इलाज के डर से रेल किराये में रियायत नहीं लेते डॉक्टर
रेल किराये में सरकारी और गैर सरकारी सभी डॉक्टरों को दस प्रतिशत की रियायत मिलती है, लेकिन वे लेना नहीं चाहते। पश्चिमी सिंहभूम जिले के अधिकतर सरकारी व प्राइवेट डॉक्टर ट्रेनों में मिलने वाली रियायत लेने...
रेल किराये में सरकारी और गैर सरकारी सभी डॉक्टरों को दस प्रतिशत की रियायत मिलती है, लेकिन वे लेना नहीं चाहते। पश्चिमी सिंहभूम जिले के अधिकतर सरकारी व प्राइवेट डॉक्टर ट्रेनों में मिलने वाली रियायत लेने के बजाय पूरा किराया वहन कर सफर करना पसंद करते हैं। एक साल के आंकड़े कुछ ऐसा ही बताते हैं। रेलवे द्वारा डॉक्टरों को ट्रेन किराये में यह रियायत इस शर्त पर दी जाती है कि वे सफर के दौरान अगर कोई यात्री बीमार पड़ता है तो उन्हें मुफ्त में इलाज करेंगे।
एक साल में किसी ने नहीं ली रियायत : चक्रधरपुर स्टेशन पर तैनात आरक्षण कर्मचारी ने बताया कि एक साल में सरकारी या फिर गैर सरकारी किसी भी डॉक्टर ने किराये में रियायत नहीं ली है। सूत्रों की मानें तो अधिकतर डॉक्टरों को या तो इसकी जानकारी नहीं होती है या फिर वे सफर के दौरान किसी प्रकार के झंझट से मुक्ति चाहते हैं।
ऐसे मिलती है रियायत : रेल किराये में छूट के लिए आरक्षण फॉर्म के साथ एमबीबीएस अथवा समकक्ष डिग्री की फोटोकॉपी लगानी पड़ती है। साथ ही फॉर्म के ऊपर दिये कॉलम में सही का निशान लगाना होता है।
राउरकेला स्थित ओम अपोलो के निदेशक डॉ. अजीत सिंह का कहना है कि डॉक्टर किसी भी मरीज का इलाज करने से नहीं डरते। अधिकतर को इसकी जानकारी नहीं है। वे इसलिए लाभ नहीं लेते कि सफर के दौरान न तो उनके पास कोई चिकित्सा उपकरण होता है और न ही दवा। अगर रेलवे द्वारा ट्रेनों में चिकित्सा उपकरण तथा जीवन रक्षक दवाओं की व्यवस्था की जाए तो डॉक्टर सफर के दौरान भी यात्री का इलाज करने से पीछे नहीं हटेंगे।