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अपने बच्चों के लिए पढ़ें

मुझे लगता है कि हम आज ऐसे सांस्कृतिक परिवेश में रह रहे हैं, जो इतिहास के किसी भी दौर के मुकाबले कहीं ज्यादा पाठ-संपन्न है। लोग दिन भर पढ़ते रहते हैं। गूगल, ट्विटर और फेसबुक शब्दों का अंबार लगाते रहते...

अपने बच्चों के लिए पढ़ें
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Sep 2015 08:56 PM
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मुझे लगता है कि हम आज ऐसे सांस्कृतिक परिवेश में रह रहे हैं, जो इतिहास के किसी भी दौर के मुकाबले कहीं ज्यादा पाठ-संपन्न है। लोग दिन भर पढ़ते रहते हैं। गूगल, ट्विटर और फेसबुक शब्दों का अंबार लगाते रहते हैं। लोग अपनी आंखों को स्मार्टफोन से अलग नहीं कर पाते- जो मूलत: पाठ और सूचना बांटने वाली मशीन है। सच कहें, तो हमारी समस्या हर वक्त पढ़ते ही रहने की है। कभी-कभी तो उन्हें शब्दों के इस जंजाल से बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है। फिर भी, लोग क्या पढ़ रहे हैं? ऐसा लगता है कि वे ढेर सारी किताबें नहीं पढ़ते। मैं बच्चों की नहीं, बल्कि बड़ों की बात कर रहा हूं। मैं ऐसे कई पढ़े-लिखे भद्रजनों से मिल चुका हूं, जिन्होंने मुझे बताया कि उन्हें किताबें पढ़ने का समय ही नहीं मिलता।

वे न्यूयॉर्क टाइम्स  में छपने वाली पुस्तक समीक्षाओं को देख लेते हैं, ताकि पार्टियों में होने वाली पुस्तक चर्चाओं में अपनी इज्जत बचा सकें। क्या हमारी संस्कृति घनघोर रूप से गैर-अकादमिक और बौद्धिकता विरोधी नहीं हो गई है?...फिर भी हैरान हैं कि बच्चे पढ़ क्यों नहीं रहे हैं? लेकिन मेरे बच्चे (छह और आठ वर्ष) खुद से खूब पढ़ते हैं। इसलिए नहीं कि मै ऐसा चाहता हंू- वीडियो गेम खेलना हो, तो पहले 30 मिनट पढ़ो। इसलिए भी कि उनके डैड की पढ़ने की आदत उनके लिए मॉडल का काम करती है। डैड हमेशा नई-नई किताबें मंगाते रहते हैं। डैड हमेशा उन्हें पढ़ते हुए दिखाई देते हैं। मेरे घर में वयस्क होने का मतलब किताबों की सोहबत में रहने वाला होता है।
जिज्ञासा में जार्डन सैपाइरो

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