहा कि यह स्थिति इसलिए आती है कि हमने सार्वजनिक कार्य या सामाजिक सरोकार के लिए दरवाजे-दरवाजे जाकर मांगना छोड़ दिया है। मांग कर तो देखिए, लोग खुलकर सहायता करेंगे।

समारोह की अध्यक्षता हाजीपुर के विधायक अवधेश सिह ने की और संचालन सर्व ब्राह्मण ब्रहर्षि सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर शुक्ला ने किया। सांसद भोला सिंह, अजय निषाद, पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह, पूर्व मंत्री चंद्रमोहन राय, विधायक उषा विद्यार्थी, पूर्व विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला आदि ने समारोह में विचार व्यक्त किए।

 

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