इस उम्र में न हों बीमार
बदलती जीवनशैली युवाओं को जहां टेक्स्टाफे्रनिया और टेबाकॉसिस जैसी बीमारियों की ओर धकेल रही है, वहीं अस्थमा, डिपे्रशन, स्लिप डिस्क जैसे रोग उन्हें अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। आगामी 16 जून को युवा दिवस...
बदलती जीवनशैली युवाओं को जहां टेक्स्टाफे्रनिया और टेबाकॉसिस जैसी बीमारियों की ओर धकेल रही है, वहीं अस्थमा, डिपे्रशन, स्लिप डिस्क जैसे रोग उन्हें अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। आगामी 16 जून को युवा दिवस है। ऐसे में क्यों न इन बीमारियों से दूर रहने की योजना बनाएं। विशेषज्ञों से बातचीत कर बता रहे हैं पंकज घिल्डियाल
युवाओं को इन दिनों कई नई तरह की बीमारियां घेर रही हैं। टेक्नोलॉजी का अधिक इस्तेमाल भी इसका एक बड़ा कारण है। उनमें अन्य परेशानियों के साथ-साथ अनिद्रा, कम भूख, गुस्सा और बेचैनी जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
टेक्स्टाफ्रेनिया की चपेट में युवा
अधिकतर युवाओं में यह शिकायत है कि वह मैसेज आने के अंदेशे में कुछ-कुछ देर बाद अपना मोबाइल देखते रहते हैं और लगातार मैसेज टाइप करने की वजह से उनके अंगूठे और कलाई के बीच दर्द रहता है।
कारण को जानें
सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट (ईएनटी) डॉ. अजय स्वरूप बताते हैं, 'युवाओं की सुनने की क्षमता में काफी गिरावट देखने को मिल रही है। पहले यह समस्या 50 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति में देखने को मिलती थी, पर अब 30 साल कायुवक इससे जूझ रहा है। हम सामान्यत: 30-35 डेसिबल में बातचीत करते हैं, लेकिन ईयर फोन लगाते ही यह 60-65 जा पहुंचता है। ऐसे में सुनने में मदद करने वाली नसों पर बुरा असर पड़ता है।' लगातार ईयर फोन लगाए रखने से कम उम्र में बहरेपन के मामले बढ़ रहे हैं। इलाज के पहले चरण में ईयर फोन का इस्तेमाल तुरंत बंद करवाया जाता है। स्मार्ट फोनों के बढ़ते इस्तेमाल से कम उम्र में ही लोगों को आंखों की बीमारियां भी हो रही हैं।
क्या है उपाय
टेक्स्टाफ्रेनिया की समस्या से छुटकारा पाने का बेहतर रास्ता तो यही है कि मोबाइल का उपयोग कम किया जाए। सिर्फ मैसेज नहीं, बल्कि मोबाइल से गपशप को भी सीमित किया जाए। संभव हो तो मिल कर ही लंबी बातचीत करें। विशेषज्ञ बताते हैं कि मोबाइल पर लगातार बात करने की वजह से आवाज की नली भी प्रभावित होती है और उसे आराम नहीं मिल पाता।
युवा बन रहे हैं टेबाकॉसिस के शिकार
शोध में पता चला है कि युवाओं में धूम्रपान की वजह से दिमाग, फेफड़े, गुर्दे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और मुंह के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। धूम्रपान और तंबाकू के सेवन से होने वाली सभी बीमारियों को टेबाकॉसिस कहते हैं।
कारण को जानें
सिगरेट में कार्बन मोनोऑक्साइड, आर्सेनिक, फॉर्मलडिहाइड, हाइड्रोजन, साइनाइड, अमोनिया, लेड और एसिटलडिहाइड आदि शामिल होते हैं। जो लोग एक दिन में एक पैकेट या उससे ज्यादा सिगरेट पीते हैं, वे धूम्रपान न करने वालों के मुकाबले 7 साल कम जीते हैं। शोधों से पता चलता है कि दुनियाभर की दिल की कुल बीमारियों का 10वां हिस्सा धूम्रपान की वजह से है। तंबाकू दिल के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि इसका निकोटीन धूम्रपान करने वाले का ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है। इससे धमनियों में रक्त के थक्के बनते हैं और शरीर में कार्बन मोनोऑक्साइड जमा हो जाती है, जिससे धमनियों की दीवारों पर कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगता है। इससे रक्त का प्रवाह रुक जाता है।
जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के हृदय विशेषज्ञ डॉ. बिमित कुमार जैन बताते हैं, 'युवाओं में हृदय रोग आज एक आम समस्या है। हमारे पास आने वाले दिल के मरीजों में 80 प्रतिशत रोगी युवा होते हैं। अधिकतर शुरुआती स्तर से आगे बढ़ चुके होते हैं, जिनकी एंजियोप्लास्टी तक करनी पड़ती है। काउंसलिंग से उन्हें आदतों को बदलने के लिए तैयार किया जाता है।'
क्या है उपाय
युवा निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी, दवाओं और व्यायाम के साथ-साथ तनाव से बचने के उपायों पर ध्यान देकर खुद को धूम्रपान से दूर रख सकते हैं।
अस्थमा है रिवर्सिबल डिजीज
मैक्स हेल्थकेयर (दिल्ली) के क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. संदीप बुद्धिराजा कहते हैं, 'मुख्यत: अस्थमा के दो कारण होते हैं। पहला प्रदूषण व धूल। इसमें बाहर घूमते हुए अस्थमा के मरीज को दिक्कत होती है। दूसरा लाइफ स्टाइल या कहें तनाव भी इसके प्रमुख कारणों में से एक है। किसी की सांस फूल रही है, सांस लेते हुए कोई खास आवाज आ रही है या सूखी खांसी है तो ये अस्थमा के लक्षण हैं। जब मौसम बदलता है तो अस्थमा के मरीजों को काफी दिक्कत होती है। अमूमन मार्च-अप्रैल व सितंबर-अक्तूबर में इसके अधिक मरीज डॉक्टर से संपर्क करते हैं।'
कारण को जानें
कॉलेज जाने वाले या नौकरी कर रहे युवा अक्सर घर में काफी अव्यवस्थित तरीके से रहते हैं। मसलन घर में अखबार की रद्दी का एकत्र होना, पेपर डस्ट या फिर साफ-सफाई का ध्यान न रखना आदि। इससे अस्थमा के मरीज को दिक्कत होती है। झाड़ू से धूल उड़ा कर साफ करने की बजाए गीले पोछे से सफाई करें।
क्या है उपाय
संभव हो तो खमीर से बने प्रोडक्ट- इडली, ब्रेड, पिज्जा, पेस्ट्री सहित चाइनीज फूड कम से कम खाएं। अधिक दिन खांसी रहने पर
टीबी की जांच के साथ-साथ अस्थमेटिक ब्रोंकाइटिस का टेस्ट कराना न भूलें।
अस्थमेटिक अटैक में भाप लेना फायेदमंद रहता है। इन्हेलर तुरंत लाभ देने में कारगर होता है। ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स, जिनसे क्लोरो फ्लोरो कार्बन निकलती हो, का भी कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
डिप्रेशन के परिणाम अच्छे नहीं
फोर्टिस हेल्थकेयर के डायरेक्टर (मनोचिकित्सा विभाग) डॉ. समीर पारिख का कहना है, 'डिप्रेशन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी बन कर सामने आई है। जहां हर चौथी महिला इसकी शिकार बनती है, वहीं हर 10वां पुरुष डिप्रेशन से पीडि़त है। डिप्रेशन एक रसायनिक असंतुलन का परिणाम होता है। तनाव आदि उसे बढ़ाने का काम करते हैं। इससे पीडि़त युवाओं की बात करें तो वे किसी भी क्लिनिक में सबसे ज्यादा आ रहे हैं।
कारण को जानें
इसकी बड़ी वजह जागरुकता है। काम या किसी अन्य कारण से लगातार दबाव में रहने पर बीमारी बड़ा रू प ले लेती है। युवा दबाव में अधिक दिन तक रहते हैं तो धीरे-धीरे मानसिक तौर पर बहुत कमजोर हो जाते हैं। कॉलेज में फेल होना या अच्छी जॉब न मिलना आदि टेंशन के कारण होते हैं।
क्या हैं उपचार
जल्दबाजी या किसी शॉर्टकट की बजाय सही समय पर सही रणनीति बना कर आगे बढ़ना चाहिए। काम या पढ़ाई में जुटने के साथ-साथ ब्रेक भी जरूरी है। वीकएंड में घूमने-फिरने के लिए समय निकालेंगे तो काफी लाभ होगा। युवाओं में ब्रेकअप को स्वीकार न कर पाना भी कई बार डिप्रेशन को न्योता देता है। डिप्रेशन के मरीज पर ध्यान न देना आत्महत्या जैसे परिणाम के रूप में सामने आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी परिस्थिति में आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए। समय पर सही मार्गदर्शन मिलना बेहद जरूरी है।
स्लिप डिस्क के संकेतों को पहचानें
आमतौर पर 60 वर्ष और इससे अधिक उम्र के लोगों में मिलने वाली यह बीमारी युवाओं में बढ़ रही है। शोधों में यह बात साबित हो चुकी है कि कंप्यूटर और मोबाइल का अधिक उपयोग एवं जिम में शरीर की मुद्रा का ध्यान न रखना इसका बड़ा कारण है। 600 युवाओं पर किए गए एक सर्वे में 216 युवाओं में स्लिप डिस्क की समस्या मिली।
कारण को जानें
फोर्टिस हेल्थकेयर के सीनियर ऑर्थोपेडिक कंसल्टेंट डॉ. हेमंत शर्मा के मुताबिक हर बैक पेन स्लिप डिस्क नहीं होता। हालांकि युवा काफी तेजी से इसका शिकार बन रहे हैं, लेकिन अधिकतर का पीठ या कमर दर्द काफी शुरुआती स्तर का होता है। इसमें वे युवा अधिक पीडि़त होते हैं, जो घंटों अपनी सीट पर बैठे रहते हैं और उनमें विटामिन डी3 की कमी भी होती है।
क्या हैं उपाय
व्यायाम करें तो पाएंगे कि इस बीमारी के शुरुआती स्तर से उबर गए हैं। स्लिप डिस्क की सही स्थिति के लिए एमआरआई करवाया जाता है। देखा जाता है कि डिस्क की कौन-कौन सी नसें दब गई हैं। अधिकतर यह समस्या व्यायाम और दवाओं से ठीक हो जाती है।