फोटो गैलरी

Hindi Newsसंघ ने उपराष्ट्रपति के बयान को बताया सांप्रदायिक मुस्लिम नेता का भाषण

संघ ने उपराष्ट्रपति के बयान को बताया सांप्रदायिक मुस्लिम नेता का भाषण

मुसलमानों के सशक्तीकरण, शिक्षा एवं सुरक्षा के बारे में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान को निराशाजनक बताते हुए आरएसएस के मुख्यपत्र पांचजन्य में कहा गया है कि तमाम बुद्धिजीविता के लब्बोलुआब के बावजूद...

संघ ने उपराष्ट्रपति के बयान को बताया सांप्रदायिक मुस्लिम नेता का भाषण
एजेंसीWed, 16 Sep 2015 01:06 AM
ऐप पर पढ़ें

मुसलमानों के सशक्तीकरण, शिक्षा एवं सुरक्षा के बारे में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान को निराशाजनक बताते हुए आरएसएस के मुख्यपत्र पांचजन्य में कहा गया है कि तमाम बुद्धिजीविता के लब्बोलुआब के बावजूद वह एक साम्प्रदायिक मुस्लिम नेता का भाषण लगता है।

हामिद अंसारी द्वारा सकारात्मक कदमों द्वारा मुसलमानों के सशक्तिकरण की जरूरत बताये जाने पर निशाना साधते हुए पांचजन्य में एक लेख में कहा गया है कि हाल में मजलिस ए मुशावरात के जलसे में हामिद अंसारी का भाषण निराश करने वाला था क्योंकि तमाम बुद्धिजीविता के लब्बोलुआब के बावजूद वह एक साम्प्रदायिक मुस्लिम नेता का भाषण लगता है। उपराष्ट्रपति से यह उम्मीद होना स्वाभाविक है कि वे किसी विशेष समुदाय की तरफदारी करने की बजाए सबके हित की बात करेंगे। लेकिन उनके भाषण में यह बात गायब थी।

लेख में कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन आईएसआईएस, तालिबान, बोको हराम का जिक्र करते हुए कहा गया है कि कोई मजहबी समुदाय अगर 1400 साल पुरानी बातों को आज भी जस का तस लागू करने की इच्छा रखता हो तब वह आधुनिक कैसे हो सकता हैं। इस्लाम में रेडिकल वे होते हैं जो 1400 वर्ष पुरानी बातों को ज्यों का त्यों लाना चाहते हैं जैसे आईएस या तालिबान या बोको हराम। इस तरह से इस्लाम और आधुनिकता दो ध्रुव हैं लेकिन यह बात अंसारी जैसे नेता मुसलमानों को कभी नहीं समझाते।

पांचजन्य के लेख में कहा गया है, अपने प्रगतिशील मुखौटे के बावजूद हामिद अंसारी का भाषण मुस्लिम संस्थाओं के मांगपत्र जैसा लगता है जिसमें आत्मविश्लेषण की कोई इच्छा नहीं नजर आती।

संघ के मुखपत्र में कहा गया है, अंसारी ने मुस्लिम सुरक्षा का मुद्दा उठाया। क्या वह यह कहना चाहते हैं कि मुसलमानों को बहुसंख्यक समुदाय से खतरा है। वह शायद दंगों का जिक्र कर रहे हैं। लेकिन दंगों को मुख्य रूप से अल्पसंख्यक हवा देते हैं और जब बहुसंख्यकों की प्रतिक्रिया होती है तो इसे मुस्लिम सुरक्षा का विषय बताया जाता है। गोधरा में पहले हिंदुओं को जीवित जलाया गया था। जब हिंदुओं की प्रतिक्रिया आई तो इसे सामूहिक संहार कहा गया।

लेख में कहा गया है कि बेहतर होता कि उपराष्ट्रपति ने केवल एक की नहीं बल्कि सभी समुदायों की सुरक्षा की बात की होती।

संपादकीय के अनुसार, मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर से जाने पर हिंदू अल्पसंख्यकों को मजबूर होना पड़ा। लेकिन किसी हिंदू बहुसंख्यक राज्य ने मुस्लिमों के साथ ऐसा नहीं किया। इस संदर्भ में अजीब बात है कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने केवल एक समुदाय की सुरक्षा की बात की।

लेख के अनुसार, अंसारी ने कहा कि मुसलमानों को विभाजन के लिए जिम्मेदार राजनीतिक घटनाक्रमों की कीमत अदा करनी पड़ी। लेकिन वह भूल जाते हैं कि मुसलमान विभाजन के पीड़ित नहीं बल्कि कारण हैं।

संपादकीय में लिखा है, उन्होंने आजादी से पहले पाकिस्तान के लिए वोट दिया लेकिन वे सभी पाकिस्तान नहीं गये। अंसारी को मुसलमानों को असमानताओं का शिकार पेश करने के बजाय बताना चाहिए कि उनकी कट्टरता उन्हें समाज में भाइचारे से कैसे अलग रख रही है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें