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किसानों तक पहुंचे नई तकनीक का लाभ : मंगेश

डीएम मंगेश घिल्ड़ियाल ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति बेहद विकट है। पर्वतीय क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या पलायन है। इसे रोकने के लिए शिक्षा पद्यति में सुधार की बेहद जरूरत है। दूसरी...

किसानों तक पहुंचे नई तकनीक का लाभ : मंगेश
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Dec 2016 09:11 PM
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डीएम मंगेश घिल्ड़ियाल ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति बेहद विकट है। पर्वतीय क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या पलायन है। इसे रोकने के लिए शिक्षा पद्यति में सुधार की बेहद जरूरत है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है कृषि और आज के समय में कृषि में सुधार जरूरी है। कृषि को लाभकारी बनाकर पलायन की समस्या को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है। दुर्भाग्य है कि युवाओं में कृषि के प्रति रूचि घट रही है।

वैज्ञानिकों को अपने उन्नत शोध के माध्यम से कृषि के प्रति विश्वास जगाना है। आज हम कृषि को लोगों के बीच ले जाने में विफल हैं वैज्ञानिकों और सरकारी सिस्टम को इसे सुधारना होगा। कृषि में उदाहरण तैयार करने होंगे, जिससे लोग कृषि के प्रति आकर्षित होंगे। वैज्ञानिकों को नए शोध करके उसे किसानों तक पहुंचाना होगा। डीएम कृषि विज्ञान केंद्र काफलीगैर में वैज्ञानिक सलाहकार समिति की दसवीं बैठक में बोल रहे थे। उन्होंने किसान प्रतिनिधियों ने उर्वरक, पशुओं के गर्भाधान और कृषि संबंधी जानकारी देने का अनुरोध किया। कहा कि वैज्ञानिकों के शोध कार्यों को लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सरकारी विभागों की है। मनरेगा के माध्यम से किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए, इसके लिये जरूरी है कि वैज्ञानिक शोध कार्यों से क्रियाकलापों में विभागों की भागीदारी सुनिश्चित करें। मनरेगा के तहत कृषि क्षेत्र में कम नहीं किये जा रहे हैं, लोगों को जानकारी नहीं है कि कृषि क्षेत्र में कौन-कौन से काम शामिल हैं। बैठक में कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक और फसल उत्पादन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जेके बिष्ट ने किसानों को हरसंभव जानकारी और सहयोग देने को कहा।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों के हर शोध का लाभ किसानों को मिलना चाहिए। किसानों के पलायन को रोकना और आजीविका को लाभकारी बनाना होगा। उन्होंने कहा कि पहला काम प्रयोगशाला में होता है दूसरा चरण उस शोध को किसानों तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल फसल उगाकर पर्वतीय कृषि को फायदेमंद नहीं बनाया जा सकता है। वैज्ञानिकों को अपने शोध में पशुपालन, बेमौसमी सब्जी को शामिल करना होगा। उन्होंने कहा कि शोधकार्य और शोध से सम्बंधित योजनाओं में उद्योग और स्वयंसेवी संस्थाओं को शामिल करना होगा। उन्होंने किसानों को प्रशिक्षित करते समय उद्योग, पशुपालन, ग्रामीण विकास विभाग से भी उनके विभागों की योजनाओं की जानकारी लेनी चाहिए। बैठक में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा से आए फसल सुधार विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रधान वैज्ञानिक जेके बिष्ट, वरिष्ठ वैज्ञानिक केके मिश्रा, डॉ. आर के शर्मा, डॉ. अनिल कुमार, पादक सुरक्षा विशेषज्ञ हरीश चन्द्र जोशी और गोपाल राम आर्य आदि मौजूद थे।

जनप्रतिनिधयों ने उठाई समस्या

ग्रामीण जनप्रतिनिधियों ने बताया कि जंगली जानवरों ने उनकी खेती को चौपट कर दिया है, इससे किसानों को सुरक्षा मिलनी चाहिए। एक अन्य प्रतिनिधि ने बताया कि किसानों में उन्नत बीज और खेती की जानकारी के लिए जागरूकता बढ़ी है। लोगों को केंद्र का लाभ मिला है। किसान मोहन सिंह ने बताया कि उन्होंने केंद्र से बीज प्राप्त किया, जिससे वे अब पचास हजार के बीज तैयार कर चुके हैं।

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