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तुर्की में तख्तापलट की कोशिश हुई नाकाम, 250 से अधिक लोगों की मौत

तुर्की के प्रशासन ने कहा है कि उसने सेना के अंसतुष्ट सैनिकों की ओर से राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन से सत्ता कब्जाने की कोशिश को विफल कर देने के बाद पूरे देश पर नियंत्रण फिर हासिल कर लिया है। दोनों...

तुर्की में तख्तापलट की कोशिश हुई नाकाम, 250 से अधिक लोगों की मौत
एजेंसीSun, 17 Jul 2016 08:10 AM
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तुर्की के प्रशासन ने कहा है कि उसने सेना के अंसतुष्ट सैनिकों की ओर से राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन से सत्ता कब्जाने की कोशिश को विफल कर देने के बाद पूरे देश पर नियंत्रण फिर हासिल कर लिया है। दोनों पक्षों के बीच संघर्ष में 250 से अधिक लोगों की जान गयी। अपने 13 साल के निरंकुश शासन को मिली रक्तरंजित चुनौती के बाद एर्दोगन ने अपने समर्थकों से आठ करोड़ की जनसंख्या वाले इस रणनीतिक नाटो सदस्य देश में कल की तरह किसी भी संभावित अराजकता को रोकने के लिए सड़कों पर जमे रहने का आह्वान किया।

तख्तापलट की साजिश में पहले ही 2839 सैनिकों को हिरासत में लिए जाने के साथ ही अधिकारियों ने इस साजिश के लिए अमेरिका में रहने वाले एर्दोगन के प्रतिद्वंद्वी धर्मगुरू फतहुल्ला गुलेन को जिम्मेदार ठहराया। टेलीविजन पर तख्तापलट की विफलता के बाद बड़ी संख्या में सैनिक आत्मसमर्पण करते हुए नजर आए। कुछ ने अपने हाथ उठा रखे थे जबकि कुछ जमीन पर लेटे थे। प्रधानमंत्री बिनाली यिलदीरिम ने कहा, हालात अब पूरी तरह नियंत्रण में हैं। उनके साथ तुर्की के शीर्ष जनरल थे, उन्हें भी साजिशकर्ताओं ने बंधक बना लिया था। यिलदीरिम ने देश में तख्तापलट के प्रयास को लोकतंत्र के लिए काला धब्बा करार देते हुए कहा कि रात में हिंसा में 161 लोग मारे गए हैं और 1,440 लोग घायल हुए हैं।

ऐसा जान पड़ता है कि मृतकों की संख्या में मारे गए 104 विद्रोही सैनिक शामिल नहीं हैं। उनकी संख्या भी मिलाकर रक्तपात में मरने वालों की संख्या 265 होती है। तख्तापलट की कोशिश के दौरान एर्दोगन की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी के समर्थकों ने बड़ी संख्या में क्षंडा लहराते हुए कर्फ्यू का उल्लंघन किया और तख्तापलट की कोशिश रोकने के लिए उन्होंने सड़कों पर मार्च किया। एर्दोगन ने सड़कों पर उतरे लोगों से अपील करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया तथा यह सुनिश्चित किया कि उनकी सत्ता को और चुनौती नहीं मिले। उन्होंने कहा, हमें आज रात सड़कों पर कब्जा बनाए रखना चाहिए चाहे कोई भी स्थिति हो क्योंकि नया प्रयास किसी भी समय हो सकता है।

स्थिति शांत होने पर टीवी पर जो खबरे आयीं उनमें अंकारा में संसद भवन को बहुत नुकसान नजर आ रहा था, विद्रोहियों ने जेट से उस पर बम बरसाए थे। कल की तख्तापलट की कोशिश विद्रोहियों के एफ-जेटों के अंकारा में काफी नीचे तक उतरने के साथ शुरू हुई। सैनिक और टैंक सड़कों पर उतर गए। राजधानी और सबसे बड़े शहर इस्तांबुल में रातभर कई विस्फोट हुए। विद्रोही सैनिक इस्तांबुल में बोसफोरस जलडमरूमध्य पर दो पुलों को अवरूद्व करने के लिए आगे भी बढ़ गए। वहां उनका क्रुद्ध भीड़ से मुकाबला हुआ।

सैनिकों ने एक पुल पर एकत्रित हुए प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई जिससे कई लोग घायल हो गए। इस्तान्बुल के प्रसिद्ध तकसीम स्क्वायर पर भी लोग तख्तापलट के प्रयास का विरोध कर रहे थे। सैनिकों ने उन पर गोलियां चलायीं और कई लोग घायल हो गए। इस्तांबुल में अफरा-तफरी मची रही। बड़ी संख्या में लोग इसका विरोध करते हुए सड़कों पर उतर गए, हालांकि कुछ लोग सैनिकों का स्वागत करते देखे गए।

एक व्यक्ति ने एएफपी को बताया, लोग संभावित सैन्य सरकार से डरे हुए हैं। हममें से ज्यादा लोग सेना में सेवा दे चुके हैं और वे जानते हैं कि सैन्य सरकार का मतलब क्या होगा। तुर्की की सेना के एफ-16 लड़ाकू विमानों ने अंकारा में राष्ट्रपति महल के बाहर खड़े विद्रोहियों के टैंकों को निशाना बनाया। परिसर के समीप स्थित एएफपी कार्यालय को विस्फोटों की नियमित आवाज सुनाई दे रही थी।

एर्दोगन का अतातुर्क हवाईअडडे पर लौटने पर सैकड़ों समर्थकों ने स्वागत किया। उन्होंने तख्तापलट के प्रयास की निन्दा की और कहा, जो भी साजिश रची जा रही है, वह देशद्रोह और विद्रोह है। उन लोगों को देशद्रोह के इस कत्य की भारी कीमत चुकानी होगी। एर्दोगन के आलोचक ने उन पर तुर्की की धर्मनिरपेक्ष जड़ों को कमजोर करने और देश को अधिनायकवाद की ओर ले जाने का आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन माना जाता है कि राष्ट्रपति सेना के बीच अपने विरोधियों को मनाने और सेना पर काफी हद तक नियंत्रण रखने में सफल रहे।

तुर्की की सेना को उस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का रक्षक माना जाता है जिसकी स्थापना वर्ष 1923 में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने की थी। सेना ने वर्ष 1960 के बाद से तुर्की में तीन बार तख्तापलट की कोशिश की और वर्ष 1997 में इस्लामी सरकार को बेदखल कर दिया था।

एर्दोगन ने तख्तापलट के लिए तत्काल समानांतर सरकार और पेंसिलवानिया को जिम्मेदार ठहराया। उनका इशारा पेंसिलवानिया आधारित फतहुल्ला गुलेन की ओर था। गुलने उनके धुर विरोधी हैं तथा एर्दोगन ने उन पर हमेशा सत्ता से बेदखल का प्रयास करने का आरोप लगाया। परंतु राष्ट्रपति के पूर्व सहयोगी गुलेन ने इससे इंकार करते हुए कहा कि उनका तख्तापलट की इस कोशिश से कोई लेना देना नहीं है और उन पर आरोप लगाना अपमानजनक है।

यिलदीरिम ने गुलेन को आतंकवादी संगठन का नेता करार देते हुए उसे पनाह देने वाले अमेरिका पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, उसके पीछे जो भी देश है वह तुर्की का मित्र नहीं है और उसने तुर्की के खिलाफ गंभीर युद्ध छेड़ रखा है। इसी बीच लक्जमबर्ग में अमेरिकी विदेश मंत्री जान केरी ने कहा कि यदि तुर्की के पास गुलेन के खिलाफ कोई सबूत है तो वह उसे सौंपे। इसी बीच तुर्की ने उन आठ लोगों के प्रत्यर्पण की मांग की जिनके बारे में समझा जाता है कि वे इस तख्तापलट की कोशिश में शामिल थे और वे यूनान में ब्लैक हॉक सैन्य हेलीकॉप्टर से उतरे।

इस्तांबुल में प्रशासन ने जनजीवन सामान्य करने की कोशिश की, पुल यातयात के लिए खोल दिए गए। साजिशकर्ताओं द्वारा बंद किए बए अतार्कुक हवाई अडडे को भी फिर से खोला जा रहा है। लेकिन अमेरिका ने कहा है कि तख्तापलट की कोशिश के बाद फैली अनिश्चितता के कारण उसने तुर्की की अपनी सारी उड़ाने निलंबित कर दी है तथा तुर्की से अमेरिका आने वाली सभी एयरलाइनों पर रोक लगा दी है।

विश्व नेताओं ने शांति का आहवान किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और अन्य पश्चिमी देशों ने सरकार के समर्थन का आग्रह किया जिसके बारे में उन्होंने कहा कि वह लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई है। नौटो प्रमुख जेंस स्टोनटेनबर्ग ने कहा कि तुर्की में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के प्रति लोगों और राजनीतिक दलों ने मजबूत समर्थन दिखाया गया।

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