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एक और झगड़ा

दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर स्वाति मालीवाल की नियुक्ति को लेकर राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार और उप-राज्यपाल नजीब जंग में युद्ध शुरू हो गया है। दिल्ली की आप सरकार और केंद्र सरकार के अधीन काम कर...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Jul 2015 08:18 PM
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दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर स्वाति मालीवाल की नियुक्ति को लेकर राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार और उप-राज्यपाल नजीब जंग में युद्ध शुरू हो गया है। दिल्ली की आप सरकार और केंद्र सरकार के अधीन काम कर रहे उप-राज्यपाल और पुलिस कमिश्नर के बीच रोज एक नया विवाद खड़ा हो रहा है। लगातार हो रहे इन झगड़ों में यह खोज पाना मुश्किल है कि किस मुद्दे पर कौन सही है और कौन गलत है। इस नए मुद्दे पर भी यह बता पाना मुश्किल है कि किसकी गलती है? उप-राज्यपाल का यह कहना सही लगता है कि महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति करने का अधिकार उप-राज्यपाल का है। अगर कानूनी पेचीदगियों में न जाएं, तो तरीका यही है कि राज्य सरकार किसी नाम की सिफारिश उप-राज्यपाल से करे और उप-राज्यपाल उसे मंजूरी देकर आदेश जारी कर दे। उप-राज्यपाल की ओर से जो बयान जारी हुआ है, उसके मुताबिक ऐसा नहीं किया गया, बल्कि सरकार ने अपनी ओर से आदेश जारी कर दिया।

राज्य सरकार ने प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया और इसके पीछे क्या वजह थी, यह कयास ही लगाया जा सकता है। शायद यह भूल से या अनजाने में हुआ हो या फिर ऐसा हो सकता है कि अरविंद केजरीवाल ने अपना अधिकार जताने के लिए ऐसा किया, ताकि उप-राज्यपाल के साथ एक और मोर्चा खोला जा सके। हो सकता है कि राज्य सरकार को डर हो कि उप-राज्यपाल को प्रक्रिया में शामिल करने से वह इसमें अड़ंगा लगा देंगे।
अच्छा यह होता कि इसे अनजाने में हुई भूल मानकर सुधारने के लिए मित्रतापूर्ण अंदाज में कह दिया जाता। लेकिन उप-राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच रिश्ते ऐसे नहीं हैं कि कोई भी झंझट मित्रतापूर्ण अंदाज में सुलझा लिया जाए। तो इस मुद्दे पर भी तलवारें खिंच गई हैं। उप-राज्यपाल की ओर से यह बयान आ गया कि सांविधानिक स्थिति के मुताबिक, 'उप-राज्यपाल ही दिल्ली सरकार' है। राज्य सरकार ने अपनी ओर से इसका तीखा प्रतिवाद किया। स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया कि उन्हें दफ्तर न जाने और फाइलों पर दस्तखत न करने के लिए उप-राज्यपाल के दफ्तर की ओर से कहा गया। उप-राज्यपाल ने इसका खंडन किया है।

जो भी हो, यह अच्छा नहीं है कि रोजाना दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के नुमाइंदों के बीच झगड़े होते रहें। संघीय ढांचे में यह आम बात है कि अलग-अलग पार्टियों की सरकारें केंद्र और राज्य में हों। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए ऐसी उलझनें होंगी ही कि उप-राज्यपाल और राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र कहां-कहां हैं? लेकिन इन्हें परिपक्व और समझदार लोगों की तरह मिल-बैठकर तय कर लेना चाहिए। अन्यथा यह दिल्ली के आम नागरिकों के साथ अन्याय होगा। इन झगड़ों की अतिरिक्त आक्रामकता बताती है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार किसी भी हद तक जाकर इन झगड़ों में जीतने की कोशिश कर रही हैं।

हो सकता है कि 'आप' सरकार कामयाब हो या नाकाम रहे, लेकिन अगर दिल्ली की जनता ने उसे चुना है, तो उसे अपने बूते कामयाब या नाकाम होने का अवसर देना लोकतंत्र का तकाजा है। उप-राज्यपाल भले ही अपने को सरकार मानें, लेकिन जनादेश का सम्मान होना ही चाहिए। इसी तरह, 'आप' सरकार को भी शत्रुओं से ज्यादा मित्र बनाने की कोशिश करनी चाहिए और सनसनीखेज आरोप लगाने से बाज आना चाहिए। सबकी मुख्य जवाबदेही दिल्ली की जनता के प्रति है। ऐसी जवाबदेही भाजपा और कांग्रेस को भी समझनी चाहिए। अगर सब अपनी-अपनी मर्यादा को समझें, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा।

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