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नई शिक्षा नीति के लिए ABVP का एजेंडा, संस्कृत, योग, आयुर्वेद से लेकर 'भारत' तक

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा पर बल देते हुए 20 सूत्रीय एजेंडा मानव संसाधन मंत्रालय को भेजा है। एबीवीपी ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में हिन्दी और संस्कृत माध्यम से...

Admin Sat, 23 April 2016 01:12 PM
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नई शिक्षा नीति के लिए ABVP का एजेंडा, संस्कृत, योग, आयुर्वेद से लेकर 'भारत'  तक

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा पर बल देते हुए 20 सूत्रीय एजेंडा मानव संसाधन मंत्रालय को भेजा है। एबीवीपी ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में हिन्दी और संस्कृत माध्यम से शिक्षण व्यवस्था के साथ साथ योग, आयुर्वेद, संस्कृत और आध्यात्म को केंद्र में रखकर उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण करने, विदेशी स्टूडेंट्स को आकर्षित करने और 'भारत' पर अनिवार्य बुनियादी पाठ्यक्रम की मांग की है।

एक अंग्रेज समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार, 20 सूत्रीय एजेंडे की ये कुछ प्रमुख बातें हैं। नई शिक्षा नीति में इन बातों को शामिल करने के लिए एबीवीपी ने यह एजेंडा भेजा है।

एबीवीपी के एजेंडे के दस्तावेज के अनुसार, केंद्रीय विश्वविद्यालयों को हिन्दी और संस्कृत में शिक्षा देने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। विदेशी और क्षेत्रीय भाषाओं के हिंदी और संस्कृत में अनुवाद का कार्य एक मिशन के तहत होना चाहिए।

राष्ट्रीय एकीकरण और भारतीय संस्कृति को केंद्रीय संस्थानों में जरूर बढ़ावा मिलना चाहिए। आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी ने सिफारिश की है कि नियंत्रक ईकाइयों को संस्थाओं में भारतीय भाषाओं में अध्यापन शुरू करने को प्राथमिकता देनी चाहिए।

भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देने की वकालत करते हुए एबीवीपी ने कहा है कि केंद्र द्वारा पोषित सभी संस्थानों को हिंदी में अध्ययन-अध्यापन शुरू करना चाहिए और अगर संभव हो तो राज्यों के भाषाओं में भी ऐसा करना चाहिए।

हिन्दी या अन्य भाषाओं में पढ़ाने पर एबीवीपी का कहना है कि भारतीयों को उनकी मातृभाषा में अध्ययन करने की अनुमति नहीं होने के कारण वे हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं क्योंकि वे अंग्रेजी में बेहतर नहीं हैं।

इसके अलावा एबीवीपी ने 'भारत पर एक बुनियादी पाठ्यक्रम' शुरू करने की सलाह दी है, जिसमें शास्त्र, इतिहास, संस्कृति, दर्शन और प्राचीन भारतीय इतिहास की जीवन शैली होनी चाहिए। ऐसे पाठ्यक्रम सभी उच्च शैक्षिक पाठ्यक्रमों में अनिवार्य तौर पर शामिल किया जाना चाहिए।

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