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समोसा और जलेबी नहीं हैं इंडियन, जानें ऐसी ही 5 डिशों के बारे में

समोसा समोसा तो आपने खाया ही होगा। ये हर जगह मिलता है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक के लोग इसे चाव से खाते हैं। लेकिन आपको ये जानकर थोड़ा हैरानी होगी कि आपका फेवर

लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 27 Nov 2016 03:23 PM

समोसा

समोसा तो आपने खाया ही होगा। ये हर जगह मिलता है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक के लोग इसे चाव से खाते हैं। लेकिन आपको ये जानकर थोड़ा हैरानी होगी कि आपका फेवरेट समोसा दरअसल भारतीय व्यंजन नहीं है बल्कि एक विदेशी पकवान है। माना जाता है कि मध्य एशिया में इसे बनाया जाता था। और तब इसके भीतर आलू नहीं भरे होते थे बल्कि कीमा, मीट और सूखे मेवे भरे जाते थे। मध्य एशिया के लोग जब भारत पहुंचे तो उनके साथ ये समोसा भी भारत आया लेकिन यहां के लोगों ने इसमें थोड़ा परिवर्तन किया और इसमें आलू भर दिया। इसके साथ बनी चटनी ने तो इसे घर-घर तक पहुंचा दिया। भारतीय मसालों के कारण भी यहां का समोसा स्पेशल हो गया। अब अब तो ये हर भारतीय का फेवरेट है।

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जलेबी

भारत में कहीं दूध-जलेबी खाई जाती है तो कहीं दही-जलेबी और कहीं रबड़ी के साथ इसे खाया जाता है। कई जगहों पर भगवान के भोग में यह अनिवार्य रूप से शामिल की जाती है। कई इलाकों में इसे सुबह नाश्ते में खाया जाता है तो कई इलाकों में शाम को स्नैक्स के रूप में। लेकिन पूरे भारत के लोग जलेबी के दीवाने हैं। थोड़ा हैरान तो आप हो ही जाएंगे जब पता चलेगा कि ये भारतीय नहीं है। हालांकि बेहद लंबे वक्त से ये भारतीय सरजमीं पर है और बेहद मशहूर भी है। माना जाता है कि पर्शिया के आस-पास के इलाकों में इसे बनाया जाता था। व्यापार के लिए जो लोग भारत आए उनके साथ यह भी भारत पहुंच गई। कई जगहों पर इसे संस्कृत और फारसी भाषा में जलाबिया और जलवल्लिका भी कहा गया है। पुरानी किताबों में भी अक्सर इसका उल्लेख मिलता है।

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बिरयानी

आपको थोड़ा और झटका लगेगा जब आप ये जानेंगे कि बिरयानी भी भारतीय व्यंजन नहीं है। सही मायनों में तो ये कोई डिश ही नहीं थी। मध्य एशिया की फौज जब लड़ने कहीं जाती थी तो अपने साथ चावल, जानवर, सूखे मेवे आदि ले जाती थी। पूरी फौज के लिए खाना बनना होता था तो एक बहुत बड़े बर्तन में चावल, मांस और सूखे मेवे आदि डाल दिए जाते थे और पकने के लिए छोड़ दिए जाते थे। ऐसे ही बनी थी बिरयानी। जब बिरयानी भारत पहुंची तो इसमें भारतीय मसालों ने अपना कमाल दिखाया और फिर तो ये और भी लजीज हो गई। बिरयानी शब्द 'बिरिंज बिरियान' से निकला है जिसका मतलब है भुना हुआ चावल। भोपाल, हैदराबाद, लखनऊ, कोलकाता जैसे शहरों में बिरयानी का अलग अलग-स्वाद है। कहीं ये अफगानिस्तान के लोगों द्वारा पहुंची और कहीं समुद्र के रास्ते।

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मोमोज

भारत को शायद ही कोई इलाका होगा जहां मोमोज नहीं मिलते होंगे। जान कर हैरानी होगी कि ये डिश भी भारतीय नहीं है। अगर आप इसे नॉर्थ ईस्ट, नेपाल, तिब्बत या भूटान की समझते थे तो सॉरी आप गलत थे। ये तो एक चायनीज डिश है जो अब तकरीबन भारतीय हो चुकी है। चीन में इसे मीट, मछली, झींगा भर कर बनाते थे लेकिन जब यह भारत में पहुंची तो इसे वेज स्वरूप दिया गया। अब तो कई इलाकों में इसे भून कर और तल कर भी परोसा जाता है। भारतीय मसालों ने भी अपना कमाल दिखाया और अब तो ये डिश भारतीय हो चुकी है।

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नान

नाम सुन कर और फोटो देख कर थोड़ा हैरान तो आप हो ही गए होंगे। अरे, नान कैसे विदेशी हो सकता है। हर होटल, हर शादी, हर ढाबे पर मिलने वाला नान भी हमारा नहीं है क्या? सच तो यही है दोस्तों। फारसी खाने का एक अहम हिस्सा है नान। हालांकि ये मुगल काल से पहले ही भारत पहुंच चुका था। और अफगान अपने साथ लाए थे खमीरी रोटी। नान तो उस वक्त ही बन गया था जब लोगों ने बेकिंग शुरु की थी। भारत में ये एक लंबे वक्त से है और अब तो ये अपना ही लगता है। 

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