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पढ़ें: नाथ परंपरा, गोरखपुर मंदिर और महंतों का इतिहास

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लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Mar 2017 11:05 AM


क्या है नाथ संप्रदाय

हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में 'नाथ संप्रदाय' का प्रमुख स्थान है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देख रेख यहीं से होती है। नाथ संप्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिव के साक्षात स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' सतयुग में पेशावर (पंजाब) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत हुए थे। 

प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार व्यवस्था दी थी। गोरखनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रूप में जाना जाता है। परिव्रराजक का अर्थ होता है घुमक्कड़।

नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं।

52 एकड़ के क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यंत कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज थे, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।

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महंतों का इतिहास

गुरु गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते हैं, जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे। तत्पश्चात परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज, मेहर नाथ जी महाराज, दिलावर नाथ जी, बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज, क्रमानुसार वर्तमान समय में महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर अधिष्ठित थे। 

नाथ योग सिद्धपीठ गोरखनाथ मंदिर के योग तपोमय पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गुरु गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरुप 15 फरवरी 1994 को गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक शिष्य योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ। 

योगी जी व्यवहारकुशलता, दृढ़ता, कर्मठता, वाक्पटुता के आदर्श मार्गों का अनुसरण करते हुए हिंदुत्व के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं। योगी जी के युवा नेतृत्व में थोड़े ही समय  में पूरे भारत वर्ष में हिंदुत्व का तेजोमय पुनर्जागरण अवश्यम्भावी है। 

महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। योगी आदित्यनाथ ने 'हिन्दू युवा वाहिनी' का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को हिन्दुत्वनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरणा देते है।

गौरतलब है कि 11 सितंबर 2014 में गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ब्रह्मलीन हुए थे। ब्रम्हलीन महंत की समाधि उनके गुरु महंत दिग्विजय नाथ की समाधि स्थल के पास में बनाई गई। गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ ने भी अपने गुरु की समाधि मंदिर व मूर्ति के लिए कोई कसर नहीं रखी। मूर्ति बनाने का कार्य गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ 31 जनवरी 2015 को जयपुर के मूर्तिकार को दिया था।

मूर्ति मई 2016 में बनकर तैयार हो गई थी और बीते जून माह में गोरखनाथ मंदिर में पहुंच गई है । मूर्ति स्थापना के एक-दो दिन पहले इस मूर्ति को समाधि मंदिर में तय स्थल पर रखकर देखा जाएगा और कोई कमी होगी तो तत्काल दूर कर दिया जाएग।

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