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इतिहास बोध

अच्छा हमारे खानदान में कोई अंग्रेजों का ‘दलाल’.. मतलब किसी की अंग्रेजों से अच्छी ‘ट्यूनिंग’ नहीं थी क्या? यह सवाल मेरे बड़े साहबजादे ने किया। यह सवाल न मजाक में था, और न गलती...

इतिहास बोध
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 10 May 2015 08:16 PM
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अच्छा हमारे खानदान में कोई अंग्रेजों का ‘दलाल’.. मतलब किसी की अंग्रेजों से अच्छी ‘ट्यूनिंग’ नहीं थी क्या? यह सवाल मेरे बड़े साहबजादे ने किया। यह सवाल न मजाक में था, और न गलती से। सवाल की पृष्ठभूमि यह है कि मैं उनका परिचय अपने शहर के पुराने और रईस खानदानों से करा रहा था, अंग्रेजी दौर की कदीमी इमारतों से करा रहा था। चौरीचौरा कांड के बारे में वह शाहिद अमीन साहब की किताब के बारे में मुझसे सुन चुके थे। एक-आध पन्ने पढ़े भी हों, तो कह नहीं सकता। अकादमिक जबान में कहें, तो इतिहास बोध वक्त के साथ बदलता है।

हम इतिहास से जितनी दूर जाते हैं, उसे देखने का नजरिया बदलता जाता है। लेकिन इतिहास बोध इस सीमा तक बदल सकता है, सोचा न था। हमने जब होश संभाला, तो अंग्रेज हमारे लिए दुश्मन थे, जिनसे लड़कर हमारे पूर्वजों ने आजादी पाई। बालिग से थोड़ा ज्यादा हुए, तो पता चला कि अंग्रेज तो मुट्ठी भर थे। हमारे पूर्वज उनके पिट्ठुओं से लड़ रहे थे, जो हमारे अपने ही लोग थे। अब एक लड़का, जो अगले साल बालिग होने जा रहा है, यह सवाल पूछता है, तो उसके दिमाग में इतिहास का कौन सा खाका बना है! क्या अब ‘दलाल’ को हमने शेयर बाजार से इतर भी स्वीकृति दे दी है? क्या नई पीढ़ी के खुद-ब-खुद बन रहे इस मानस में किसी परिवर्तन की जरूरत है? क्या उत्तर आधुनिकता को इसी तरह अपने उरुज पर पहुंचना था? मैं यह सवाल तो पूछ ही नहीं रहा कि क्या नए दौर में नैतिकता भी मायने बदल रही है!
आईबीएन खबर में राजशेखर

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