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क्या रजनीकांत को रास आएगी राजनीति

दशकों तक तमिल सिनेमा के महानायक रहे रजनीकांत क्या राजनीति में प्रवेश करेंगे? पहले भी ऐसे कई मौके आए, जब सियासत में उनके उतरने को लेकर जोरदार अटकलें लगाई गईं, मगर आज जितनी अपेक्षित वे कभी नहीं लगीं।...

क्या रजनीकांत को रास आएगी राजनीति
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 03 Apr 2017 10:30 PM
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दशकों तक तमिल सिनेमा के महानायक रहे रजनीकांत क्या राजनीति में प्रवेश करेंगे? पहले भी ऐसे कई मौके आए, जब सियासत में उनके उतरने को लेकर जोरदार अटकलें लगाई गईं, मगर आज जितनी अपेक्षित वे कभी नहीं लगीं। इस बार की चर्चा का बड़ा फर्क यह है कि रजनीकांत में भारतीय जनता पार्टी ने काफी दिलचस्पी दिखाई है। दरअसल, भगवा पार्टी तमिलनाडु में अपनी ठोस मौजूदगी दर्ज करना चाहती है, और इस लक्ष्य को पाने के लिए वह रजनीकांत की लोकप्रियता पर सवारी करना चाहेगी। पर क्या रजनीकांत राजनीति में उतरेंगे, या नहीं?

रजनीकांत राजनीति में आने को लेकर अब तक हिचकते रहे हैं, लेकिन केंद्र व राज्य भाजपा के अनेक नेताओं के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता उन्हें इसके लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि उनके करीबी दोस्त और शुभचिंतकों की सलाह इसके खिलाफ है। जाहिर है, महानायक ऊहापोह में हैं। तमिलनाडु का सियासी इतिहास ऐसे नेताओं की कहानियों से भरा पड़ा है, जो रुपहले परदे के जरिये सत्ता-शिखर पर पहुुंचे। हालांकि कई लोग कामयाब नहीं भी हुए और उनमें से कई को धूल चाटनी पड़ी। रजनीकांत इस जोखिम को बखूबी समझते हैं, और शायद इसीलिए वह फैसला करने से पहले उसे अच्छी तरह से तौल लेना चाहते हैं। 

उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित सफलता हासिल करने के बाद भाजपा ने एलान किया है कि अब उसका लक्ष्य दक्षिण भारत है। हालांकि आंध्र प्रदेश में इसके पास एक भरोसेमंद सहयोगी है और पार्टी काफी आश्वस्त है कि वह कर्नाटक में भी सत्ताधारी कांग्रेस को पराजित कर देगी। वहां अगले ही साल चुनाव होने वाले हैं। पिछले साल केरल में भाजपा न केवल अपना खाता खोलने में सफल रही, बल्कि 14.6 फीसद का सम्मानजनक वोट प्रतिशत भी हासिल किया था। पार्टी मानती है कि वह यहां से आगे ही बढ़ेगी। लेकिन तमिलनाडु उसके लिए एक पहेली ही बना हुआ है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू पूरे देश पर छाया हुआ है, तब भी यह द्रविड़ राज्य एक चुनौती बना हुआ है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह काफी वक्त से यहां के लिए कोई फॉर्मूला गढ़ने में जुटे हैं। पार्टी इस बात को बखूबी समझती है कि उत्तर प्रदेश में किसी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किए बगैर वह चुनाव भले जीत गई, लेकिन यह फॉर्मूला तमिलनाडु में कारगर नहीं होने वाला।

इसीलिए भाजपा वहां एक ऐसा चेहरा तलाश रही है, और रजनीकांत इसके लिए सबसे मुफीद लगते हैं। रजनीकांत एक लोकप्रिय कलाकार हैं। उनकी लोकप्रियता का जादू न सिर्फ तमिलनाडु में कायम है, बल्कि पूरे तमिलभाषी समाज में, जिनमें श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर के तमिलभाषी भी शामिल हैं, उनकी जबर्दस्त अपील है। यहां तक कि जापान में भी वह काफी लोकप्रिय हैं, और उनके प्रशंसक यूरोप व अमेरिका के अनिवासी भारतीय भी हैं। रजनीकांत उन पहले सेलिब्रिटीज में से एक थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के कदम का स्वागत किया था। साल 2014 के अपने चुनाव अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी उनसे मिलने उनके घर भी गए थे। जयललिता की मौत के बाद आर के नगर विधानसभा क्षेत्र में उप-चुनाव हो रहे हैं, वहां से भाजपा प्रत्याशी गंगई अमरन पिछले दिनों रजनीकांत के पोएस गार्डन स्थित घर पर उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। उन्होंने रजनीकांत के साथ अपनी तस्वीर को जनता के बीच कुछ यूं परोसी है मानो दोनों के घरेलू रिश्ते हैं और रजनीकांत उनका समर्थन कर रहे हैं। हालांकि रजनीकांत ने बगैर कोई वक्त गंवाए प्रेस विज्ञप्ति के जरिये यह साफ कर दिया कि इस उप-चुनाव में वह किसी का समर्थन नहीं कर रहे हैं। वह भी तब,जब संगीत निर्देशक गंगई अमरन और रजनीकांत में पुरानी दोस्ती है।

रजनीकांत इसलिए भी एहतियात बरत रहे हैं, क्योंकि अभी वह कुछ तय नहीं कर पाए हैं। 1990 के दशक में रजनीकांत की लोकप्रियता जब अपने चरम पर थी, तब जयललिता व करुणानिधि जैसे दुर्जेय विरोधी उनके मुकाबले में थे। अब जब जयललिता की मौत हो चुकी है और वयोवृद्ध करुणानिधि अपनी खराब सेहत से जूझ रहे हैं, तब राज्य में नेतृत्व का खालीपन सा दिख रहा है। बहुत सारे लोग इसे राज्य की राजनीति में एक अहम मोड़ के तौर पर देख रहे हैं। लेकिन हकीकत यह भी है कि राज्य में नए मतदाताओं की एक ऐसी पौध उग आई है, जो शायद रजनीकांत को महज इसीलिए वोट न करे कि वह एक सुपर स्टार हैं। सोशल मीडिया पर राज्य के नौजवान सूबे के सियासी हालात पर अपनी गहरी चिंता जता रहे हैं।

रजनीकांत के प्रति भाजपा के प्रेम के पीछे दरअसल उनकी आध्यात्मिक रुचि एक बड़ी वजह है। उन्होंने हाल ही में एक सार्वजनिक सभा में दावा किया कि आध्यात्मिक बनने से उन्हें काफी संबल मिला है। वह क्रिया योग करते हैं और मेडिटेशन के लिए अक्सर हिमालय जाते हैं। इस सफर में पड़ने वाले हरिद्वार, बद्रीनाथ और केदारनाथ आदि पड़ावों पर वे विभिन्न साधु-संतों का आशीर्वाद भी लेते हैं। रजनीकांत की राजनीतिक आकांक्षा की झलक उनकी फिल्म बाबा में दिखती है, जिसमें वह ‘कुटिल और भ्रष्ट राजनीतिक वर्ग’ को ध्वस्त कर देते हैं, लेकिन खुद मुख्यमंत्री बनने से दूर रहते हैं। उनके एक जीवनीकार के मुताबिक, रजनीकांत ‘किंग’ बनने की बजाय ‘किंग मेकर’ बनना चाहेंगे। क्योंकि वह इस बात को लेकर बेहद सतर्क हैं कि इस जिम्मेदारी के साथ कुछ बुरी चीजें भी साथ आएंगी।   
एमजीआर, करुणानिधि और जयललिता ने सिनेमा के रास्ते से राजनीति में प्रवेश किया था, लेकिन उन्होंने इसकी तकलीफें भी उठाईं। वे राजनीतिक आंदोलनों में शरीक हुए और इसके उतार-चढ़ाव का सामना किया। रजनीकांत किसी भी राजनीतिक आंदोलन में सक्रिय भागीदारी से परहेज बरतते रहे हैं। ऐसे में, क्या उनमें नेतृत्व करने की योग्यता है? उन्हें जयललिता या नरेंद्र मोदी के राजनीतिक करियर से एक-दो चीजें सीखनी पड़ेंगी। ये दोनों नेता अपने फैसले के साथ पूरी प्रतिबद्धता से खड़े रहे हैं, भले ही वह फैसला गलत साबित हुआ हो। जयललिता का लिट्टे विरोधी स्टैंड और मोदी का नोटबंदी का फैसला इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। लेकिन रजनीकांत ने चंद लोगों के आवाज उठाने पर अपना श्रीलंका दौरा रद्द कर दिया था। तो क्या उनमें नेतृत्व की क्षमता है?  

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