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शरद पूर्णिमा का चांद

वैज्ञानिक तरकीब लगाकर उस पर जा बैठा। वहां पानी है या लोगों के कदमों के निशान? इससे परे एक चांद और है, प्रकृति का नायाब तोहफा। कल तक आंगन में बैठी दादी अपने नाती को दूध पिलाते समय चांद को बुला लेती...

शरद पूर्णिमा का चांद
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 27 Oct 2015 09:18 PM
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वैज्ञानिक तरकीब लगाकर उस पर जा बैठा। वहां पानी है या लोगों के कदमों के निशान? इससे परे एक चांद और है, प्रकृति का नायाब तोहफा। कल तक आंगन में बैठी दादी अपने नाती को दूध पिलाते समय चांद को बुला लेती थी, 'आरे आव-बारे आव, बचवा के मुंह में घुटुक' और सितुही भर दूध गले के नीचे। अब वह चांद नहीं आता, क्योंकि अब माटी की महक नहीं बची, दादी का जमाना बदल गया है।

दादी जिंदगी पढ़कर, दुनिया देखकर आती थी, आज की दादियां एक सौ आठ चैनल देखकर नई-नवेली बहुओं से अपनी चाल-ढाल मिलाती हैं। वे क्या बताएं चांद की बातें? चांद अब भी निकलता है, पर दिखता नहीं, मुंह ऊपर करिए, तो हैलोजन लाइट बीच में खड़ी मिलेगी। मुग्धाओं के चमकीले चेहरे अब चांद की तरह नहीं चमकते, फेयर ऐंड लवली से पुते हुए मिलते हैं। क्या-क्या चीजें हमने बदल दीं, लेकिन प्रकृति के मर्म को आज तक नहीं समझ पाए। आज भी समंदर चांद को देखते उफन जाता है।

पूर्णिमा के चांद को देखते ही उन मुग्धाओं को मीठा दर्द शुरू हो जाता है, जिन पर शुक्र और चंद्र भारी होते हैं। विज्ञान इसे नहीं खोज पाया है। चांद का काम से यह रिश्ता क्यों है? गृहस्थ मंडन मिश्र की अर्द्धांगिनी भारती के उस सवाल को याद कीजिए, जिसने शास्त्रार्थ में संन्यासी को परास्त कर दिया था- शुक्ल पक्ष में जब पूर्ण चांद निकलता है, तो काम की इच्छा पर कोई प्रभाव पड़ता है कि नहीं? संन्यासी निरुत्तर हो गया था। वही चांद कल आसमान में था और हम उसके साथ।
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