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इस तरह तो नहीं बचेंगे देश के बाघ

बाघ संरक्षण कार्यक्रम पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। एक ओर सरकार ने बाघ संरक्षण परियोजना के लिए दी जाने वाली धनराशि में कटौती कर दी है, वहीं दूसरी ओर बाघों की मौत का बढ़ता आंकड़ा गंभीर चिंता का विषय...

इस तरह तो नहीं बचेंगे देश के बाघ
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 31 Jan 2016 09:19 PM
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बाघ संरक्षण कार्यक्रम पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। एक ओर सरकार ने बाघ संरक्षण परियोजना के लिए दी जाने वाली धनराशि में कटौती कर दी है, वहीं दूसरी ओर बाघों की मौत का बढ़ता आंकड़ा गंभीर चिंता का विषय बन गया है। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी के अनुसार, बीते साल कर्नाटक में 15, महाराष्ट्र में 12, मध्य प्रदेश में 11, उत्तराखंड में सात और तमिलनाडु में छह बाघों को मिलाकर कुल 69 की मौत हुई।

अनुमान है कि इनमें से अधिकांश मौतें क्षेत्राधिकार के चलते, कुछ प्राकृतिक कारणों से, कुछ रेडियो कॉलर से संक्रमण के चलते, कुछ उनके लिए जाल बिछाए जाने और कुछ पिंजरे में फंसने के चक्कर में हुईं। इसके पीछे वन्यजीव अंगों के तस्करों का हाथ होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। नए साल के शुरुआती हफ्तों में ही सात बाघों की मौत हो चुकी है।

एक समय देश में बाघों की तादाद 40 हजार थी। यह भी सच है कि 20वीं सदी में भारत में 35 हजार से ज्यादा बाघ मारे गए। इसमें अंग्रेजों द्वारा बाघों का शिकार, व्यावसायिक, औषधि उपयोग और अंगों व खालों के अवैध व्यापार के लिए हत्या, वनों की अंधाधुंध कटाई और कंकरीट के भवनों का तेजी से निर्माण प्रमुख कारण रहे। 80 के दशक में प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता के बाद ऐसा कोई उदाहरण नहीं है, जब बाघों की संख्या बढ़ाने की गंभीर कोशिश हुई हो।

इसके बाद से बाघों की संख्या और बाघ संरक्षण का बजट लगातार घटते ही रहे हैं। अब केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर के तहत नेशनल पार्क और अभयारण्यों के विकास के लिए 16 केंद्र प्रायोजित परियोजनाओं के लिए मिलने वाले फंड में 40 फीसदी की भारी कटौती कर दी है, जबकि अब तक इन योजनाओं के लिए गैर आवर्ती व्यय के लिए केंद्र सरकार 100 फीसदी अनुदान देती रही है।

हालांकि इन सबके बावजूद दुनिया के करीब 70 फीसदी बाघ अकेले भारत में हैं। आज जितने बाघ भारत में हैं, उनके बढ़ने के लिए भी देश में जगह कम पड़ रही है। उनके आवास क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पा रहा है। जंगलों की अवैध कटाई, इनके आवास क्षेत्र से गुजरने वाली सड़कों के चौड़ीकरण, खनन व अन्य बुनियादी ढांचों के निर्माण से इनके कुदरती क्षेत्र में दखलंदाजी हो रही है। रणथंभौर, बांदीपुर, नागरहोल, कान्हा, पेंच, जिम कार्बेट, काजीरंगा देश के वे बाघ अभयारण्य हैं, जहां क्षेत्रफल के मुकाबले बाघों की तादाद ज्यादा है। इस कारण ये अक्सर आपस में लड़ते-भिड़ते और मर जाते हैं।

कोई बाघ अपने से कमजोर बाघ को अपने इलाके में घुसने नहीं देता। ऐसे में कमजोर बाघ अभयारण्य में अपना आवास बनाए नहीं रख पाता। इस कारण वह मध्यवर्ती क्षेत्र या आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख करता है। बाघों को बचाने की जरूरत इसलिए है कि वे हमारी वन्य जीव संस्कृति के प्रतिनिधि हैं। यदि वे लुप्त हो गए, तो इस संस्कृति की एक कड़ी ही खत्म हो जाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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