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Hindi Newsनोटबंदी: मुश्किलों के बीच मुस्कान बिखेरने में जुटे हैं ये लोग

नोटबंदी: मुश्किलों के बीच मुस्कान बिखेरने में जुटे हैं ये लोग

बीते एक महीने से सारी चर्चा एक ही मुद्दे पर आकर रुक जा रही है, वह है नोटबंदी। 500 और 1000 के नोट बंद होने के 30 से ज्यादा दिन बीत जाने के बावजूद आम लोगों की परेशानियां कम नहीं हो रही हैं। समाज क

लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 11 Dec 2016 10:37 AM

बीते एक महीने से सारी चर्चा एक ही मुद्दे पर आकर रुक जा रही है, वह है नोटबंदी। 500 और 1000 के नोट बंद होने के 30 से ज्यादा दिन बीत जाने के बावजूद आम लोगों की परेशानियां कम नहीं हो रही हैं। समाज का कोई वर्ग इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया है। मगर इसके बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मुश्किल से जूझ रहे परेशान लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। 

विदेशी पर्यटक को मुफ्त खाना खिलाया: केरल में एक रेस्टोरेंट मालिक ने करीब आठ विदेशी पर्यटकों को नकदी नहीं होने की स्थिति में खाने का बिल ही नहीं लिया। वह बताते हैं कि चार महिला व चार पुरुष पर्यटक उनके रेस्टोरेंट में आए, उनके पास भुगतान के लिए कार्ड के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था और उनके पास स्वैप मशीन नहीं थी। ऐसे में उन्होंने पर्यटकों से कहा कि वह खाना खा लें, पैसा बाद में दें। हालांकि इसका नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ा। चारों महिलाएं तो कुछ दिन बाद आकर अपने बिल का भुगतान कर गईं, लेकिन पुरुष पर्यटक लौटकर नहीं आए। 

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नोटबंदी: मुश्किलों के बीच मुस्कान बिखेरने में जुटे हैं ये लोग

कार्ड से गार्ड को दिलाया सामान : गुड़गांव के अंबर दुबे सिक्योरिटी गार्ड और ड्राइवर को अपने कार्ड से ही सामान दिलवाकर उनकी परेशानियों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमें अपने हिस्से की मदद करनी होगी। कम से कम अपने से जुड़े लोगों के लिए तो।

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जरूरतमंदों को मुफ्त सब्जी दे रहीं-
कर्नाटक के हुबली में सब्जी बेचने वालीं मुमताज इंजीनियर अपनी परेशानियों को भूलकर लोगों की मदद को आगे आई हैं। बरसों से ठेले पर सब्जी बेच रहीं 50 वर्षीय मुमताज जरूरतमंदों को मुफ्त में सब्जी दे रही हैं। वेबसाइट ‘द बेटरइंडिया’ के मुताबिक मुमताज का कहना है कि इन मजदूरों को उनके मालिकों की तरफ से वेतन नहीं मिल रहा है क्योंकि बैंक से उन्हें सीमित पैसा ही मिल रहा है। ऐसे में उनके पास अपना परिवार पालने के लिए भी पैसा नहीं है। ऐसे में वह अपने स्तर पर मदद कर रही हैं। कुछ को वह सब्जी मुफ्त में दे रही हैं, तो कुछ उधार पर ले रहे हैं।

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