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धनलाभ और यश चाहिए तो दिवाली पर मां गजलक्ष्मी की पूजा कीजिए

इस दिवाली मां गजलक्ष्मी की पूजा कीजिए.. दिवाली करीब है और आपने मां लक्ष्मी को खुश करने के लिए कई तरह के काम करने शुरू भी कर दिए होंगे। हालांकि हम आपको बता दें कि मां लक्ष्मी के कई ऐसे रूप हैं

लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 26 Oct 2016 01:36 PM

इस दिवाली मां गजलक्ष्मी की पूजा कीजिए..

दिवाली करीब है और आपने मां लक्ष्मी को खुश करने के लिए कई तरह के काम करने शुरू भी कर दिए होंगे। हालांकि हम आपको बता दें कि मां लक्ष्मी के कई ऐसे रूप हैं जिनकी आराधना के बगैर उन्हें खुश करना थोड़ा मुश्किल काम है। इन्हीं में से एक है मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित मां श्री गजलक्षमी का मंदिर। कहा जाता है कि दिवाली से पहले मां गजलक्षमी की पूजा करना बेहद शुभ होता है और इससे धन और यश का लाभ होता है।

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कब आते हैं सबसे ज्यादा श्रद्धालु
गौरतलब है कि अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मां गजलक्ष्मी की आराधना का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। ऐसे में बड़े पैमाने पर श्रद्धालु देवी मंदिरों में आराधना करने पहुंचते हैं। इस विशेष दिन से माता की आराधना प्रारंभ हो जाती है। नवरात्रि और दिवाली से पहले मां गजलक्ष्मी के दरबार में पूजा कराने का विशेष महत्त्व माना जाता है। 

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क्या है कहानी
शास्त्रों के मुताबिक शक्ति के प्रमुख स्थल 51 कहे गए हैं। जिन्हें 51 शक्तिपीठों के तौर पर जाना जाता है। मान्यता है कि यहां पर माता सती के शरीर के अंग अलग-अलग होकर गिरे थे। जिसके बाद ये शक्तिस्थल के तौर पर जाने गए और यहां पर आराधना की जाने लगी। आज भी बड़े पैमाने पर श्रद्धालु इन मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मन्नतें पूर्ण होती हैं। हालांकि इनके अलावा कुछ और भी जागृत मंदिर ऐसे हैं जहां पर माता की पूजा करने से श्रेष्ठ फल मिलता है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में मौजूद मां गजलक्षमी का मंदिर भी इन्हीं में से एक माना जाता है। मंदिर में जहां पर मां लक्ष्मी जी सफेद हाथी पर विराजमान हैं वहीं लक्ष्मी जी के पास भगवान श्री विष्णु की काले पाषाण की मूर्ति प्रतिष्ठापित है।

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क्या है मान्यता

इस मूर्ति में भगवान श्री विष्णु जी के दशावतारों का उल्लेख है। मंदिर की छत पर एक ओर कांच का श्रीयंत्र निर्मित है। यह यंत्र पूरी तरह से धार्मिक, वैज्ञानिक मान्यता पर बनाया गया है। यहां पर अष्टमी के दिन श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है और हवन पूजन का आयोजन होता है। श्रद्धालु माता जी के आशीर्वाद के तौर पर कुमकुम ले कर जाते हैं। दूसरी ओर यह मंदिर ऐसा मंदिर है जहां श्राद्धपक्ष में अष्टमी तिथि पर श्रद्धालु माता का पूजन करते हैं। इसे हाथी अष्टमी का पूजन भी कहा जाता है। इस मौके पर श्रद्धालु माता के दरबार में माता का पूजन करते हैं और माता का दूध से अभिषेक किया जाता है।

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मान्यता है कि महाभारत काल में माता कुंती को व्रत कर पूजन करना था। व्रत के लिए उन्होंने मिट्टी का हाथी बनाया था लेकिन बारिश हो जाने से वे पूजन नहीं कर पाईं ऐसे में देवराज इंद्र ने उन्हें अपने हाथी ऐरावत को पूजन हेतु दे दिया। कुंती माता के पूजन से देवी लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं और उन्होंने ऐरावत इंद्र पर आसन ग्रहण किया। माता जी के पूजन के इस तरह के स्वरूप को इस मंदिर में वर्षों से प्रतिष्ठापित कर पूजन किया जाता है। यहां नवरात्रि में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।
 

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