कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
पिछले दिनों दिवंगत हुए शायर निदा फाजली का यह शेर बहुत मशहूर है- कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता। इस शेर के इतने लोकप्रिय होने की वजह यह है कि इसकी सच्चाई...
पिछले दिनों दिवंगत हुए शायर निदा फाजली का यह शेर बहुत मशहूर है- कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता। इस शेर के इतने लोकप्रिय होने की वजह यह है कि इसकी सच्चाई सबको अपने दिल के करीब मालूम देती है। हर आदमी को लगता है कि उसे दुनिया जैसी मिली है, उसका कुछ हिस्सा जैसा है, वैसा न होता, तो मजा आ जाता।
निदा का एक और मशहूर शेर है- हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिसको भी देखना, कई बार देखना। इस शेर में हर आदमी में जो दस-बीस आदमी होते हैं, उन्हें दुनिया के अलग-अलग हिस्से ठीक नहीं लगते। वैसे भी जिस आदमी में दस-बीस आदमी रहें, वह खुद ही मुकम्मल क्या रह पाएगा, धर्मशाला का कमरा बन जाएगा। उसे रस्सी पर टंगे कपड़ों में अपनी बनियान तक मिलना मुश्किल है, तो दुनिया कहां से मुकम्मल मिलेगी?
लेकिन यहां बात कुछ दूसरे किस्म की हो रही है। दुनिया में तरह-तरह के लोग होते हैं। कुछ आपके दोस्त होते हैं, कुछ दुश्मन भी हो सकते हैं, कुछ दोस्तनुमा दुश्मन और दुश्मननुमा दोस्त होते हैं। ज्यादातर लोग आपको जानते ही नहीं हैं, इसलिए न दोस्त होते हैं, न दुश्मन। फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप पर बहुत सक्रिय लोगों को यह गलतफहमी होती है कि उन्हें पूरी दुनिया जानती है, लेकिन असलियत वही है।
कुछ लोग अपने देश में पिछले दिनों ऐसे नजर आए, जिन्हें यह लगता है कि काश, दुनिया में ज्यादातर लोग उनके दुश्मन होते। वे कोशिश करते हैं कि जो उनके प्रति कोई बुरा नजरिया नहीं रखते, उन्हें भी दुश्मन बना लिया जाए। वे ऐसे लोग हैं, जो जहर, कड़वाहट और गुस्से की खुराक पर पलते हैं। वे कोशिश करते हैं कि उनके दुश्मन तो मूर्त इंसान हों, इस जाति वाले, उस धर्म वाले, अमुक इलाके वाले और वे प्रेम अमूर्त श्रेणियों से करते हैं, जैसे देश, धर्म, प्रांत वगैरह।
इसके बावजूद उनका जहान मुकम्मल नहीं बनता। आप कितने ही दुश्मन बना लें, दुनिया में आपको प्रेम करने वाले मिल ही जाएंगे। कितनी अच्छी बात है कि दुनिया हमेशा अधूरी रहती है।
राजेन्द्र धोड़पकर